बाप के कत्ल से ‘बेकाबू’ BSC स्टूडेंट बृजेश सिंह के माफिया डॉन बनने की कहानी जिसने, जीते जी मुख्तार अंसारी की जिंदगी जहन्नुम बना दी...

पूर्वांचल के कुख्यात नामों में शामिल बृजेश सिंह कभी एक आम बीएससी छात्र थे, लेकिन पिता की हत्या ने उनके जीवन की दिशा पूरी तरह बदल दी. बदला लेने के लिए अपराध की दुनिया में उतरे बृजेश जल्द ही खौफ, गैंगवार, और राजनीतिक शक्ति का पर्याय बन गए. मकोका, टाडा और गैंगस्टर एक्ट जैसे संगीन मामलों के बीच उन्होंने कोयला, रियल एस्टेट, खनन और राजनीति में अपनी जड़ें मजबूत कीं. गिरफ्तारी, फरारी और कोर्ट केसों के बावजूद जनता के एक बड़े वर्ग में उनकी ‘रॉबिन हुड’ जैसी छवि बनी रही.;

By :  संजीव चौहान
Updated On : 9 Dec 2025 6:00 PM IST

पूर्वाचंल में अब तक माफिया डॉन के नाम पर लोग मुख्तार अंसारी का ही नाम लिया करते थे. स्टेट मिरर हिंदी के एडिटर क्राइम इनवेस्टीगेशन एक उस खौफनाक नाम का यहां बेबाक जिक्र कर रहे हैं जिसने, इसी मुख्तार अंसारी एंड कंपनी की जिंदगी उसके जीते जी नरक से बदतर बना डाली थी. नाम है बृजेश सिंह.

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बाहुबली, दबंग, डॉन, माफिया, गुंडा, गैंगस्टर, मोस्ट वॉन्टेड आदि-आदि. जुर्म की डिक्शनरी के डरावने अल्फाजों से मिल-जुल कर गढ़ा गया है एक नाम. धाकड़ बृजेश कुमार सिंह या फिर बृजेश सिंह. यहां बेबाक जिक्र कर रहा हूं पूर्वांचल में खौफ के कील-काटों, फट्टों से बनी नाव पर सवार होकर माननीय ‘नेता’ जी बन चुके बृजेश सिंह का.

सत्ता में रहें या न रहें, जलवा रहता है कायम

वही बृजेश सिंह जो साल 2019 में मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोकसभा क्षेत्र यानी वाराणसी से निर्दलीय विधान परिषद सदस्य यानी एमएलसी हुआ करते थे. जबकि उनके भतीजे और चाचा की तरह ही बाहुबली नेता सुशील सिंह चंदौली की सैयदाराजा सीट से भारतीय जनता पार्टी के विधायक बने थे. मतलब बनारस के डॉन चाचा-भतीजा की इस जोड़ी का जलवा सत्ता और सत्ता से बाहर होने पर भी बरकरार रहता है. चाचा भतीजे की इस जोड़ी के बीच यह भी मशहूर है कि तुम डाल डाल तो हम पात पात. मतलब कोई किसी से कम नहीं.

चाहने वालों के बीच उनकी ‘रॉबिन हुड’ की छवि

बृजेश सिंह भले ही पुलिस-कानून की नजर में माफिया डॉन बाहुबली दबंग क्यों न रहे हों लेकिन अपने चाहने वालों के बीच उनकी छवि ‘रॉबिन हुड’ की ही है. अपने चाहने वालों के लिए बृजेश सिंह भगवान से कम नहीं है. अपराधी किस्म के और खौफ का पहला नाम वे पूर्वांचल में अगर किसी के लिए होंगे तो अपने दुश्मन के लिए. अपनों के लिए नहीं.

इतने मुकदमे कि कोई याद भी नहीं रख सकता

ऐसे बृजेश सिंह शांत प्रकृति के हैं इसमें कोई दो राय नहीं. पहली बार उनके साथ उठने-बैठने वाला कोई अनुभवी भी नहीं पहचान सकता है कि इन्हीं बृजेश सिंह के सिर पर यूपी के न मालूम कितने थानों में कितने मुकदमे दर्ज होंगे. बृजेश सिंह को अपने ऊपर लदे मुकदमों की सही सही गिनती इसलिए याद है क्योंकि वे उन मुकदमों से जूझ रहे हैं. आम आदमी या बृजेश सिंह के करीबियों से बृजेश सिंह के ऊपर लदे मुकदमों के बारे में पूछेंगे...तो शायद ही किसी को सही गिनती याद हो या कोई सही गिनती बताने को राजी होगा.

