'सबसे खराब फैसला...', इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज पर बिफरा SC, रिटायरमेंट तक किसी भी क्रिमिनल केस की सुनवाई से हटाया
इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज ने वसूली के बदले अपराध करने की मंजूरी देने का फैसला लिया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने सबसे खराब आदेश बताया है. अब इसके बदले शीर्ष अदालत ने जज को रिटायरमेंट तक किसी भी क्रिमिनल केस की सुनवाई करने से रोक दिया है.;
भारतीय न्यायपालिका में पहली बार ऐसा हुआ है जब किसी उच्च न्यायालय के जज को आपराधिक मामलों की सुनवाई से हटा दिया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक जज को यह कहकर रोक दिया कि अब वे रिटायरमेंट तक कोई भी आपराधिक मामला नहीं सुनाएंगे.
यह फैसला इसलिए लिया गया क्योंकि उस जज ने एक सिविल मामले में आपराधिक समन जारी करने का आदेश दिया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने बहुत गंभीर गलती बताया. सुप्रीम कोर्ट ने उस आदेश को "अब तक का सबसे खराब फैसला" कहा और कहा कि यह न सिर्फ कानून के खिलाफ है, बल्कि न्याय व्यवस्था की साख को भी नुकसान पहुंचाता है. चलिए जानते हैं क्या है पूरा मामला.
क्या था विवादित आदेश?
यह मामला दो कंपनियों के बीच था. ललिता टेक्सटाइल्स ने शिखर केमिकल्स को 52 लाख रुपये का धागा दिया था, जिसमें से 47 लाख रुपये का भुगतान होना था. लेकिन शिखर केमिकल्स ने बाकी पैसे नहीं दिए. ललिता टेक्सटाइल्स ने बकाया पैसा लेने के लिए आपराधिक शिकायत की. मजिस्ट्रेट अदालत ने शिखर केमिकल्स के खिलाफ समन जारी किया. लेकिन शिखर केमिकल्स ने इस फैसले को गलत बताते हुए उच्च न्यायालय से समन रद्द करने की मांग की.
पैसे वसूली के लिए कर सकते हैं अपराध
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने समन रद्द करने से इनकार कर दिया और कहा कि शिकायत करने वाले को दीवानी मामले की बजाय आपराधिक कार्रवाई करने की अनुमति मिलनी चाहिए. लेकिन इस फैसले से सर्वोच्च न्यायालय खुश नहीं था. उन्होंने इसे “चौंकाने वाला” और “सबसे खराब आदेश” बताया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह आदेश सिर्फ कानून के खिलाफ नहीं है, बल्कि इससे न्यायपालिका की इज्जत भी ठेस पहुंचती है.
अब जज नहीं कर सकेंगे आपराधिक मामलों की सुनवाई
न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से अनुरोध किया कि वह इस मामले को किसी अनुभवी वरिष्ठ न्यायाधीश को सौंपें. साथ ही, उन्होंने उस न्यायाधीश को आदेश दिया कि वे अब से उनके पद छोड़ने तक किसी भी आपराधिक मामले का फैसला न सुनाएं और यदि उन्हें एकल न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया भी जाता है, तो कोई आपराधिक मामला न सौंपा जाए.
न्यायपालिका में यह कदम क्यों महत्वपूर्ण है?
शीर्ष अदालत ने कहा कि इस तरह के गलत आदेशों से न्याय प्रणाली की विश्वसनीयता पर सवाल उठते हैं. उन्होंने बताया कि यह पहला ऐसा मामला नहीं है, बल्कि हाल ही में कई ऐसे आदेश देखने को मिले हैं. पीठ ने साफ कहा कि न्यायाधीशों को कानून और नैतिकता का पालन करना चाहिए ताकि न्यायपालिका का मान-सम्मान बना रहे.
यह मामला सिर्फ एक विवाद नहीं, बल्कि न्यायपालिका की जिम्मेदारी और उसके सही कामकाज की मिसाल है. सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया है कि कानून के नियमों का उल्लंघन करने वाले फैसलों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और ऐसे कदम उठाए जाएंगे जो न्याय व्यवस्था की सच्चाई को बनाए रखें.