'पत्नी-बच्चों का भरण-पोषण नहीं छोड़ सकते...', हाईकोर्ट ने पति की याचिका खारिज की; कहा- कम पड़ रहा है तो और कमाओ

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने एक याचिका पर फैसला सुनाते हुए कहा कि यदि पति ₹24,700 मासिक भरण-पोषण देने में असमर्थ है, तो यह उसकी जिम्मेदारी है कि वह और अधिक कमाई करे. कोर्ट ने पति की वह दलील खारिज कर दी कि उसके पास अन्य वित्तीय जिम्मेदारियां हैं, इसलिए वह यह राशि नहीं दे सकता. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पत्नी और बच्चों का भरण-पोषण पति की कानूनी, सामाजिक और आर्थिक जिम्मेदारी है. अंततः अदालत ने फैमिली कोर्ट का आदेश बरकरार रखते हुए पति की याचिका खारिज कर दी.;

( Image Source:  ANI )
Edited By :  अच्‍युत कुमार द्विवेदी
Updated On : 2 July 2025 6:19 PM IST

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट (Punjab Haryana High Court) ने एक अहम फैसले में कहा है कि यदि पति अपनी पत्नी और बच्चों का भरण-पोषण करने में असमर्थ है, तो यह उसकी जिम्मेदारी है कि वह अधिक कमाई करे और कानूनी रूप से अपना कर्तव्य निभाए. जस्टिस जसगुरप्रीत सिंह पुरी की एकल पीठ ने उस पति की याचिका को खारिज कर दिया जिसने फैपत्नी-बच्चों का भरण-पोषण नहीं छोड़ सकते... पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने पति की याचिका खारिज की, कहा- कम पड़ रहा है तो और कमाओ

मिली कोर्ट द्वारा तय की गई ₹24,700 मासिक भरण-पोषण राशि को चुनौती दी थी. पति ने यह दलील दी थी कि उसकी आय सीमित है और उस पर अन्य वित्तीय जिम्मेदारियां हैं, जिनमें मां का इलाज और लोन की EMI शामिल है.

पति का कहना था कि वह SMS हॉस्पिटल, जयपुर में वरिष्ठ नर्स के रूप में कार्यरत है और उसकी मासिक आय ₹57,606 है. वहीं, उसने यह भी दावा किया कि उसकी पत्नी एक शिक्षिका है, लेकिन इसके समर्थन में कोई सबूत कोर्ट में पेश नहीं किया गया. दोनों की शादी 2014 में हुई थी. उनके दो बच्चे भी हैं.


"पति और मेहनत करे और ₹24,700 की राशि की व्यवस्था करे."

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कानूनन और सामाजिक रूप से यह पति की कानूनी, सामाजिक और आर्थिक जिम्मेदारी है कि वह अपनी पत्नी और बच्चों का पालन-पोषण करे. जज ने कहा, "अगर याचिकाकर्ता ₹24,700 की राशि नहीं कमा पा रहा, तो यह उसका कर्तव्य है कि वह और मेहनत करे और इस राशि की व्यवस्था करे."


'24,700 की राशि को जरा भी अधिक नहीं कहा जा सकता'

जज ने यह भी जोड़ा कि दो नाबालिग बच्चों (8 और 6 वर्ष) की परवरिश और शिक्षा में जो खर्च आता है, उसे देखते हुए ₹24,700 की राशि को जरा भी अधिक नहीं कहा जा सकता, खासकर मौजूदा समय में महंगाई की दर को ध्यान में रखते हुए. इस प्रकार, अदालत ने यह मानते हुए कि यह राशि वाजिब है, पति की याचिका को खारिज कर दिया. 

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