जौनपुर में अटाला देवी मंदिर को ध्वस्त कर बनाई गई मस्जिद? जानें इतिहासकारों का क्या कहना है

Atala Masjid Jaunpur: यूपी के जौनपुर जिले में स्थित अटाला मस्जिद को लेकर विवाद पैदा हो गया है. मामला हाईकोर्ट तक पहुंच गया है. दावा किया जा रहा कि मस्जिद का निर्माण अटाला देवी मंदिर को ध्वस्त कर किया गया है. आइए जानते हैं कि इस मामले में इतिहासकारों ने क्या कहा है....;

Atala Masjid Jaunpur History In Hindi
By :  स्टेट मिरर डेस्क
Updated On : 7 Dec 2024 6:00 PM IST

Atala Masjid Jaunpur History In Hindi: मथुरा और काशी के बाद अब यूपी के कई जिलों में मस्जिद की जगह पर मंदिर होने का दावा किया जा रहा है. ताजा मामला, जौनपुर जिले का है, जहां की अटाला मस्जिद को अटाला देवी मंदिर बताते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई है. 

अटाला मस्जिद मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट में 9 दिसंबर को सुनवाई होगी. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या अटाला मस्जिद सच में मंदिर की जगह पर बनाया गया है.  आइए इस पर इतिहासकारों की राय जानते हैं...

'जौनपुर नामा' किताब में मिला अटाला मस्जिद का जिक्र

अटाला देवी मंदिर को ध्वस्त कर वहां इब्राहिम शाह शर्की के द्वारा मस्जिद बनाए जाने का जिक्र सबसे पहले जौनपुरनामा किताब में मिला है, जिसके लेखक मौलवी खैरुद्दीन हैं. इस किताब को 1833 में प्रकाशित किया गया था. यह किताब फारसी भाषा में लिखी गई थी. मौलवी नुरद्दीन जैन के द्वारा फारसी में लिखी गई किताब तजल्लिये नूर में भी मंदिर को ध्वस्त कर मस्जिद बनाने का जिक्र मिलता है. इस किताब का प्रकाशन 1905 में किया गया था.

मौलवी नूरुद्दीन जैदी ने अपनी किताब तजल्लिये नूर में लिखा कि जौनपुर किले के निर्माण के समय ही फिरोज शाह की नजर अटाला मंदिर पर पड़ी तो उसने इसे ध्वस्त करने का आदेश दिया. इसके अलावा, 1872 में प्रकाशित भूगोल जौनपुर भाग में भी अटाला मंदिर का जिक्र मिलता है.

अटाला मस्जिद को किसने बनवाया?

आज से करीब 56 साल पहले 1968 में जौनपुर के प्रमुख विद्वान और लेखक सैयद इकबाल अहमद जौनपुरी ने 'शर्की राज्य जौनपुर का इतिहास' नाम से एक किताब लिखी थी. इसमें शर्की राजवंश में जौनपुर की स्थिति के बारे में बताया गया है. इस किताब में भी अटाला मस्जिद के निर्माण के बारे में विस्तार से बताया गया है. सैयद इकबाल ने लिखा है कि अटाला मस्जिद का निर्माण 1408 ईस्वी में इब्राहिम शाह शर्की ने कराया, लेकिन उसकी नींव फ़िरोज शाह तुगलक ने 1363 ईस्वी या उसके बाद डाली थी. उन्होंने बताया कि फिरोज शाह तुगलक ने लोगों के विरोध की वजह से अटाला मस्जिद का निर्माण कार्य रोक दिया. सन 1390 ईस्वी में उसका निधन हो गया, जिसके बाद तुगलक राजकुमारों के बीच आपसी संघर्ष के चलते इस मस्जिद का निर्माण नहीं हो सका. बाद में, इस मस्जिद का निर्माण इब्राहिम शाह शर्की ने 1408 ईस्वी में पूरा किया.

