वो अकेली आवाज... नैनीताल में भीड़ के सामने Communal नफरत को चुनौती देने वाली कौन हैं शैला नेगी?

शैला नेगी, जो मल्लीताल व्यापार मंडल अध्यक्ष की बेटी हैं, उस समय दुकान पर थीं जब गुस्साई भीड़ मुस्लिम दुकानों को बंद कराने पहुंची। शैला ने बताया कि हमने अपनी दुकान बंद नहीं की, क्योंकि हमें लगा कि जो हुआ है वो एक अपराध है, इससे समुदाय का कोई लेना देना नहीं होना चाहिए.;

Edited By :  रूपाली राय
Updated On : 5 May 2025 12:16 PM IST

उत्तराखंड के नैनीताल में एक नाबालिग से कथित दुष्कर्म के बाद उपजे तनाव और हिंसा के माहौल में एक वीडियो ने सोशल मीडिया पर हलचल मचा दी है. इस वीडियो में एक स्थानीय युवती, शैला नेगी, सैकड़ों की भीड़ के सामने साहसिक तरीके से खड़ी होकर सवाल करती हैं जो डंके की चोट पर पूछती हैं की अगर एक व्यक्ति ने अपराध किया है, तो पूरे समुदाय को सज़ा क्यों?.

जिसके बाद से वह सुर्ख़ियों में बनी हुई हैं और कोई जानना चाहता हैं कि आखिर शैला नेगी हैं कौन?. लेकिन उससे पहले इस पूरे मामले को जान लेते हैं. इस घटनाक्रम में जहां पूरे शहर का माहौल धार्मिक ध्रुवीकरण और नफरत की तरफ बढ़ रहा था, वहीं शैला नेगी की यह एकल आवाज संवेदनशीलता, इंसाफ और सामाजिक एकता की मिसाल बन गई.

भीड़ में गूंजी एक साहसी आवाज 

शैला नेगी, जो मल्लीताल व्यापार मंडल अध्यक्ष की बेटी हैं, उस समय दुकान पर थीं जब गुस्साई भीड़ मुस्लिम दुकानों को बंद कराने पहुंची. शैला ने बताया कि हमने अपनी दुकान बंद नहीं की, क्योंकि हमें लगा कि जो हुआ है वो एक अपराध है, इससे समुदाय का कोई लेना देना नहीं होना चाहिए. भीड़ में मौजूद कुछ लोगों ने उनके पिता से बदतमीज़ी की और 'हिंदुस्तानी या पाकिस्तानी?' जैसे सवाल पूछे?. इसी पर प्रतिक्रिया देते हुए शैला ने खुले आम विरोध किया और कहा, 'यह किसी धर्म की लड़ाई नहीं थी. यह एक लड़की के साथ हुए अत्याचार की लड़ाई थी, जिसमें हर महिला को खड़ा होना चाहिए था.'

दोषी को सज़ा मिले, न कि पूरे समुदाय को

शैला का सवाल सीधा था, 'अगर दोष एक व्यक्ति का है, तो फिर पूरी कौम को क्यों घेरा जा रहा है?. उन्होंने यह भी कहा कि भीड़ के नारों में बच्ची को न्याय दिलाने की कोई बात नहीं थी, बल्कि सिर्फ सांप्रदायिक ज़हर घोला जा रहा था. शैला ने कहा,'मैं उन नारों को दोहरा भी नहीं सकती. बहुत अभद्र भाषा का इस्तेमाल हो रहा था. वहां किसी को न्याय से नहीं, नफरत फैलाने से मतलब था.'

हिंसा का राजनीतिक और सांप्रदायिक रंग

30 अप्रैल को जब पीड़िता अपनी मां और एक वकील के साथ थाने पहुंची और 72 साल के उस्मान के खिलाफ दुष्कर्म का मामला दर्ज हुआ, उसी रात सैकड़ों लोग थाने के बाहर इकट्ठा हो गए. अगले दिन गाड़ी पड़ाव क्षेत्र में मुस्लिम दुकानों पर हमले और तोड़फोड़ की घटनाएं सामने आईं. पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है और उसे जेल भेज दिया गया है। साथ ही उपद्रवियों की पहचान सीसीटीवी फुटेज के आधार पर की जा रही है.

दोनों पक्षों के दावे: सज़िश या न्याय की मांग?

वहीं आरोपी के बेटे, डॉ. क़ासिम ने इस मामले को साज़िश बताया है. उनका कहना है कि उनके पिता सम्मानित और वृद्ध व्यक्ति हैं, और उनसे ईर्ष्या करने वालों ने यह फर्जी आरोप लगाया है. उन्होंने पुलिस जांच पर भी सवाल उठाए और दावा किया कि कोई ठोस सबूत नहीं मिला है. वहीं बीजेपी नगर अध्यक्ष नितिन कारकी का बयान हिंसा के पीछे एक 'डेमोग्राफिक चिंता' को दिखाता है. उन्होंने कहा कि बाहरी लोगों का सत्यापन ज़रूरी है और नैनीताल के सांस्कृतिक संतुलन को बचाना प्राथमिकता होनी चाहिए.

टूरिज़्म को झटका, व्यापारियों में डर

नैनीताल में यह समय पर्यटन का पीक सीज़न होता है, मगर व्यापारियों का कहना है कि इस तरह की घटनाएं न केवल सामाजिक तानेबाने को नुकसान पहुंचाती हैं, बल्कि अर्थव्यवस्था और पर्यटन पर भी गहरा असर डालती हैं. नैनीताल ऐसी जगह है जहां लाखों की तादाद में पर्यटक वहां घूमने पहुंचते हैं. लेकिन सांप्रदायिक तनाव ने वहां का माहौल काफी हद तक खराब कर दिया जिससे व्यापारी संघठनों का नुकसान हुआ है. शैला ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा, 'जब इस तरह का माहौल बनाया जाएगा, तो क्या कोई टूरिस्ट यहां आना चाहेगा? यह हमारी सुरक्षा और आजीविका दोनों का सवाल है.'

शैला की लड़ाई: नफरत के खिलाफ इंसानियत की बात

जहां भीड़ नफरत के नारों में डूबी थी, वहां शैला नेगी एक तार्किक और मानवीय आवाज़ बनकर उभरी. उन्होंने एक बार फिर यह याद दिलाया कि न्याय की मांग किसी धर्म या पहचान की मोहताज नहीं होती। उनकी ये बात हमें सोचने पर मजबूर करती है कि अगर हम किसी एक की गलती को पूरी जाति या समुदाय पर थोप देंगे, तो हम अपराध के खिलाफ नहीं, इंसानियत के खिलाफ खड़े हो रहे होंगे. 

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