हम आत्मा लेने आए हैं...ढोल-थाली, तलवार और मंत्रोच्चार के बीच आत्मा लेने पहुंचे गांव वाले- देखिए वीडियो

मध्यप्रदेश के रतलाम मेडिकल कॉलेज में आदिवासी समुदाय के लोगों ने तीन महीने पहले मृत हुए शांतिलाल झोड़िया की ‘आत्मा’ को बुलाने का अनोखा अनुष्ठान किया, जिससे अस्पताल का कामकाज करीब एक घंटे ठप हो गया. ढोल-थाली, तलवार, पूजा की थालियां और मंत्रोच्चार के साथ आई दर्जनों ग्रामीणों की टोली लिफ्ट से तीसरी मंजिल तक पहुंची और वार्ड के बाहर पूजा-पाठ, नारियल फोड़ने और तलवार घुमाने की रस्में कीं. परिजनों का दावा था कि शांतिलाल की आत्मा अस्पताल में अटकी है, जिसे पत्थर में स्थापित कर गांव ले जाना जरूरी है.;

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By :  सागर द्विवेदी
Updated On : 22 Nov 2025 10:20 AM IST

मध्यप्रदेश के रतलाम में बुधवार शाम ऐसा नजारा दिखा, जिसे देखकर अस्पताल में मौजूद डॉक्टरों से लेकर मरीज तक अवाक रह गए. मेडिकल कॉलेज का परिसर अचानक किसी धार्मिक अखाड़े में बदल गया, जब झावनी झोड़िया गांव से आए आदिवासी समुदाय के दर्जनों लोग ढोल-थाली, पूजा की थालियां, तलवारें और मंत्रोच्चार के साथ मृतक की ‘आत्मा’ लेने अस्पताल में घुस आए. घटना ने अस्पताल की व्यवस्था को करीब एक घंटे तक पूरी तरह अस्त-व्यस्त कर दिया.

यह पूरा अनुष्ठान उस युवक शांतिलाल झोड़िया से जुड़ा था, जिसकी तीन महीने पहले विषाक्त पदार्थ सेवन से रतलाम मेडिकल कॉलेज में ही मौत हो गई थी. आदिवासी परंपरा के अनुसार, मृतक की आत्मा को उसी स्थान से "बुलाकर" घर ले जाया जाता है जहाँ उसकी मृत्यु हुई हो. बुधवार को ग्रामीण इसी अनुष्ठान के लिए मेडिकल कॉलेज पहुंचे और जिसे देखकर हर कोई हैरान रह गया.

ढोल-नगाड़ों के साथ मेडिकल कॉलेज में घुसी टोली

अस्पताल स्टाफ के सामने अचानक दर्जनों ग्रामीणों की टोली प्रकट हुई- महिलाएं गीत गाती हुई, पुरुष ढोल-थालियाँ बजाते हुए, एक महिला सिर पर पत्थर से भरी टोकरी लिए, एक व्यक्ति तलवार लहराते हुए और दूसरे के सिर से खून बह रहा था. यह अनोखी और विचलित करने वाली यात्रा अस्पताल की लिफ्ट से तीसरी मंजिल तक गई. लगभग एक घंटे तक पूरा परिसर शोर, मंत्र और अफरा-तफरी से गूंजता रहा. अस्पताल सुरक्षा और प्रशासन का कोई भी अधिकारी हस्तक्षेप नहीं कर पाया.

तीन महीने पहले हुई थी शांतिलाल की मौत

परिजनों ने बताया कि 35 वर्षीय शांतिलाल झोड़िया की मौत तीन महीने पहले मेडिकल कॉलेज में कीटनाशक पीने के बाद हुई थी. परंपरा के अनुसार, मृतक की आत्मा वहीं रहती है जहाँ देह छूटी हो, इसलिए उसे "वापस लाना" जरूरी होता है.

'पत्थर में आत्मा को स्थापित कर गांव ले जाएंगे'

टोली में शामिल महिला नीता झोड़िया जिस टोकरी को लेकर चल रही थीं, उसमें रखा भारी पत्थर शांतिलाल की आत्मा का प्रतीक बताया गया. उनके अनुसार, "इसी पत्थर में शांतिलाल की आत्मा को स्थापित कर गांव ले जाएंगे." टोकरी के साथ अगरबत्ती, दीपक और पूजा सामग्री भी रखी गई थी. मृतक की बुआ ने बताया कि शांतिलाल की आत्मा उसके बड़े भाई की बेटी को परेशान कर रही है और कहती है कि उसे मेडिकल कॉलेज से वापस ले जाओ. रिश्तेदार भूरालाल बोले- गांव पहुँचकर पत्थर को ओटले पर देवता की तरह स्थापित किया जाएगा, ताकि शांतिलाल की आत्मा किसी को परेशान न करे."

तलवारें, नारियल और मंत्र-अस्पताल में चला पूरा अनुष्ठान

लोगों ने वार्ड के बाहर पूजा की, मंत्रोच्चार किया, तलवारें घुमाईं और नारियल फोड़ा. एक घंटे तक अस्पताल का माहौल पूरी तरह धार्मिक रंग में रंगा रहा और कई मरीज व डॉक्टर असहज नजर आए. भीड़ के कारण अस्पताल का कामकाज भी बाधित हुआ.

अस्पताल में अंधविश्वास? प्रबंधन पर उठे सवाल

मेडिकल कॉलेज जैसा वैज्ञानिक संस्थान आदिवासी परंपराओं के इस तरह के आयोजन का हिस्सा बने, इस पर लोगों ने सवाल उठाए. कुछ ने इसे सांस्कृतिक मान्यता बताया, तो कई लोगों ने इसे अंधविश्वास और अस्पताल प्रशासन की चूक कहा.

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