26/11 आतंकी हमले में शहीद हुए ग्वालियर के सुशील कुमार शर्मा, 17 साल बाद अब मिलेगा शौर्य चक्र, कहां हुई चूक?

सुशील शर्मा ने 26/11 आतंकी हमले में अपनी जान गंवाई थी, लेकिन अभी तक उन्हें शौर्य चक्र से सम्मानित नहीं किया गया. कैट के आदेश के बावजूद रेलवे ने 17 साल तक उनकी शहादत को नजरअंदाज किया. अब सवाल बनता है कि क्या अब लोगों की जान की भी कोई वैल्यू नहीं.;

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Edited By :  हेमा पंत
Updated On : 8 July 2025 4:04 PM IST

26 नवंबर 2008 रात का समय. मुंबई का छत्रपति शिवाजी टर्मिनस (CST) प्लेटफॉर्म रोज़ की तरह भीड़ से भरा था. लेकिन कुछ ही मिनटों में सब बदल गया. पाकिस्तान से आए आतंकियों ने स्टेशन पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी.  उसी वक्त ग्वालियर के रहने वाले और रेलवे में असिस्टेंट चीफ टिकटिंग इंस्पेक्टर सुशील कुमार शर्मा ड्यूटी खत्म कर कंट्रोल ऑफिस जा रहे थे.

फायरिंग सुनकर ऑफिस के लोगों ने उन्हें रोकना चाहा, लेकिन सुशील नहीं रुके. उन्होंने डरते हुए लोगों को बचाना शुरू किया. अपनी जान की परवाह किए बिना लोगों को सुरक्षित स्थानों तक पहुंचाने लगे. लेकिन इसी दौरान उन्हें दो गोलियां लगीं और वो वहीं शहीद हो गए. अब 17 साल बाद उन्हें शोर्य चक्र देने की बात कही जा रही है, लेकिन सवाल यह बनता है कि आखिर क्या हमारा सिस्टम इतना कमजोर है कि  एक शहीद की शहादत को यूं ही कागजों में समेटा रखा जाए?

कैट ने माना: ये असाधारण बहादुरी थी

17 साल बाद अब जाकर केंद्रीय प्रशासनिक अभिकरण (CAT) ने सुशील की बहादुरी को सराहा है. कैट ने रेलवे बोर्ड को आदेश दिया है कि सुशील शर्मा के नाम की शौर्य चक्र के लिए सिफारिश की जाए. उनका नाम गृह मंत्रालय को भेजा जाए. उनके परिवार को 5 लाख रुपये की मुआवज़ा राशि दी जाए और ये पूरा काम 180 दिनों में पूरा किया जाए.

लेकिन सवाल ये है कि 17 साल क्यों लगे?

सुशील शर्मा ने 2008 में अपनी जान गंवाई थी और 2010 में उनकी पत्नी रागिनी शर्मा ने कैट में याचिका दायर की थी. कैट ने 2010 में ही आदेश दे दिया था, लेकिन रेलवे ने 17 साल तक उस आदेश को नजरअंदाज किया. 2011 में रेलवे ने कहा कि 'हमने उनका नाम भेजा था लेकिन उसे निरस्त कर दिया गया.' 2012 में परिवार फिर कैट पहुंचा. 2025 में अब जाकर कैट ने माना कि रेलवे ने न सिर्फ देरी की, बल्कि सुशील की शहादत को नकार दिया. 

क्या शहीद का सम्मान भी 'फाइलों' में दब कर मर जाता है?

यह सवाल हर उस भारतीय के दिल को चुभता है जो अपने देश से प्यार करता है. क्या एक शहीद को सम्मान देने के लिए भी 17 साल लगने चाहिए थे? क्या सिस्टम इतना ठंडा हो गया है कि एक वीर की कुर्बानी भी "डॉक्युमेंट प्रूफ" से मापी जाएगी? कैट ने साफ कहा कि 'सुशील ने बहादुरी दिखाई थी, उन्होंने दूसरों की जान बचाई. यह वीरता का काम है और उन्हें मरणोपरांत शौर्य चक्र मिलना ही चाहिए.

पटेल नगर का वो बेटा, जो देश के लिए अमर हो गया

सुशील शर्मा ग्वालियर के पटेल नगर के रहने वाले थे. एक साधारण रेलवे कर्मचारी, लेकिन काम ऐसा कि इतिहास में दर्ज हो गया। आज जब देश शांति से जी रहा है, तो वो सिर्फ फौजियों या पुलिस वालों की वजह से नहीं, बल्कि उन आम लोगों की कुर्बानी से भी, जो संकट की घड़ी में नायक बनकर सामने आते हैं.

अब देर नहीं होनी चाहिए

देश को अब सुशील शर्मा के परिवार से माफी मांगनी चाहिए और सम्मान सिर्फ कागज़ों पर नहीं, दिल से दिया जाना चाहिए. क्योंकि देश उन्हीं की वजह से चलता है, जो अपनी जान देकर दूसरों को बचाते हैं. 17 साल बहुत देर हो चुकी है अब और नहीं. शहीद सुशील शर्मा का बलिदान भुलाया नहीं जाएगा, लेकिन सवाल हमेशा रहेगा 'क्या हमने उन्हें समय पर पहचाना?

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