मुकदमे ही मुकदमे

ऐसे बृजेश सिंह लंबे समय से रेत खनन, गिट्टी, कोयला, रियल स्टेट के कारोबार और राजनीति में सक्रिय हैं. पूर्वांचल के अपराध जगत और राजनीतिक गलियारों में उनकी पकड़ कितनी मजबूत है. यह यहां जिक्र करने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि यह जग-जाहिर है. खबरों की मानें तो ऐसे बृजेश सिंह के ऊपर अब तक के जीवन में जो आपराधिक मुकदमे दर्ज हो चुके हैं. उनमें मकोका यानी महाराष्ट्र कंट्रोल ऑफ आर्गेनाइज्ड क्राइम एक्ट, टाडा यानी टेररिस्ट एंड डिसरप्टिव एक्टिविटीज एक्ट, गैंगस्टर एक्ट के तहत हत्या, अपहरण, हत्या की कोशिश, कत्ल की साजिश रचने के भी तमाम मामले बृजेश सिंह के खिलाफ दर्ज हो चुके हैं. इनमें से तमाम में वे अदालत से अगर बरी किए जा चुके हैं. तो कई मुकदमों में उनको अभी भी कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं.

मुकदमों से ज्‍यादा चर्चा में रही थी 2008 की गिरफ्तारी

पूर्वांचल के उन्हीं सफेदपोश बाहुबली बृजेश सिंह का जिक्र यहां कर रहा हूं साल 2000 के दशक में फरारी के दौरान जिनकी गिरफ्तारी के लिए 5 लाख का इनाम तक रख दिया गया था. उसके बाद साल 2008 में जब उन्हें दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल ने भुवनेश्वर उड़ीसा से गिरफ्तार किया तो उनकी वह गिरफ्तारी भी उनके मुकदमों से कहीं ज्यादा चर्चित रही थी. दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल द्वारा भुवनेश्वर से बृजेश सिंह की उस सुरक्षित गिरफ्तारी पर तब सैकड़ों उंगलियां उठी थीं. यह कहते हुए कि गिरफ्तारी का वह तमाशा बृजेश सिंह और दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल की सेटिंग का सकुशल रिजल्ट था.

2016 में बृजेश सिंह के खिलाफ दर्ज थे 11 मुकदमे

साल 2016 के चुनावी रिकॉर्ड में बृजेश सिंह ने जो जानकारी दस्तावेजों में दाखिल की उसके मुताबिक उनके खिलाफ तब 11 मुकदमे अलग-अलग जगहों पर चल रहे थे. वाराणसी की एमएलसी सीट से लंबे समय तक बृजेश सिंह या उनके परिवार का साम्राज्य कोई नहीं तोड़ सका. दो मर्तबा अगर इस सीट से उनके बड़े भाई उदयनाथ सिंह एमएलसी रहे तो. उसके बाद बृजेश सिंह की धर्मपत्नी अन्नपूर्णा सिंह इस सीट पर एमएलसी बनीं. जबकि मार्च 2016 में इस सीट पर खुद बृजेश सिंह एमएलसी बन गए.

कभी पूर्वांचल में खौफ का पहला नाम था बृजेश सिंह

पूर्वांचल में खौफ का पहला नाम रहे यह उन्हीं बृजेश सिंह की कहानी है जिन्हें कभी दिल्ली से लेकर यूपी, बिहार, झारखंड तक की पुलिस तलाशने के फेर में कालांतर में दिन-रात हांफा करती थी. बनारस के गांव धरहरा के मूल निवासी बृजेश सिंह की क्राइम कुंडली पढ़ने से पता चलता है कि अगर इनके पिता रविंद्र नाथ सिंह का कत्ल न हुआ होता.. तो तब बीएससी के स्टूडेंट रहे और आज के बृजेश सिंह की दशा और दिशा एकदम अलग ही होती. पिता के कत्ल का बदला लेने के फेर में फंसे बीते कल के पढ़ाकू युवा बृजेश सिंह ने, कालांतर में पिता के कत्ल का बदला एक साल के ही भीतर ले लिया था. पिता के हत्यारे हरिहर सिंह को कत्ल करके.

