ईरान से जंग में हर दिन हो रहे 6050 करोड़ रुपये खर्च, क्या इजराइल की जेब में दम बचा है? जानें किसे कितना नुकसान हो रहा
ईरान और इजराइल के बीच चल रहे युद्ध ने दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर भारी दबाव डाल दिया है. इजराइल हर दिन करीब 725 मिलियन डॉलर खर्च कर रहा है, जबकि ईरान पहले से ही प्रतिबंधों और आर्थिक संकट से जूझ रहा है. जहां इज़राइल की टेक-आधारित अर्थव्यवस्था लड़खड़ा रही है, वहीं ईरान की तेल आधारित अर्थव्यवस्था पर जंग का सीधा असर पड़ा है. लंबे युद्ध की स्थिति में दोनों देशों के लिए आर्थिक टिकाऊपन एक बड़ी चुनौती बन सकता है.;
Iran Israel War: ईरान और इजराइल के बीच सातवें दिन भी जंग जारी है. ईरान के हमले में इजराइल के 24 लोग मारे गए हैं, जबकि ईरान में इजराइल के हमले में 639 लोग मारे जा चुके हैं, जबकि 1329 लोग घायल हैं. इस संघर्ष से दोनों देशों को अरबों डॉलर का नुकसान भी हो रहा है और इससे उनकी आर्थिक वृद्धि बाधित हो सकती है तथा दीर्घकालिक राजकोषीय योजना को लेकर चिंताएं पैदा हो सकती हैं.
इज़राइल: टेक्नोलॉजी सुपरपावर, लेकिन खर्च भारी
- तेज रफ्तार खर्च: इज़राइल की रक्षा गतिविधियों में प्रतिदिन लगभग 725 मिलियन डॉलर यानी 6,050 करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं. यह खर्च गाज़ा के मोर्चे से शुरू होकर अब ईरान तक फैल गया है.
- GDP का बड़ा हिस्सा रक्षा में: इज़राइल की GDP का लगभग 7% अब रक्षा और युद्ध से जुड़ी गतिविधियों पर खर्च हो रहा है- यह OECD देशों में सबसे ऊंचा अनुपात है. इजराइली रक्षा मंत्रालय का आवंटन 2023 के 60 अरब शेकल से बढ़कर 2025 में 118 अरब शेकल (31 अरब डॉलर) होने जा रहा है. विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि युद्ध रुक भी जाए तो बिताए रुपये वापिस नहीं मिलेंगे. स्वास्थ्य‑शिक्षा जैसी सार्वजनिक सेवाओं के लिए फंड सिमट सकते हैं.
- टेक-सेक्टर पर निर्भरता: इज़राइल की अर्थव्यवस्था में तकनीकी स्टार्टअप्स और वैश्विक निवेश बड़ी भूमिका निभाते हैं, लेकिन लगातार युद्ध से विदेशी निवेशक पीछे हट सकते हैं.
- सामाजिक असंतुलन का खतरा: शिक्षा, स्वास्थ्य और मूलभूत सेवाओं की फंडिंग खतरे में आ सकती है। लंबे समय तक युद्ध चलने पर सामाजिक असंतोष बढ़ सकता है.
- निजी क्षेत्र की गुहार: इजराइली व्यापार मंडल के अध्यक्ष शख़र तुर्ज़ेमान ने अर्थव्यवस्था मंत्री निर बरकात को पत्र लिखकर आपातकाल में व्यापार प्रतिबंधों में ढील मांगी है, ताकि रोज़गार‑व्यवस्था न ढहे. सरकार समाधान के आश्वासन दे रही है कि आपदा में भी बाज़ार चल सके.
- तेल‑बाज़ार व वैश्विक जोखिम: तनाव बढ़ने से ब्रेंट क्रूड 74.6 $ प्रति बैरल तक उछला, क्योंकि हर दिन दुनिया के लगभग 21 मिलियन बैरल तेल वाले स्ट्रेट ऑफ़ हॉर्मुज़ मार्ग पर ख़तरा मंडरा रहा है. अगर आपूर्ति रुकी तो कीमतें और चढ़ सकती हैं.
ईरान: प्रतिबंधों में जकड़ी अर्थव्यवस्था, फिर भी हौसला बरकरार
- तेल आधारित अर्थव्यवस्था: ईरान की अर्थव्यवस्था पहले से ही पश्चिमी प्रतिबंधों के कारण कमजोर है. उसका अधिकांश राजस्व तेल और गैस निर्यात से आता है, जो अब युद्ध के कारण और अस्थिर हो गया है.
- रियाल की गिरती कीमत: ईरानी मुद्रा रियाल की वैल्यू में तेजी से गिरावट आ रही है. घरेलू महंगाई और बेरोज़गारी पहले से ही चरम पर है.
- वैकल्पिक साझेदार: चीन, रूस और कुछ अरब देशों से व्यापारिक समर्थन ईरान को थोड़ी राहत देता है, लेकिन यह समर्थन अस्थायी हो सकता है.
- नागरिक असंतोष: लंबे समय से जारी आर्थिक तंगी और अब युद्ध के प्रभाव से ईरान के भीतर जनाक्रोश तेजी से बढ़ सकता है.
कौन ज्यादा झेल पाएगा?
इज़राइल के पास बेहतर सैन्य तकनीक और वैश्विक समर्थन (जैसे अमेरिका) है, लेकिन लगातार युद्ध उसकी उन्नत लेकिन सीमित जनसंख्या और अर्थव्यवस्था पर भारी बोझ डाल सकता है. ईरान के पास रणनीतिक धैर्य और क्षेत्रीय मिलिशिया नेटवर्क है, लेकिन आर्थिक प्रतिबंधों और मुद्रास्फीति के कारण उसका टिक पाना अधिक चुनौतीपूर्ण है. दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाएं तनाव में हैं, और अगर युद्ध लंबा खिंचता है, तो राजनीतिक अस्थिरता और अंतरराष्ट्रीय दबाव दोनों पर बढ़ सकता है.