असदुद्दीन ओवैसी को साथ लेने से डर क्यों रहे हैं लालू यादव, किस बात का उन्हें सता रहा खौफ?
राष्ट्रीय जनता दल असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम को हमेशा से बीजेपी की B-टीम के नजरिए से देखती आई है. साल 2020 में सीमांचल में एआईएमआईएम ने पांच सीटें जीतकर आरजेडी को बड़ा नुकसान पहुंचाया था. अब वही ओवैसी ने बिहार विधानसभा चुनाव इंडिया गठबंधन के साथ मिलकर लड़ने की मंशा जाहिर की है, लेकिन पर कांग्रेस और आरजेडी वाले भरोसा नहीं कर पा रहे हैं.;
बीते सप्ताह एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने इंडिया गठबंधन के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का प्रस्ताव भेजा था, लेकिन आरजेडी के जवाब से एआईएमआईएम के नेताओं को निराशा हाथ लगी है. ऐसे में असदुद्दीन की पार्टी के पास अब दो ही विकल्प है. पहला वो इंडिया गठबंधन के हित में बिहार विधानसभा चुनाव न लड़े. दूसरा वो चुनाव लड़े और पांच साल पहले की तरह कुछ सीटों पर चुनाव जीत कर दिखाए भी. ताकि जिन लोगों को एआईएमआईएम को नकारा है, उन्हें जमीनी हकीकत का पता चल सके. फिलहाल, एआईएमआईएम की ओर से इसको लेकर कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया गया, लेकिन चुनाव लड़ने के संकेत पार्टी ने दिए हैं.
अब सवाल यह उठता है कि विपक्षी एकता से आरजेडी को परेशानी क्या है? राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू यादव एआईएमआईएम को इंडिया गठबंधन में शामिल करने और मिलकर चुनाव लड़ने से बच क्यों रहे हैं? उन्हें किस बात का डर सता रहा है. अगर इंडिया गठबंधन के लोग इसी रुख पर कायम रहे तो असदुद्दीन ओवैसी ने जो धर्मनिरपेक्ष पार्टियों को मजबूत करने की कोशिश की है, वो बेकार चला जाएगा. इसका लाभ एनडीए गठबंधन वाले उठा सकते हैं.
दरअसल, बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले एआईएमआईएम प्रमुख ओवैसी ने लालू प्रसाद यादव को महागठबंधन में शामिल होने का ऑफर देकर सियासी भूचाल ला दिया था. अपने प्रस्ताव में उन्होंने कहा था कि यह फैसला उन्होंने 'धर्मनिरपेक्ष ताकतों' एकजुट करने के मकसद से उठाया है.
ओवैसी के प्रस्ताव पर तेजस्वी यादव की चुप्पी ने खड़े किए गए सवाल?
1. असदुद्दीन ओवैसी के इस प्रस्ताव के जवाब में तेजस्वी यादव की चुप्पी और RJD के ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं. इनमें पहला सवाल यह है कि क्या यह NDA को हराने की रणनीति है या एमवाई समीकरण को तोड़ने की साजिश है?
2. असदुद्दीन ओवैसी का यह कदम बिहार की राजनीति को वोटों के ध्रुवीकरण की ओर तो नहीं ले जाएगा?
3. AIMIM का दावा है कि उसने यह कदम सेक्युलर वोटों को एकजुट कर एनडीए गठबंधन को हराने के लिए उठाया है, लेकिन उस पर आरजेडी नेता भरोसा नहीं कर पा रहे हैं, क्या इससे असदुद्दीन ओवैसी प्रयासों को झटका नहीं लगेगा? इसका लाभ किसे मिलेगा, एनडीए या महागठबंधन को?
