पश्चिम के चौधरी “24” में फेल, अब पूरब के चौधरी “27” में कर पाएंगे ‘धुरंधर' जैसा 'खेल’?

यूपी BJP के नए प्रदेश अध्यक्ष बने पंकज चौधरी के सामने सबसे बड़ी चुनौती 2027 का विधानसभा चुनाव है. पश्चिम के भूपेंद्र चौधरी की जगह पूरब के चौधरी को लाकर हाईकमान ने बड़ा दांव खेला है. 2024 में PDA और कार्यकर्ताओं की नाराज़गी से झटके झेल चुकी BJP अब कुर्मी वोटबैंक और संगठन को फिर से मजबूत करना चाहती है. सिर्फ 15 महीनों में 75 जिलों में पकड़ बनाकर पंकज चौधरी को पार्टी को विनिंग ट्रैक पर लौटाना होगा.;

Edited By :  सागर द्विवेदी
Updated On : 13 Dec 2025 10:49 PM IST

UP BJP President: भारत से लेकर पाकिस्तान तक और सिनेमाघरों से लेकर बॉक्स ऑफिस के कलेक्शन सेंटर तक धुरंधर की धूम मची है. यूपी अध्यक्ष के लिए नामांकन पर्चा दाखिल होने तक फिल्म के कारोबार ने 270 करोड़ रुपये का आंकड़ा पार कर लिया था. फिल्म का जल्द ही एक हज़ारी क्लब में शामिल होना तय है. लेकिन, इस बीच यूपी की राजनीति में एक बड़ा सवाल तैर रहा है. क्या राज्य के नए पार्टी अध्यक्ष पंकज चौधरी PDA की बिसात और कुर्मी वाली कसौटी पर खरा उतरते हुए 2027 में पार्टी को विनिंग हैट्रिक दिलाने वाले धुरंधर बन पाएंगे?

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पश्चिम के 'चौधरी' की जगह अब पूरब के 'चौधरी' आए, क्या है खेल?

अब यूपी में BJP कार्यकर्ताओं का इंतज़ार ख़त्म हुआ. वो भी एक बड़े सरप्राइज़ के साथ. पार्टी हाईकमान ने पश्चिम के चौधरी यानी भूपेंद्र चौधरी को पूरब के चौधरी यानी पंकज चौधरी से रिप्लेस कर दिया है. भूपेंद्र चौधरी यूपी BJP के पूर्व संगठन मंत्री सुनील बंसल के करीबी माने जाते हैं. 2022 में उनकी ताजपोशी भी हाईकमान ने अपने हिसाब से की थी. हालांकि, 2024 के लोकसभा चुनाव में वो लगभग बेअसर रहे. अब एक बार फिर बड़ा और कड़ा चुनाव है. 2027 के मद्देनज़र हाईकमान ने राजनीतिक शतरंज पर एक बार फिर बड़ा दांव चला है. भूपेंद्र चौधरी के बदले पंकज चौधरी को लाया गया है. वो खांटी पूरब से आते हैं. जैसे भूपेंद्र चौधरी खांटी पश्चिम से थे.

2022 में यूपी विधानसभा चुनाव में दूसरी बार जीत के बाद BJP भूपेंद्र चौधरी को अध्यक्ष पद की कुर्सी मिली थी. लेकिन, दौरों की कमी और कार्यकर्ताओं से कनेक्टिविटी में उपेक्षा ने सारा राजनीतिक सुरूर उतार दिया. 2024 के चुनाव में कार्यकर्ता अघोषित तौर पर अपनी सक्रिय भूमिका से पीछे हट गए, जिसके बाद संगठन से लेकर सत्ता शीर्ष तक सब पर सवाल उठने लगे. बहरहाल, भूपेंद्र चौधरी जिस पश्चिम से आते हैं, वहां 2024 के लोकसभा चुनाव में उनके अध्यक्ष रहते हुए पार्टी 17 में से 9 सीटों पर ही जीत दर्ज कर सकी. जबकि, 2019 में जीती हुई 5 सीटें पार्टी हार गई.

वहीं, सपा, कांग्रेस और बाक़ी विरोधी दलों ने पश्चिमी यूपी की 17 में से 8 सीटें जीत लीं. यूपी में 2024 के लोकसभा चुनाव परिणामों को लेकर तो संघ, संगठन और सरकार तीनों ने कई महीनों तक मंथन किया. सबसे बड़ी बात निकलकर ये आई कि कार्यकर्ताओं की नाराज़गी रही, इसलिए उनकी भूमिका सीमित रही. कार्यकर्ताओं का कहना था कि ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि उनकी भूमिका ही संगठन में सीमित कर दी गई थी. प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर भूपेंद्र चौधरी ना तो कार्यकर्ताओं के साथ जुड़ते दिखे और ना ही कार्यकर्ताओं में उनसे जुड़ने का जज़्बा दिखा. लेकिन, अब पंकज चौधरी को वही मुश्क़िल काम बहुत कम समय में करना है.

