'Housewife के रूप में योगदान से...', दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला, कहा - संपत्ति अधिकार पर सरकार करे स्थिति साफ

Delhi High Court News: दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में साफ किया है कि केवल हाउसवाइफ के रूप में योगदान मात्र से पत्नी को पति की संपत्ति पर स्वामित्व का अधिकार नहीं मिल जाता. कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि इस मुद्दे पर स्पष्ट नीति लाने की जरूरत है. ताकि भविष्य में ऐसे मामलों में कानूनी उलझनें कम हों सके.;

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Edited By :  धीरेंद्र कुमार मिश्रा
Updated On : 13 Sept 2025 9:42 AM IST

Delhi High Court On Property Right: भारत में लंबे समय से यह बहस जारी है कि घर संभालने वाली महिलाओं के योगदान को किस तरह से कानूनी मान्यता दी जाए. अब दिल्ली हाईकोर्ट ने इस पर अहम टिप्पणी करते हुए कहा है कि सिर्फ गृहिणी होने के नाते पत्नी को पति की संपत्ति का मालिकाना हक नहीं मिल सकता. अदालत ने सरकार को निर्देश दिया है कि इस विषय पर स्पष्ट स्थिति और ठोस प्रावधान बनाए जाएं.

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा, "यदि पत्नी, जो गृहिणी है, अपने पति के नाम पर खरीदी गई संपत्ति में मालिकाना हक नहीं पा सकती, क्योंकि उसके पास घर खरीदने या बनाने में आर्थिक योगदान का कोई सबूत नहीं है."

पत्नी की भूमिका स्पष्ट नहीं

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि वित्तीय योगदान के प्रमाण के बिना गृहिणी के रूप में पत्नी की भूमिका स्पष्ट नहीं होती. ऐसे में पति के नाम पर खरीदी गई संपत्ति में स्वामित्व का अधिकार नहीं देना संभव नहीं है. हालांकि, यह स्पष्ट किया जाना चाहिए कि वैवाहिक घर में पत्नी का निवास मात्र, उसे पति के नाम पर स्थित संपत्तियों पर स्वामित्व का अविभाज्य अधिकार देती है या नहीं.

हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि उसका मानना है कि अब समय आ गया है कि ऐसे योगदानों को उनके सार्थक निष्कर्ष तक पहुंचाया जाए, क्योंकि ये योगदान छिपे रहते हैं और कम करके आंके जाते हैं. अदालत ने इस तथ्य पर भी ध्यान दिया कि वर्तमान में स्वामित्व अधिकार निर्धारण करने या यहां तक कि इन योगदानों के मूल्य का आकलन करने के उद्देश्य से गृहिणियों के ऐसे योगदानों को मान्यता देने का कोई कानूनी आधार मौजूद नहीं है.

इस मसले पर केंद्र करे पहल 

दिल्ली हाईकोर्ट के अनुसार समय के साथ विधायिका यानी सरकार से कहा है कि वो गृहिणियों के योगदान सार्थक रूप से परिलक्षित हों और इन योगदानों के आधार पर स्वामित्व के दावों के संबंध में उनके अधिकारों के निर्धारण के लिए भी इसी तरह के उपाय किए जाएं. यह फैसला आने तक अदालत केवल गृहिणियों द्वारा घर, परिवार और बच्चों की देखभाल में किए गए योगदान के आधार पर अचल संपत्ति के संबंध में स्वामित्व अधिकारों पर निर्णय लेने की अपीलकर्ता की याचिका स्वीकार नहीं कर सकता."

हाईकोर्ट ने यह फैसला पारिवारिक न्यायालय अधिनियम 1984 की धारा 19(1) के तहत एक अपील पर आया, जिसमें पत्नी ने रोहिणी पारिवारिक न्यायालय के 16 जुलाई 2025 के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उसके पति के नाम पर पंजीकृत गुड़गांव स्थित एक फ्लैट पर घोषणा और निषेधाज्ञा के लिए दायर दीवानी मुकदमे को खारिज कर दिया गया था.

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