4. आरजेडी, एआईएमआईएम को हमेशा से बीजेपी की ‘B-टीम’ के रूप में देखती आई है. साल 2020 में सीमांचल में एआईएमआईएम ने पांच सीटें जीती थी. इस क्षेत्र में एआईएमआईएम की वजह से कांग्रेस और आरजेडी का बड़ा सियासी नुकसान हुआ था.
5. आरजेडी नेताओं की यह आशंका कि AIMIM का यह ऑफर क्या वास्तव में सेक्युलर एकता की कोशिश है या RJD के MY (मुस्लिम-यादव) समीकरण को तोड़ने की चाल?
सत्ता विरोधी दलों में आपसी मतभेद क्यों?
बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में AIMIM ने सीमांचल (किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया और अररिया) की 24 सीटों में से 5 सीटें जीतकर महागठबंधन को बड़ा नुकसान पहुंचाया था. इसका लाभ बीजेपी को मिला था. चुनाव के बाद के महीनों में नाराज आरजेडी ने एआईएमआईएम के 5 में से 4 विधायकों को अपने पाले में कर लिया. बिहार की राजनीति के जानकारों का कहना है कि ओवैसी का महागठबंधन को ऑफर बीजेपी की बी टीम की छवि से बाहर निकलने की रणनीति है. AIMIM के बिहार अध्यक्ष अख्तरुल इमान इस मामले में सेक्युलर वोटों का बिखराव रोकना चाहते हैं. जबकि RJD इसे सियासी चाल मानती है जिसकी वजह से इंडिया ब्लॉक में एआईएमआईएम में उसे जगह मिलना मुश्किल है.
आरजेडी के सामने हिंदू वोटरों के नाराज होने का खतरा
बिहार की राजनीति में सीमांचल (किशनगंज, कटिहार, अररिया, पूर्णिया) में 30 से 68 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है. पांच साल पहले AIMIM ने 24 में से 5 सीटें जीतकर आरजेडी और कांग्रेस की जड़ें हिला दी थी. अब ओवैसी का ऑफर सीमांचल के मुस्लिम वोटरों में को सीधा-सीधा संदेश देना चाहते हैं कि उनकी पार्टी सेक्युलर गठबंधन के साथ खड़ी है. बिहार में ओवैसी अपनी पार्टी की ओर से 50 सीटों पर प्रत्याशी उतरना वाहते हैं. तेजस्वी यादव खुद मुस्लिम वोटों को लामबंद करने के लिए आक्रामक मोड में हैं. वक्फ कानून को समाप्त करने, मुहर्रम के दिन ताजिया का राबड़ी आवास पर जाना और रबड़ी देवी का पूजा-अर्चना करना बताता है कि आरजेडी मुस्लिम मतों को एकजुट रखने को लेकर बेहद गंभीर है.
बिहार के पूर्व सीएम लालू यादव और तेजस्वी यादव को डर है कि AIMIM के साथ गठबंधन से हिंदू वोटरों में नाराजगी बढ़ेगी. BJP इसे ‘मुस्लिम तुष्टिकरण’ के रूप में माहौल बनाएगी, जो आरजेडी और महागठबंधन के लिए बड़ा खतरा साबित हो सकता है.
बिहार में हिंदू मतदाता 80 फीसदी से ज्यादा
बिहार में मुस्लिम आबादी करीब 18 प्रतिशत है. उसका 80 प्रतिशत हिंदू आबादी के बीच बढ़ता तनाव बिहार में सियासी रणनीतियों को जटिल बना दे रहा है. ऐसे में ओवैसी की ओर से महागठबंधन में शामिल का ऑफर लालू और तेजस्वी के लिए सियासी तौर पर घातक हो सकता है. यह खतरा RJD मोल लेने के मूड में नहीं है. उसकी रणनीति इस बार मुस्लिम और यादव वोटों अपने पाले में रखले के अलावा कुछ सवर्ण मतदाताओं को अपने पाले में करने की है. ताकि वो हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण को रोक सके और सत्ता में 2005 के बाद पहली बार वापसी कर सके.