बेरोजगारी और कानून व्यवस्था दूर करने की चुनौती..., दसवीं बार सीएम बने नीतीश के सामने खड़े हैं 6 बड़े चैलेंज
बिहार के गांधी मैदान में शपथ लेने के बाद नीतीश कुमार नवगठित सरकार के सीएम बन गए. वह 10वीं बार बिहार के सीएम बने हैं, जो अब तक सबसे बड़ा रिकॉर्ड है. एनडीए सरकार का मुखिया बनने के बाद नीतीश कुमार के सामने अब राजनीतिक स्थिरता से लेकर कानून-व्यवस्था और रोजगार जैसे कई बड़े मुद्दे हैं, जिनसे पार पाना होगा. जानें वो 6 सबसे अहम चुनौतियां, जो उनकी नई पारी का असली इम्तिहान साबित होंगी.;
बिहार की राजनीति एक बार फिर करवट ले चुकी है और इसके केंद्र में हैं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार. गठबंधनों के फेरबदल और बदलते जनमत के बीच अब उनके सामने सुशासन की छवि को फिर से स्थापित करने के लिए बिहार में प्रशासनिक सुधार, रोजगार सृजन और राजनीतिक स्थिरता बनाए रखने जैसी कई बड़ी चुनौतियां खड़ी हैं. सुशासन बाबू के लिए नई पारी जितनी अहम है, उतनी ही कठिन भी. आइए जानते हैं, नीतीश के सामने वे कौन सी 6 बड़ी चुनौतियां हैं, जो आने वाले समय में उनके शासन की दिशा तय करेगी.
नीतीश कुमार की 6 बड़ी चुनौतियां
1. बेरोजगारी और आर्थिक ठहराव
बिहार में रोजगार एक बड़ा मुद्दा है. चुनाव प्रचार के दौरान युवाओं सबसे ज्यादा इसी पर जोर दिया था. वर्तमान में बिहार की आबादी 13.70 करोड़ है. बेरोजगारी दर करीब 3.5 फीसद है. क्वालिटी एजुकेशन का अभाव, रोजगार के अवसरों की कमी और जनसंख्या का तेजी से बढ़ना बेरोजगारी का मुख्य कारण है. रोजगार सृजन के लिए निवेश आकर्षित करना होगा. निवेश न होने से बिहार का जीडीपी भी बहुत कम है. श्रम आधारित उद्योगों को बढ़ाना होगा. सरकारी नौकरियों में भर्ती तेज करने होंगे. नीतीश कुमार ने बिहार की जनता से पांच साल में एक करोड़ रोजगार या उसके अवसर मुहैया कराने होंगे. इसके तहत प्रवासी मजदूरों के लिए स्थायी नीति बनाना उनके लिए जरूरी है.
2. कानून व्यवस्था
बिहार में हाल के कुछ महीनों में अपराध और गैंगवार की घटनाओं ने चिंता बढ़ाई है. कानून-व्यवस्था की मजबूत पकड़ ही सरकार की स्थिरता की कुंजी बनेगी. इस राह में उद्योगपति खेमका हत्याकांड सहित कई ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिसने लोगों में असुरक्षा का भाव पैदा किया है. प्रदेश के लोग यह समझ नहीं पा रहे हैं कि नीतीश के राज में भी जंगलराज कैसे लौट सकता है? नीतीश को इस मोर्चे पर भी सख्त कदम उठाने होंगे. बाहुबलियों को नियंत्रित करने के साथ कानून विरोधियों के खिलाफ भी बड़े पैमाने पर कार्रवाई करनी होगी. बिहार में शराब माफिया कानून व्यवस्था के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरा है.
सुशासन बाबू की छवि हाल के वर्षों में कमजोर हुई है. ये बात अलग है कि वो चुनाव जीतकर गठबंधन सरकार बनाने में सफल हुए हैं. उन्हें पुलिस व्यवस्था में सुधार, अपराध नियंत्रण और तेज और सख्त प्रशासनिक फैसले लेने होंगे.
3. चुनावी वादे पूरे करने के लिए पैसे कहां से लाएंगे?
