साल भर में कॉन्‍ट्रैक्‍ट की तरह खत्‍म नहीं कर सकते हिंदू विवाह, इलाहाबाद हाई कोर्ट का तलाक पर बड़ा फैसला

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उन नवविवाहित जोड़ो के लिए फैसला सुनाया है जो शादी को एक साल हुए बिना ही तलाक की अर्जी दे देते हैं. लेकिन अब ऐसा उनके लिए करना मुश्किल होगा क्योंकि कोर्ट ने अपने फैसले में साफ तौर से कहा है कि शादी के साल पूरे हुए बिना तलाक की अर्जी स्वीकार नहीं की जाएगी.;

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Edited By :  रूपाली राय
Updated On : 27 Oct 2025 2:38 PM IST

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि दो हिंदुओं के बीच विवाह पवित्र है, और इसे विवाह के एक साल के भीतर तब तक खत्म नहीं किया जा सकता जब तक कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत असाधारण कठिनाई या बेबुनियादी कारण न हो. न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति डोनाडी रमेश की डबल-जज बेंच ने कहा कि धारा 14 तलाक के लिए फाइल करने के लिए शादी की तारीख से एक साल की सीमा का प्रावधान करती है. इस अपवाद के साथ कि असाधारण कठिनाई या अपवाद होने पर ऐसी याचिका पर विचार किया जा सकता है.

यह फैसा सहारनपुर के एक दंपति के बाद आया. जिन्होंने शादी के एक साल की अवधि खत्म हुए बिना तलाक के लिए अर्जी दायर की. दंपति - निशांत भारद्वाज और ऋषिका गौतम - ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13-बी के तहत तलाक के लिए याचिका दायर की थी. हालांकि, इसे सहारनपुर में फैमिली कोर्ट के चीफ जस्टिस ने इस आधार पर खारिज कर दिया कि अधिनियम की धारा 14 के तहत आवेदन को आगे बढ़ाने की न्यूनतम अवधि समाप्त नहीं हुई है.

एक साल की अवधि अनिवार्य 

15 जनवरी के अपने फैसले में, बेंच ने फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली भारद्वाज द्वारा दायर पहली अपील को खारिज कर दिया, जिससे दोनों पक्षों के लिए एक साल की अवधि समाप्त होने के बाद एक नया आवेदन दायर करने का रास्ता खुला रह गया है. अदालत ने कहा, 'किसी भी नवविवाहित दम्पति को आपसी तालमेल न बैठा पाने या किसी भी अन्य वजह से तलाक की अर्जी शादी के एक साल बाद देंगे. शादी के एक साल की अवधि खत्म हुए बिना कोर्ट तलाक की अर्जी को स्वीकार नहीं करेगी. 

अनिवार्य है सात फेरे 

हालांकि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट भी हिंदू विवाह पर अपना फैसला सुना चुकी है. मई 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू विवाह को एक संस्कार बताते हुए किसी सॉन्ग डांस वायनिंग डायनिंग पार्टी जैसा न समझने की चेतवानी दी थी. उन्होंने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के तहत हिंदू विवाह की कानूनी आवश्यकताओं और पवित्रता को स्पष्ट किया है. कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया था कि हिंदू विवाह बिना सात फेरे के मान्य नहीं होगी.

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