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गजब है भाई! दलित और गरीबों को छोड़िए, EC ने तो बिहार के करोड़ों 'मतदाता समाज' को फंसा दिया

बिहार के मतदाताओं का कहना है कि चुनाव से ठीक पहले एसआईआर अभियान चलाना चुनाव आयोग का नासमझी भरा फैसला है. ईसी (EC) के इस फैसले से बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान 40 प्रतिशत वोटर्स के मताधिकार पर डाका पड़ सकता है. यह स्थिति चुनाव आयोग द्वारा मतदाता पहचान पत्र के लिए आधार को अमान्य और निवास प्रमाण पत्र को अनिवार्य शर्त करार देने की वजह से उत्पन्न हुई है.

गजब है भाई! दलित और गरीबों को छोड़िए, EC ने तो बिहार के करोड़ों मतदाता समाज को फंसा दिया
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बिहार विधानसभा का चुनाव नवंबर में होना है. इस बीच 28 जून को चुनाव आयोग ने मतदाता सूची को अपडेट करने के लिए एसआईआर अभियान शुरू किया था. यहां तक तो सब कुछ ठीक है, लेकिन चुनाव आयोग के एक शर्त ने बिहार के कुल मतदाताओं में से 40 प्रतिशत मदाताओं को फंसा दिया है. इसमें दलित, गरीब या अमीर सभी शामिल हैं. दरअसल, समस्या यह है कि चुनाव आयोग के सामने 40 प्रतिशत मतदाताओं को साबित करना है कि वो भारतीय के नागरिक हैं या नहीं. इसके लिए चुनाव आयोग ने आधार कार्ड को अमान्य करार दिया. जबकि पिछले तीन दशक से ज्यादा समय के दौरान सरकार कैंप लगाकर लोगों से कहती रही कि आप आधार कार्ड बनवाएं. ताकि यह साबित हो सके कि आप भारतीय हैं. अब चुनाव आयोग ने आधार को वैध दस्तावेज मानने से से ही इनकार कर दिया है.

चुनाव आयोग के इस नासमझी भरे फैसले की वजह से इस बार बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान 40 प्रतिशत वोटर्स के मताधिकार पर डाका डल सकता है. यह स्थिति चुनाव आयोग द्वारा मतदाता पहचान पत्र के लिए आधार को अमान्य और निवास प्रमाण पत्र को अनिवार्य शर्त करार देने की वजह से उत्पन्न हुई है.

बिहार में निवास प्रमाण की मांग सबसे ज्यादा

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार मतदाता पहचान-पत्र के रूप में आधार अमान्य है, लेकिन निवास प्रमाण-पत्र के लिए आवश्यक है. जबकि मतदाता बिहार की नई मतदाता सूची के लिए चुनाव आयोग के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) अभियान के लिए अपने कागजात तैयार करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. यही वजह है कि पिछले कुछ दिनों से बिहार में सबसे अधिक मांग वाला दस्तावेज निवास प्रमाण पत्र ही हो गया है.

28 जून से जारी है एसआईआर अभियान

इसका एक कारण यह है कि आवेदकों नागरिकता प्रमाण के रूप में केवल आधार सबसे वैध और आम तौर पर उपलब्ध दस्तावेज है. विडंबना यह है कि चुनाव आयोग के 11 दस्तावेजों की सूची में आधार शामिल नहीं है. 28 जून को जब चुनाव आयोग ने अपना एसआईआर अभियान शुरू किया था और 6 जुलाई के बीच प्रत्येक ब्लॉक में स्थित लोक सेवा अधिकार केंद्रों पर 13,08,684 अधिवास आवेदन प्राप्त हुए थे. यानि प्रतिदिन 70,000 की दर से आवेदन आ रहे थे. अधिकारियों ने कहा कि इनमें से 9,12,952 आवेदन अभी भी लंबित हैं.

आरटीपीएस के एक अधिकारी ने कहा कि "हमारे सीमित कर्मचारियों की संख्या को देखते हुए लंबित आवेदनों की संख्या बहुत अधिक है. दस्तावेज जमा करने की अंतिम तिथि 25 जुलाई है. तय अवधि में सभी को आवास प्रमाण पत्र जारी करना मुमकिन नहीं होगा.

ताज्जुब की बात यह है कि चुनाव आयोग तो आधार कार्ड को वैध दस्तावेज नहीं मान रहा है लिए जिला प्रशासन के अधिकारी उसी के आधार पर निवास प्रमाण बना रहे हैं. ऐसा इसलिए कि अधिवास प्रमाण पत्र के लिए आवेदक को आधार, राशन, मतदाता पहचान पत्र, साथ ही मैट्रिकुलेशन प्रमाण पत्र और अपने स्थायी निवास की पुष्टि करने वाला कोई एक दस्तावेज हलफनामा के रूप में पेश करने को कहा गया है. आरटीपीएस केंद्रों पर अधिकारियों ने पुष्टि की है कि उन्होंने अन्य दस्तावेजों को माफ कर दिया है और केवल आधार मांगा जा रहा है. अब लोग यह कह रहे हैं कि ऐसा कर चुनाव आयोग ने मतदाता ही नहीं पूरे सिस्टम को फंसा दिया है.