अटाला मस्जिद में नहीं है एक भी मीनार

सैयद इकबाल अहमद जौनपुरी ने अपनी किताब के पेज नंबर 367-370 में लिखा है कि प्राचीन काल में अटाला मस्जिद की जगह मंदिर था, जिसे देवल अटाला कहते थे. कुछ लोगों का मानना है कि इस देवल का निर्माण जफराबाद के राजा जयचंद ने 1416 विक्रमी संवत में कराया था और अटला देवी की मूर्ति इसी में रखी थी. यही वजह है कि इस देवल का नाम अटाला हुआ.

'ए डिक्शनरी ऑफ इंडियन हिस्ट्री' में सच्चिदानंद भट्टाचार्य ने इतिहासकार ए. फ्यूहरर की लिखी किताब 'शर्की आर्किटेक्चर ऑफ जौनपुर' के हवाले से लिखा है कि अटाला मस्जिद को जौनपुर में शर्की राजवंश के इब्राहिम शाह (1402-1438) ने 1408 ईस्वी में बनवाया था. यह इमारत जौनपुर वास्तुकला का सुंदर नमूना है, लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि इस मस्जिद में एक भी मीनार नहीं है, जो आमतौर पर मस्जिदों में होती हैं.

अटाला मस्जिद को लेकर क्या है लोक मान्यता?

वृहत हिंदी कोष के मुताबिक, अटाला का मतलब होता है महल. इतिहासकारों की लिखी गई किताबों को पढ़ने से इस बात को बल मिलता है कि इसी महल में देवी की स्थापना हुई थी, जिसे अटाला देवी के नाम से जाना गया. लोक मान्यताओं के मुताबिक, जौनपुर के विकासखंड बख्शा में सुजियामऊ नाम से गांव है, जो जिला मुख्यालय से महज 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. कहा जाता है कि अटाला देवी मंदिर के विध्वंस किये जाने पर देवी की मूर्ति को पुजारी ने छिपाते हुए यहां तक लाया था. गांव में ही एक जगह पर बगीचा और तालाब को देखकर पुजारी ने एक पेड़ के पास मूर्ति को रख दिया. बाद में, उस मूर्ति को काली माता कहा जाने लगा और वहां एक भव्य मंदिर बनाया गया.

जौनपुर को क्यों जाता है शिराजे-हिंद?

जौनपुर में शर्की बंधुओं ने 1389 से 1479 ईस्वी तक शासन किया. इस दौरान यहां का सांस्कृतिक विकास हुआ. शर्की शासन में बहुत सारे विद्वान थे. इनमें कीर्तिलता की रचना करने वाले विद्यापति भी शामिल हैं. शर्की शासन में कई महान ग्रंथों की रचना की गई. उसी समय जौनपुर में कला-स्थापत्य में एक नई मिश्रित शैली का जन्म हुआ, जिसे जौनपुर शैली अथवा शर्की शैली कहा गया. इसके साथ ही, इसे गंगा-जमुनी तहजीब का अनुपम उदाहरण कहा गया.शर्की राजवंश के समय जौनपुर शिक्षा का बहुत बड़ा केंद्र था. इस दौरान कई रागों की रचना हुई, जिसमें से राग जौनपुरी की सुगंध चारों और फैली. यही समय था, जब जौनपुर को शिराज़े हिंद कहा जाने लगा. शिराज का मतलब श्रेष्ठता से होता है.

शर्की शासन के दौरान ही इब्राहिम शाह शर्की ने अटाला देवी मंदिर को ध्वस्त कर वहां अटाला मस्जिद बनाई. इतिहासकार डॉ मोतीचंद की पुस्तक 'काशी का इतिहास' में शर्की राजवंश के शासक महमूद शर्की का जिक्र है, जिसने 1436 से 1458 ईस्वी तक अपने शासन काल के दौरान बनारस के मंदिरों को ध्वस्त करना शुरू कर दिया था. इसमें काशी विश्वनाथ मंदिर भी शामिल है. इतिहासकार प्रोफेसर आशीर्वादी लाल ने अपनी किताब 'दिल्ली सल्तनत' में लिखा है कि जौनपुर की मस्जिदें, जिनको मंदिर तोड़कर बनाया गया है, उनमें मीनार नहीं हैं. शर्की निर्माण कला का एक ज्वलंत प्रमाण अटाला देवी मस्जिद है.

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