ना नीतीश ना तेजस्‍वी... क्‍या बिहार में इस बार हो सकता है बड़ा खेला, नीतीश के अपने पराए क्यों कह रहे ऐसा?

बिहार चुनाव में महागठबंधन की ओर से अनौपचारिक तौर पर ही सही तेजस्वी यादव सीएम फेस हैं. एनडीए की बात करें तो वहां पहले से यह तय है कि नीतीश कुमार गठबंधन का नेतृत्व करेंगे, लेकिन प्रशांत किशोर व अन्य नेताओं का कहना है कि जितना लोग सियासी तस्वीर को साफ समझ रहे हैं, वो उतनी ही धुंधली है.;

By :  धीरेंद्र कुमार मिश्रा
Updated On : 8 Aug 2025 7:00 PM IST

बिहार की राजनीति में हमेशा से उतार-चढ़ाव आते रहे हैं, लेकिन बीते कुछ दिनों के दौरान नेताओं की बयानबाजी ने सबको हैरान कर रख दिया है. बिहार चुनाव में इस बार जीत या हार किसी की भी हो, सीएम कौन होगा, इसके बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है. मोटे तौर पर एनडीए से नीतीश कुमार और महागठबंधन से तेजस्वी यादव इसके प्रमुख दावेदार हैं, लेकिन राजनीति में समीकरण हमेशा बदलते रहते हैं. क्या बिहार में इस बार सियासी रिश्तों की परिभाषा बदलने वाली है? आइए,जानते हैं राजनीतिक ड्रामे के पीछे की असली वजह क्या है?

दरअसल, बिहार की सियासत हमेशा से देश की राजनीति के केंद्र में रही है. यहां की राजनीति में जातीय समीकरण, क्षेत्रीय प्रभाव और विकास के मुद्दे हमेशा चर्चा में रहते हैं. इस बार प्रशांत किशोर, चिराग पासवान, नीतीश कुमार, तेज प्रताप यादव, सम्राट चौधरी और तेजस्वी यादव सबसे ज्यादा सुर्खियों में हैं. महागठबंधन की ओर से अनौपचारिक तौर पर ही सही तेजस्वी यादव सीएम फेस हैं. एनडीए की बात करें तो नीतीश कुमार पहले की तरह गठबंधन का नेतृत्व करेंगे, लेकिन प्रशांत किशोर व अन्य नेताओं का कहना है कि जितना लोग सियासी तस्वीर को साफ समझ रहे हैं, वो उतनी ही धुंधली है.

आलोचकों और विरोधियों का आरोप है कि प्रशांत किशोर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की 'बी-टीम' हैं और उनका मकसद विपक्ष के वोटों को बांटना है. इसके अलावा, बिहार की जाति-आधारित राजनीति और संगठनात्मक कमजोरियां भी उनके लिए मुश्किलें खड़ी कर रही हैं.

57 फीसदी वोटर्स करते हैं जाति आधारित मतदान

साल 2018 में अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय और लोक नीति द्वारा किए गए एक अध्ययन के मुताबिक बिहार के 57 प्रतिशत लोग अपने ही जाति के नेताओं को प्राथमिकता देते हैं. वर्तमान में कुर्मी/कोइरी, अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी), अति दलित (महादलित), और ऊंची जातियां राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का समर्थन करती हैं. वहीं, यादव और मुस्लिम समुदाय, जो बिहार की आबादी का 32 प्रतिशत हैं, महागठबंधन के प्रबल समर्थक हैं.

बदलाव की बात क्यों?

जन सुराज पार्टी के प्रमुख प्रशांत किशोर बिहार के चुनाव को जाति आधारित चुनाव से वर्ग-आधारित चुनाव में तब्दील करना चाहते हैं. वह पिछले 35 सालों में नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव के शासन में विकास की कमी को प्रमुखता से उठा रहे हैं. उनकी रणनीति है कि बिहार के मतदाताओं को जाति की बजाय विकास और रोजगार जैसे मुद्दों पर एकजुट किया जाए, लेकिन क्या यह रणनीति बिहार जैसे राज्य में कामयाब हो पाएगी, जहां जातीय समीकरण राजनीति की रीढ़ हैं?

लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास के प्रमुख चिराग पासवान राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के हिस्सा हैं. वह केंद्र सरकार में मंत्री भी हैं. चुनाव प्रचार के दौरान कई बार कह चुके हैं कि नीतीश कुमार ही बिहार में एक बार और सीएम बनेंगे. दूसरी तरफ वो ये भी कहते हैं कि बिहार को युवा नेतृत्व की जरूरत है. वो बिहार की अस्मिता की भी बात करते हैं. उन्होंने को सही मायने में विकास के लिए नेतृत्व में बदलाव की जरूरत है. बिहार को एक ऐसे नेतृत्व की जरूरत है, जो युवाओं की जरूरतों को समझ सके.

इसी तरह महागठबंधन की बात करें तो तेजस्वी यादव सीएम बने इसकी बात सब करते हैं, लेकिन राहुल गांधी, कन्हैया कुमार, पप्पू यादव और वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी उन्हें आधिकारिक तौर पर सीएम चेहरा नहीं माना है. अब तो टीम तेज प्रताप के प्रमुख और लालू प्रसाद यादव के बेटे तेज प्रताप यादव खुद तेजस्वी पर धोखा देने का आरोप लगा रहे है. मुकेश सहनी तेजस्वी यादव से 60 सीटों की मांग पर अड़े हैं. वह महागठबंधन में शामिल दलों की हाल ही में बैठक में शामिल नहीं हुए थे. उस दिन वो दिल्ली में थे. उनकी अनुपस्थिति को लेकर तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं.

बिहार में किसका कितना प्रभाव

बिहार की राजनीति में 3 पार्टियां सबसे ज्यादा प्रभावशाली हैं. राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी), जनता दल यूनाइटेड और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा). इनमें से जेडीयू के पास सत्ता की चाबी है. जिस गठबंधन के साथ जेडीयू जाती है, वह सत्ता में आता है. एनडीए में नीतीश कुमार की जेडीयू, भाजपा, चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी, जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मंच शामिल हैं.

इंडिया गठबंधन में लालू प्रसाद यादव की आरजेडी, कांग्रेस, मुकेश साहनी की विकासशील इंसान पार्टी, और वामपंथी दल शामिल हैं. इसके अलावा, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम), बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी), और अब जन सुराज पार्टी जैसे छोटे दल भी हैं, जो किसी बड़े गठबंधन का हिस्सा नहीं.

इसके अलावा, तेज प्रताप यादव टीम ने भी पांच दलों का गठबंधन नया गठबंधन बनाया है. एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन की पार्टी भी सीमांचल और आसपास के क्षेत्रों में पार्टी के विस्तार और चुनाव में स्थानीय दलों से गठबंधन करने को लेकर मुहिम में जुटी है. यानी बिहार में क्या होगा, यह अभी तय नहीं है.

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