सुनिए, क्या कहते हैं बिहार के मतदाता?

देश 78 साल में पहचान पत्र नहीं दे पाया - मोहम्मद अफसर

चुनाव आयोग के इस फैसले पर पूर्णिया के निवासी मोहम्मद अफसर अली ने सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा कि हम आधार दिखाकर निवास प्रमाण पत्र और पासपोर्ट प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन आधार अपने आप में महत्वपूर्ण नहीं है! यह देश हमें आजादी के 78 वर्षों में एक स्थायी पहचान पत्र नहीं दे पाया है.

सौराठ के 3000 लोगों के पास नहीं है निवास प्रमाण पत्र - किशन चौधरी

मधुबनी के सौराठ निवासी किशन चौधरी ने कहाए “मैं उन कुछ भाग्यशाली लोगों में से हूं जिन्हें निवास प्रमाण पत्र मिल गया है. इसमें मेरे माता-पिता का नाम और पता लिखा है.” उनके अनुसार उनके ग्राम पंचायत के लगभग 3,000 लोग अभी भी अपने निवास प्रमाण पत्र का इंतजार कर रहे हैं.

सरकारी नौकरी मिलने पर लोग बनवाते हैं निवास प्रमाण पत्र - अक्षय सिंह

पूर्णिया के विद्या विहार इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के कर्मचारी अक्षय कुमार सिंह ने कहा, "एक प्रशासक के रूप में मैंने देखा है कि केवल छात्र या सरकारी नौकरी वाले ही निवास प्रमाण पत्र के लिए आवेदन करते हैं."

पूर्णिया के श्रीनगर के चिमाया एन सिंह ने कहा कि वह अपने गांव में शायद ही किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हैं जिसके पास निवास प्रमाण पत्र हो. इसकी जरूरत तभी पड़ती है जब किसी के बेटे या बेटी को नौकरी मिल जाती है.

वर्क ओवरलोड बड़ी समस्या - आरटीपीएस अफसर

एक अधिकारी ने कहा कि वे आम तौर पर पांच-छह दिनों के भीतर आवेदनों को निपटा देते हैं, जो 15 दिनों की समय सीमा से काफी कम है, लेकिन आवेदनों की बाढ़ को देखते हुए यह मुश्किल साबित हो रहा है. पटना आरटीपीएस के एक अधिकारी ने इसे "सिस्टम का ओवरलोड" बताते हुए कहा, "जो लोग अगले 10 दिनों में आवेदन करेंगे, वे 25 जुलाई की समय-सीमा तक आवेदन नहीं कर पाएंगे."

क्या है SIR का मामला?

बिहार में गहन मतदाता सूची पुनरीक्षण यानि (SIR) का काम 28 जून से युद्ध स्तर पर जारी है. अब तक कुल मतदाताओं में 93 फीसदी मतदाताओं को गणना फार्म (Enumeration form) दिया जा चुका है, जिसमें से 13.19 फीसदी लोगों ने उसे जमा भी करा दिया है. बिहार में कुल 7.98 करोड़ मतदाता हैं. गणना फॉर्म भरने की आखिरी तारीख 25 जुलाई है.

लोगों को आशंका है कि चुनाव आयोग इस काम को जितना आसान मान कर चल रही है, उतना आसान यह काम नहीं है. ऐसा इसलिए कि ईसी ने वैध दस्तावेज के रूप में आधार कार्ड को अमान्य कर दिया है.

चुनाव आयोग ने तय किया है कि जिन लोगों के नाम 1 जनवरी 2003 से पहले भी मतदाता सूची में शामिल थे, उनको केवल गणना फॉर्म भरना होगा. उन्हें और कोई दस्तावेज नहीं लगाना होगा.

बिहार में कुल 7.98 करोड़ मतदाताओं में से लगभग 60 प्रतिशत मतदाता ऐसे हैं जिनके नाम 1 जनवरी 2003 से पहले भी शामिल थे. यानी 40 प्रतिशत मतदाताओं को गणना फॉर्म के साथ-साथ अपनी पहचान का एक दस्तावेज भी लगाना होगा. किन पहचान पत्रों को लगाया जा सकता है, उसकी सूची चुनाव आयोग ने जारी की हुई है.

हालांकि, दस्तावेजों को लेकर विपक्षी इंडिया गठबंधन के साथ साथ उपेन्द्र कुशवाहा जैसे एनडीए सहयोगियों ने भी कुछ सवाल खड़े किए हैं. इनका तर्क है कि करोड़ों लोगों के पास जरूरी दस्तावेज नहीं हैं, लिहाजा 25 जुलाई तक फार्म जमा करना मुश्किल होगा.

बिहार विधानसभा चुनाव 2025बिहार
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