सरकारी बाबू की पत्नियां ही होंगी अध्यक्ष, कैसे? SC ने यूपी की इस परंपरा को बदलने का दिया आदेश
उत्तर प्रदेश में सालों परंपरा चली आ रही है कि जिलाधिकारी या दूसरे पद पर काम करने वाले अधिकारियों की पत्नियां खुद समिति की अध्यक्ष बना दी जाती हैं. सुप्रीम कोर्ट ने इसी पर आपत्ति जताई है. कोर्ट ने कहा कि इस तरह की प्रथा, औपनिवेशिक मानसिकता की उपज है, जिसे तुरंत त्याग दिया जाना चाहिए.;
Supreme Court: देश की किसी भी सरकारी विभाग में काम करने वाले कर्मचारी के साथ उसके परिवार को भी विभिन्न तरह के लाभ मिलते हैं. कई बार सरकारी नौकरी में सिफारिश और बड़े पद पर नौकरी मिलते तक के मामले सामने आते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को ऐसी तरह एक मामले पर सुनवाई की.
जानकारी के अनुसार उत्तर प्रदेश में सालों परंपरा चली आ रही है कि जिलाधिकारी या दूसरे पद पर काम करने वाले अधिकारियों की पत्नियां खुद समिति की अध्यक्ष बना दी जाती हैं. सुप्रीम कोर्ट ने इसी पर आपत्ति जताई है. कोर्ट ने कहा कि इस तरह की प्रथा, औपनिवेशिक मानसिकता की उपज है, जिसे तुरंत त्याग दिया जाना चाहिए.
अब खत्म होनी चाहिए ऐसी परंपरा- SC
मामले की सुनाई जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की बेंच ने की. पीठ बुलंदशहर की जिला महिला समिति से संबंधित विवाद की सुनवाई कर रही थी जो 1957 से काम कर रही है. कोर्ट ने यूपी सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल के एम नटराज ने बयान पर आपत्ति जताई. कोर्ट ने कहा कि राज्य को इन समितियों से प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है. जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि उन्हें औपनिवेशिक मानसिकता से बाहर आने की जरूरत है. राज्य को इस तरह की समिति-सोसाइटी के लिए आदर्श नियम बनाने होंगे.
नए नियम बनाए यूपी सरकार- SC
कोर्ट ने कहा कि सोसाइटी रजिस्ट्रेशन अधिनियम के तहत, जिन सोसाइटी को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष लाभ दिया गया था. यूपी सरकार को नए और उचित नियम लागू करने की आवश्यकता है. यह सुनिश्चित करें कि नए नियम उप-नियमों/नियमों या नीति में ऐसा कोई प्रावधान न हो जो राज्य के प्रशासनिक अधिकारियों के परिवार के सदस्यों को पदेन पद देने की औपनिवेशिक मानसिकता को दिखाता हो. वहीं समिति की ओर से पेश वकील तपेश कुमार सिंह ने कहा कि मजिस्ट्रेट के बिना किसी पदाधिकारी को बुलाए या समिति कार्यालय का दौरा किए बिना जांच की थी. डिप्टी रजिस्ट्रार ने 17 फरवरी 2023 को पक्षों को सुने बिना ही संशोधनों को अवैध करार दिया. इसका मतलब था कि डीएम की पत्नी की अध्यक्ष बनी रहेंगी.
क्या है मामला?
संस्था ने इस आदेश के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की,जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया है. इसके बाद संस्था ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. जानकारी के अनुसार समिति को विधवाओं, अनाथों और अन्य हाशिए पर पड़े वर्गों की महिलाओं के कल्याण के लिए काम करने हेतु जिला प्रशासन द्वारा "नजूल" भूमि (सरकार द्वारा पट्टे पर दी गई भूमि) दी गई थी. बुलंदशहर जिले के डीएम की पत्नी को अध्यक्ष के रूप में कार्य करना आवश्यक था. समिति ने 2022 में उपनियमों में संशोधन करने का प्रयास किया, जिससे डीएम की पत्नी को अध्यक्ष के बजाय समिति का "संरक्षक" बना दिया गया.
कोर्ट ने कहा कि "चाहे रेड क्रॉस सोसाइटी हो या बाल कल्याण सोसाइटी, हर जगह डीएम की पत्नी ही अध्यक्ष होती है. ऐसा क्यों किया जाना चाहिए?" अगर वह समिति का मुखिया बनना चाहती हैं तो राजनीति में शामिल होना चाहिए और चुनाव लड़ना चाहिए. फिर कोर्ट ने आदेश दिया कि समिति सामान्य रूप से काम करती रहेगी, लेकिन डीएम की पत्नी को सहकारी समिति का पदाधिकारी बनने या उसके काम में हस्तक्षेप करने से रोक दिया गया है.