पिता के कातिल के खून से रंगे हाथ दामन से न मिट सके

एक बार पिता के कातिल हरिहर सिंह के खून से बृजेश सिंह के हाथ लाल क्या हुए उसके खून के वे दाग फिर कभी बृजेश सिंह के दामन से मिट न सके. पिता के कातिल को ठिकाने लगाने का पहला मुकदमा साल 1985 में जब दर्ज हुआ. उसके बाद तो मानो पुलिस और थानों चौकी में इस बात की होड़ सी लग गई कि कौन थाना कितने कम समय में कितने ज्यादा मुकदमे बृजेश सिंह के ऊपर लाद और थोप सकता है. इसी क्रम में साल 1986 में पूर्वांचल के चंदौली जिले के सिकरौरा गांव में हुए हत्याकांड में जब बृजेश सिंह का नाम आया. तो फिर उन्होंने अपराध की दुनिया में पीछे मुड़कर देखना खुद की जान आफत में डालने जैसा समझा.

32 साल तक चलता रहा एक मुकदमा

ऐसे बृजेश सिंह के खिलाफ एक मुकदमा 32 साल तक चला. उनके ऊपर आरोप था कि उन्होंने अपने पिता के कत्ल का बदला लेने के क्रम में आगे पीछे करके, करीब 6 लोगों को बारी-बारी से कत्ल करके निपटा दिया था. बृजेश सिंह के हाथों निपटने वाले इन्हीं लोगों में गांव का पूर्व प्रधान रामचंद्र यादव भी शामिल था. हालांकि 32 साल चले उस मुकदमे में साल 2018 में अदालत ने बृजेश सिंह को बरी कर दिया...ऐसे बृजेश सिंह जब गिरफ्तार होकर पहली बार जेल पहुंचे तो वहीं उनकी मुलाकात हुई थी तब के बदनाम हिस्ट्रीशीटर त्रिभुवन सिंह से. त्रिभुवन सिंह और बृजेश सिंह ही उन माफिया गैंगस्टर की जोड़ी थी जिसने इलाके के कुख्यात नाम मुख्तार अंसारी और उसके गुर्गों की जिंदगी जीते जी नरक से बदतर बना डाली थी.

1992 में मुंबई के जेजे अस्‍पताल गोलीकांड में भी आया नाम

अपराधों के नाम पर बृजेश सिंह के सिर पर सितंबर 1992 में मुंबई के जेजे अस्पताल में हुए सनसनीखेज गोली और हत्याकांड भी आया. उस शूटआउट में भारत में पहली बार किसी गैंग ने एके-47 जैसी घातक मार वाली राइफल का इस्तेमाल किया था. उस गोलीकांड में अस्पताल के भीतर दाखिल मरीज शैलेश हलदरकर सहित, उसकी सुरक्षा में तैनात महाराष्ट्र पुलिस के दो जवान भी मौक पर मार डाले गए थे. शैलेश हलदरकर अरुण गवली गैंग का शूटर था. जबकि उसे जेजे अस्पताल में घुसकर गोलियों से भून डालने में नाम इन्हीं बृजेश सिंह और सुभाष ठाकुर आदि का आया था. कहा गया था कि इन सबने दाउद इब्राहिम के इशारे पर उस लोमहर्षक गोलीकांड को अंजाम दिया था.

2001 में मुख्‍तार अंसारी के साथ हुई गैंगवार

इसी तरह बृजेश सिंह का नाम साल 2001 में गाजीपुर के उसरी चट्टी कांड में भी नाम आया था. उस बृजेश सिंह और मुख्तार अंसारी के बीच हुई उस गैंगवार में दो कत्ल हुए थे. मुख्तार उसी गोलीकांड में गोली लगने से जख्मी हुआ था. बृजेश सिंह भले ही खुद को बाहुबली न मानते हों. मगर मीडिया से बातचीत में उनके करीबी जरूर बताते हैं कि परिस्थितियां भी इनसान को कभी कभी पथरीले रास्ते पर उतार देती है. जहां तक किसी को बाहुबली बनाने न बनाने की बात है, तो यह काम सत्ता के सिंहासन पर सजी राजनीतिक पार्टियों के हाथ में होता है कि वह किसे कोर्ट कचहरी थाने चौकी में ठूंसकर माफिया और किसे सदन में बैठाकर माननीय बनाएं.

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