जेपी आंदोलन में साथ खाई लाठी, इमरजेंसी का किया विरोध; कभी थे दोस्त अब कैसे पॉलिटिकल दुश्मन बने लालू-नीतीश

लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार की दोस्ती 1970 के दशक में शुरू हुई, जब वे जेपी आंदोलन से जुड़े. राजनीति में साथ बढ़े, लेकिन 1994 में अलग हो गए. 2005 में नीतीश ने भाजपा संग सरकार बनाई, फिर 2015 में लालू संग आए, पर 2017 में फिर दूर हो गए. उनकी कहानी दोस्ती से दुश्मनी तक के सफर की मिसाल है.;

Curated By :  नवनीत कुमार
Updated On : 11 March 2025 1:03 PM IST

लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार की दोस्ती और दुश्मनी की कहानी बिहार की राजनीति की सबसे दिलचस्प दास्तानों में से एक है. दोनों ने एक साथ राजनीति की शुरुआत की, लेकिन समय के साथ उनके रिश्तों में उतार-चढ़ाव आते रहे. आइए जानते हैं कि कैसे दोनों पहले अच्छे दोस्त बने और फिर राजनीतिक दुश्मन बन गए.

लालू और नीतीश की दोस्ती 1970 के दशक में शुरू हुई, जब दोनों जेपी आंदोलन में सक्रिय थे. इसी आंदोलन ने बिहार में नई राजनीतिक पीढ़ी को जन्म दिया, जिसमें लालू और नीतीश भी शामिल थे.

1990 में लालू बने थे सीएम

1977 में जब जनता पार्टी की सरकार बनी तो लालू और नीतीश दोनों इसमें शामिल हो गए. लालू ज्यादा लोकप्रिय हुए और 1990 में बिहार के मुख्यमंत्री बन गए, जबकि नीतीश भी जनता दल में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने लगे. दोनों दोस्त थे, लेकिन लालू के मुख्यमंत्री बनने के बाद दोनों के रास्ते अलग-अलग होने लगे. लालू की राजनीति अधिक जातीय समीकरणों और सामाजिक न्याय पर केंद्रित थी, जबकि नीतीश विकास की राजनीति की ओर झुक रहे थे.

नीतीश ने बनाई थी समता पार्टी

1994 में नीतीश कुमार ने जनता दल से अलग होकर 'समता पार्टी' बनाई. यह पहला बड़ा संकेत था कि दोनों की राहें अब अलग हो रही हैं. 1996 में चारा घोटाले के कारण जब लालू प्रसाद यादव को इस्तीफा देना पड़ा, तो उन्होंने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बना दिया. इस फैसले ने बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी और नीतीश ने इसे परिवारवाद बताया. चारा घोटाले के कारण बिहार में लालू की छवि खराब हुई, जिससे नीतीश को राजनीति में मजबूती मिली. उन्होंने सुशासन और भ्रष्टाचार मुक्त सरकार का नारा देकर खुद को लालू के विकल्प के रूप में पेश किया.

बीजेपी के सहयोग से बने सीएम

नीतीश ने 1999 में बीजेपी के साथ गठबंधन किया और 2005 में जब बिहार में चुनाव हुए, तो भाजपा के साथ मिलकर नीतीश ने सत्ता हासिल की और लालू की पार्टी को करारी हार मिली. वहीं, लालू प्रसाद यादव राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता के रूप में कांग्रेस के साथ जुड़े रहे. 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी को हराने के लिए लालू और नीतीश फिर एक साथ आए. महागठबंधन बना और नीतीश मुख्यमंत्री बने, लेकिन यह दोस्ती ज्यादा समय तक नहीं चली.

कई बार मार चुके हैं पलटी

2017 में नीतीश ने महागठबंधन छोड़कर फिर से बीजेपी का दामन थाम लिया और एक बार फिर लालू के राजनीतिक दुश्मन बन गए. ऐसे ही कई बार नीतीश कुमार ने एनडीए का दामन छोड़कर राजद के साथ आ चुके हैं और उनके नेतृत्व में लालू यादव के बेटे तेजस्वी यादव डिप्टी सीएम बने हैं. लालू और नीतीश की कहानी बताती है कि राजनीति में कोई स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता. दोनों कभी अच्छे दोस्त थे, फिर कट्टर राजनीतिक विरोधी बने, फिर दोस्ती की और फिर अलग हो गए. बिहार की राजनीति में इन दोनों नेताओं की भूमिका हमेशा अहम रही है, और आगे भी इनके रिश्ते में नए मोड़ देखने को मिल सकते हैं.

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