बिहार जैसे सीमित संसाधनों वाले राज्य में बड़े चुनावी वादे पूरा करना हमेशा चुनौती रहा है. नीतीश कुमार की नई सरकार के सामने भी सबसे बड़ा सवाल यही है कि अतिरिक्त फंड की व्यवस्था कैसे होगी? नीतीश कुमार एनडीए के साथ हैं, इसलिए सबसे बड़ा फंड-सोर्स केंद्र सरकार हो सकता है. केंद्र सरकार के जरिए स्पेशल पैकेज, विशेष सहायता और बिहार की योजनाओं में केंद्र हिस्सेदारी को बढ़ाने का दबाव बना सकते हैं. या फिर राज्य का खुद का राजस्व बढ़ाने के लिए टैक्स लगाएंगे, शराबबंदी को हटाकर वैकल्पिक रेवन्यू का स्रोत बनाएंगे, स्टाम्प ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन फीस में सुधार, पेट्रोल-डीजल पर राज्य वैट में मामूली बढ़ोतरी कर पैसे की कमी को पूरा करेंगे? इस राह में सुशासन बाबू की लोकप्रिय छवि सबसे बड़ी बाधा है. क्या वो इससे बाहनर निकलने की कोशिश करेंगे.
4. बुनियादी ढांचे में तेजी
सड़क, बिजली, स्वास्थ्य, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में काफी काम हुआ, लेकिन काम की गुणवत्ता पर लगातार सवाल उठते हैं. फिर इन क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर और काम करने की जरूरत है. बिहार की आबादी करीब 14 करोड़ है. इसके लिए जितनी संख्या में अस्पताल, उच्च शिक्षा संस्थान व अन्य सुविधाओं की जरूरत है, वो दूसरे राज्यों की तुलना में बहुत कम है. हर जिले में मेडिकल कॉलेज, यूनिवर्सिटी और ग्रामीण बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की चुनौती है. बिहार में एक एम्स खुल गया है और दूसरा दरभंगा में बन रहा है, लेकिन उन्हें इन अस्पतालों में बेहतर चिकित्सा सुविधा लोगों को मिले, इस बात को भी सुनिश्चित करना होगा. शिक्षा की गुणवत्ता में बहुत लचर है. जल-जीवन-हरियाली जैसे प्रोजेक्ट को धरातल पर गति चाहिए. चुनाव प्रचार के दौरान नीतीश कुमार ने सात एक्सप्रेसवे बनाने का वादा किया था. इन वादों को वो कैसे पूरा करेंगे. यह अहम सवाल है.
5. औद्योगीकरण
बिहार लंबे समय से औद्योगिक पिछड़ेपन से जूझ रहा है. भूमि, लॉजिस्टिक्स, निवेश, बिजली और कुशल श्रमिक जैसे बुनियादी मुद्दों के कारण राज्य बड़े उद्योगों का केंद्र अभी तक विकसित नहीं हो पाए हैं. ऐसी स्थिति में सवाल यह है कि नीतीश कुमार अपनी सरकार के नए चरण में औद्योगीकरण को कैसे आगे बढ़ा सकते हैं? बड़े पैमाने पर इंडस्ट्रियल क्लस्टर और पार्कों का विकास. चुनावी वादों के तहत बिहार में सात औद्योगिक पार्क विकसित करना होगा. इसके अलावा, फूड प्रोसेसिंग पार्क, टेक्सटाइल और गारमेंट पार्क, IT/ITeS पार्क, MSME क्लस्टर, पहले से मौजूद 16 औद्योगिक क्षेत्रों का अपग्रेडेशन कर पाएंगे नीतीश कुमार .
इन योजनाओं को अंजाम देने के लिए उन्हें निवेश आकर्षित करने के लिए नई इंडस्ट्रियल पॉलिसी लानी होगी. निवेकों को टैक्स से छूट देना होगा. जमीन पर स्टाम्प ड्यूटी में छूट देना होगा, ऑनलाइन सिंगल विंडो क्लीयरेंस ओर इंवेस्टमेंट सब्सिडी स्कीम को आगे बढ़ाना होगा. पटना–गया–बिहटा और राजगीर–नालंदा बेल्ट बड़े औद्योगिक हब के रूप में विकसित किए जा सकते हैं. बिहटा एयरपोर्ट और गंगा पोर्ट, पटना, गया और भागलपुर में स्टार्टअप हब विकसित करने की भी योजना प्रस्तावित है.
6. स्थिर सरकार
बिहार में गठबंधन बदलने की लगातार छवि की वजह से पिछले कुछ वर्षों में नीतीश से लोगों का भरोसा कमजोर हुआ है. इसलिए, एनडीए के भीतर तालमेल, सीट शेयरिंग, रणनीति व नेतृत्व को लेकर संतुलन साधना मुश्किल होगा. विपक्ष लगातार अस्थिरता का मुद्दा उठाकर दबाव बढ़ेगा. इस टैग से पार पाने के लिए नीतीश कुमार को स्थिर सरकार देना होगा. तभी बिहार का भला भी होगा. अहम सवाल यह है कि क्या नीतीश अगले पांच साल में ये काम कर पाएंगे.