कानून नहीं, इंसानियत की है हार... बेटे की चाहत में तस्करी का शिकार हुआ बच्चा, SC ने योगी सरकार और HC को लगाई फटकार

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में बेटे की चाहत में खरीदे गए तस्करी के शिकार बच्चे के मामले में कड़ी प्रतिक्रिया दी है. कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट और राज्य सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए, सभी राज्यों को बाल तस्करी मामलों में छह महीने में सुनवाई पूरी करने और त्वरित कार्रवाई के निर्देश दिए. कोर्ट ने तस्करी के अपराधों पर ‘जीरो टॉलरेंस’ की नीति अपनाने को कहा.;

Edited By :  नवनीत कुमार
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उत्तर प्रदेश में बाल तस्करी के एक चौंकाने वाले मामले में सुप्रीम कोर्ट ने न सिर्फ आरोपियों की ज़मानत रद्द की बल्कि राज्य सरकार और न्यायिक प्रक्रिया पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. कोर्ट ने पाया कि एक दंपति ने बेटे की चाहत में 4 लाख रुपये में एक तस्करी करके लाए गए बच्चे को खरीद लिया. इस अमानवीय सौदे पर अदालत ने नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए कहा, "बेटा चाहिए तो तस्करी को क्यों जायज़ ठहराया?"

यह मामला न सिर्फ एक व्यक्तिगत अपराध है, बल्कि यह बाल अधिकारों की रक्षा में राज्य मशीनरी की नाकामी को उजागर करता है. सुप्रीम कोर्ट की जज जेबी पारदीवाला और आर महादेवन की पीठ ने साफ कहा कि बाल तस्करी जैसे मामलों में निचली अदालतें छह महीने में ट्रायल पूरा करें. कोर्ट ने यह भी कहा कि देशभर के हाई कोर्ट्स लंबित मामलों की रिपोर्ट दें और रोज़ाना सुनवाई सुनिश्चित करें.

HC को भी लगाई फटकार

इस प्रकरण में उत्तर प्रदेश के प्रशासन की भूमिका पर भी सवाल उठे. इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले और राज्य सरकार के जवाब से असंतुष्ट सुप्रीम कोर्ट ने दोनों को फटकार लगाई. अदालत ने टिप्पणी की, "जो लोग जानते हुए चोरी हुआ बच्चा खरीद रहे हैं, वे इस समाज की सबसे खतरनाक मानसिकता का हिस्सा हैं. यह कानून की नहीं, इंसानियत की भी हार है."

चाइल्ड ट्रैफिकिंग पर हो 'जीरो टॉलरेंस'

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का महत्व सिर्फ इस एक मामले तक सीमित नहीं है. यह बाल तस्करी के पूरे नेटवर्क और उससे जुड़े सामाजिक-सांस्कृतिक दबावों जैसे बेटे की चाह पर सवाल उठाता है. अदालत ने कहा कि ऐसे अपराधों पर ‘जीरो टॉलरेंस’ हो और प्रशासनिक व कानूनी अमला इसमें कोताही न बरतें.

सुप्रीम कोर्ट ने दिया मैसेज 

इस केस के बहाने सुप्रीम कोर्ट ने पूरे देश को एक स्पष्ट संदेश दिया है. बच्चों की खरीद-फरोख्त सभ्य समाज की परिभाषा के खिलाफ है. अब राज्यों के पास कोई बहाना नहीं बचा. उन्हें न केवल नीतियां बनानी होंगी, बल्कि उनका ईमानदारी से क्रियान्वयन भी सुनिश्चित करना होगा.

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