पंकज चौधरी का ‘इम्तिहान’ शुरू, 15 महीने में कवर करने होंगे 75 ज़िले

यूपी BJP के नए अध्यक्ष पंकज चौधरी के पास वक्त बहुत कम है और काम बहुत ज़्यादा. पिछले अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी को पश्चिम से पूरब तक पहुंचने में बहुत कठिनाई महसूस होती थी, लेकिन पंकज चौधरी के पास ये विकल्प भी नहीं है. उन्हें सिर्फ़ 15 महीने में पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण समेत यूपी की चारों दिशाओं में 75 ज़िलों तक अपनी पहुंच और पकड़ बनानी होगी. पंकज चौधरी की अध्यक्ष पद पर तैनाती होते ही कार्यकर्ताओं के लिए इंतज़ार की घड़ी ख़त्म हुई और राज्य में संगठन के सिरमौर के लिए इम्तिहान का वक़्त शुरू हो गया है.

36 साल के अपने सफल सियासी सफ़र में पंकज चौधरी को पहली बार संगठन में बड़ी ज़िम्मेदारी मिली है. उनके सामने सबसे बड़ी कसौटी वो ख़ुद हैं. 1989 में पार्षद के बाद 1991 में 27 साल की उम्र में पहली बार सांसद बनना. फिर 1999 और 2009 को छोड़ दें तो कुल सात बार महाराजगंज लोकसभा सीट से संसद तक पहुंचना उनकी राजनीतिक पकड़ को दर्शाता है. हालांकि, अब बात सिर्फ़ अपनी सीट जीतने तक सीमित नहीं है. क्योंकि, महाराजगंज में कुर्मी वोटबैंक को साध लेना और पूरे यूपी में कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने के लिए उन तक पकड़ बनाने में ज़मीन आसमान जितना फ़र्क है. क्या पंकज चौधरी ये राजनीतिक करिश्मा कर पाएंगे? 2024 में अपनी साइलेंट नाराज़गी दर्ज करा चुके कार्यकर्ताओं को एक बार फिर संगठन की ताक़त दिखाने और उनमें जोश भरकर चुनावी जज़्बे के लिए तैयार करना सबसे बड़ी और कड़ी चुनौती होगी.

2027 से पहले अध्यक्ष का पद कांटों नहीं कीलों जड़ा ताज है!

प्रधानमंत्री मोदी के मंत्री और गृह मंत्री अमित शाह के करीबी नेता पंकज चौधरी की ताजपोशी ने कई चीज़ें साफ कर दी हैं. यूपी में 2027 के चुनाव के लिए हर चाल, हर मोहरा, हर बाज़ी, हर चक्रव्यूह दिल्ली से तय होगा. केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी का अध्यक्ष पद की रेस में सबसे अंतिम समय में शामिल होना और फिर उन्हीं का अध्यक्ष बनना ये बताता है कि दिल्ली फिलहाल अडिग है. यूपी में अध्यक्ष पद को लेकर संघ, संगठन और सरकार के सियासी मंथन के बाद सारी तस्वीर और संदेश सामने आ गए हैं.

पंकज चौधरी यूपी में सिर्फ़ संगठन का चेहरा नहीं होंगे, बल्कि उन्हें बैकडोर से दिल्ली से भी ताक़त मिलेगी. यही बात अगर उनके समर्थन में जाएगी, तो यही चीज़ उनके विरोध में भी जा सकती है. क्योंकि प्रदेश, क्षेत्र, ज़िला, ब्लॉक और मंडल स्तर के कार्यकर्ता प्रदेश में सक्रिय नेताओं से जल्दी और आसानी से जुड़ जाते हैं. बहरहाल, हो सकता है कि पंकज चौधरी पहली बार मिली बड़ी सांगठनिक ज़िम्मेदारी के इस पहलू पर ग़ौर करें. क्योंकि, 15 महीने में यूपी जैसे विशाल और बहुसांस्कृतिक समाज वाले राज्य में अपनी पैठ बना पाना किसी के लिए भी नामुमकिन जैसा होगा. कार्यकर्ताओं के साथ जुड़कर इस मुश्क़िल मिशन को कामयाब बनाया जा सकता है.

“PDA” के खिलाफ कितने मुखर हो पाएंगे पंकज चौधरी?

2024 में अखिलेश यादव ने PDA का नारा दिया था. कांग्रेस ने BJP के खिलाफ संविधान बदलने का नैरेटिव चलाया था. दोनों ही दांव काम कर गए. 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा 37 सीटें जीतकर BJP से 5 सीट आगे निकल गई. BJP को सिर्फ़ 33 सीटों से संतोष करना पड़ा. पार्टी ने 2019 के मुक़ाबले 29 सीटें गंवा दी. वहीं, कांग्रेस ने भी 2019 में एक सीट के मुकाबले 6 सीटें जीत लीं. पिछड़ों और नैरेटिव वाली कई सीटों पर तो कांग्रेस और सपा ने BJP की जीत मुश्क़िल कर दी थी. 2024 में पंकज चौधरी भी महाराजगंज सीट पर कांग्रेस के जातिगत गणित वाले दांव के सामने कठिनाई में पड़ गए थे. हालांकि, उन्होंने 35 हज़ार से ज़्यादा वोटों से जीत हासिल की थी और सातवीं बार सांसद चुने गए थे.

