चुनाव नतीजों के बाद जनता को उम्मीद थी कि बदलाव की हवा नई कैबिनेट में साफ़ दिखेगी, लेकिन पटना की सत्ता-राजनीति में जो खींचतान चल रही है, उसने साफ़ कर दिया है कि यहां बदलाव से ज़्यादा—बचाव और बढ़त के लिए पॉलिटिकल दांव-पेंच लगाए जा रहे हैं. जद(यू) अपने पुराने चेहरों को हर हाल में सुरक्षित रखना चाहती है, जबकि बीजेपी नए चेहरे जोड़कर राजनीतिक संतुलन बदलने के मूड में है. उधर LJP, HAM और RLM जैसे छोटे सहयोगी दल अपने हिस्से का मंत्री पद सुनिश्चित करने के लिए पूरी ताकत झोंक रहे हैं.सत्ता के केंद्र से लेकर गठबंधन की बैठकों तक- हर जगह दबाव, रणनीति, और जोड़तोड़ का दौर चल रहा है. सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या जनता ने जिस "बदलाव" के नाम पर वोट दिया, वह नई कैबिनेट में दिखेगा या फिर यह केवल संख्या और शक्ति का खेल बनकर रह जाएगा?