अब पंकज चौधरी को सपा के PDA के सामने जातिगत गणित वाला कोई करिश्मा दिखाना होगा. यूपी में कुर्मी वोटबैंक को एकजुट रखना उनकी सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी होगी. यूपी में क़रीब 12% कुर्मी हैं. BJP हाईकमान ने भी कुर्मी बिरादरी के ज़मीनी नेता पंकज चौधरी पर इसीलिए दांव लगाया है, ताकि वो अपनी बिरदारी का वोटबैंक छिटकने ना दें. साथ ही कुर्मी क्षत्रपों को BJP से भटकने ना दें. लेकिन, उनके सामने मुश्क़िल इस बात को लेकर होगी कि अखिलेश यादव ने अपनी पार्टी में कई कुर्मी क्षत्रपों को 2022 में टिकट देकर विधानसभा पहुंचाया और 2024 में कई कुर्मी सांसद बनवा लिए. अब अगर पंकज चौधरी कुर्मी वोटबैंक को ही साधने में सारी ताक़त लगाते हैं, तो बाकी बिरादरियों पर काम किस रणनीति के तहत होगा? इसलिए सबकी निगाहें पंकज चौधरी की उस टीम पर टिकी हैं, जो 2027 के मद्देनज़र वो बनाएंगे.

चौथी बार कुर्मी पर दांव, ‘24’ की हार का बदला ‘27’ में ले पाएगी BJP?

यूपी में BJP के नए अध्यक्ष के सामने 2027 का चुनाव है और वक़्त बमुश्क़िल 15 महीने का है. ऐसे में पंकज चौधरी के सामने सबसे पहली चुनौती होगी गुटबाज़ी की गुंजाइश को ख़त्म करना. यूपी BJP में भी ज़िला स्तर के कार्यकर्ताओं को तमाम दलों की तरह अपने-अपने क्षेत्रीय क्षत्रपों का संरक्षण हासिल रहता है. जिनके तार लखनऊ में पहले से जुड़े हैं, अगर उन चेहरों को पंकज चौधरी नज़रअंदाज़ करते हैं या एडजस्ट नहीं कर पाते, तो गुटबाज़ी को हवा मिल सकती है.

पंकज चौधरी को यूपी BJP का अध्यक्ष बनाकर पार्टी हाईकमान ने ये संदेश तो साफ दे दिया है कि कुर्मी वोटबैंक पर उसका भरोसा सबसे ज़्यादा है. यूपी की बात करें तो अब तक पार्टी ने तीन कुर्मी नेताओं को संगठन की कमान सौंपी है. साल 2000 में ओम प्रकाश सिंह, 2002 में विनय कटियार, 2019 में स्वतंत्र देव सिंह और अब 2025 में यूपी में चौथे कुर्मी अध्यक्ष पंकज चौधरी हैं. 2000 में अध्यक्ष बने ओम प्रकाश सिंह के दौर में BJP सीटों के लिए संघर्ष करती थी, तब सत्ता की गारंटी फिफ्टी-फिफ्टी रहती थी. उसके बाद 2002 में भी हालात सिर्फ़ सरकारें बनाने और बचाने वाले रहते थे. 2019 में जब स्वतंत्र देव सिंह को यूपी का अध्यक्ष बनाया गया, तो 2022 में पार्टी ने तमाम अंदरूनी झगड़े और गुटबाज़ी के बावजूद 258 सीटों पर जीत हासिल कर ली थी. लेकिन, उसके बाद 2024 में PDA का आना और BJP का सीटों के फ्रंट पर बैकफु पर जाना बहुत बड़ा झटका था.

संभवत: इसीलिए लंबे मंथन के बाद पार्टी ने पार्षद से सांसद तक 36 साल का सियासी सफर तय करने वाले पंकज चौधरी को यूपी की कमान सौंपी है. लेकिन, ये चुनाव BJP और पंकज चौधरी दोनों के लिए सबसे मुश्क़िल साबित हो सकता है. क्योंकि, जिस जातिगत समीकरण के सियासी मंथन से BJP कुर्मी चेहरा निकालकर लाई है, उसी जातिगत गणित पर 2027 की सारी चुनावी लड़ाई टिकी है. जाति वाली जंग में पंकज चौधरी कितने धुरंधर साबित होंगे, ये 2027 के चुनाव परिणाम तय करेंगे. फिलहाल स्वागत, अभिवादन, फूल, मिठाई, आतिशबाज़ी और बधाइयों का दौर है. संघ, संगठन और BJP हाईकमान को उम्मीद है कि पूरब के चौधरी की ताजपोशी का जश्न 2027 में बड़ी जीत से दोहराया जा सके.

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