जातीय जनगणना से EBC का मसीहा बने नीतीश कुमार, क्या 2025 में भी कायम रहेगा जादू? जानिए 'पलटू कुमार' 20 साल से क्यों हैं अजेय
नीतीश कुमार पिछले दो दशकों से बिहार की राजनीति का केंद्र बने हुए हैं, भले ही उनकी पार्टी जेडीयू को कभी पूर्ण बहुमत नहीं मिला. उन्होंने एनडीए और यूपीए के बीच कई बार पाला बदला, जिससे उन्हें 'पलटू कुमार' कहा जाने लगा. शुरू में लव-कुश (कुर्मी-कोयरी) समीकरण पर भरोसा किया, लेकिन बाद में अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) को केंद्र में लाकर अपनी पकड़ मजबूत की. 2023 की जातीय जनगणना से उन्होंने 36% वोटबैंक का दावा कर खुद को सामाजिक न्याय का प्रतिनिधि दिखाया. हालांकि, चिराग पासवान की चुनौती और मुस्लिम वोटों में...;
Nitish Kumar, Bihar Elections 2025: पिछले दो दशकों से नीतीश कुमार बिहार की राजनीति की धुरी बने हुए हैं. न खंडित जनादेश उन्हें रोक सका, न राजनीतिक विरोधी. यह तथ्य और भी दिलचस्प है कि उनकी पार्टी जदयू आज तक राज्य विधानसभा में पूर्ण बहुमत नहीं पा सकी, फिर भी वे मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बार-बार लौटते रहे हैं.
नीतीश को ‘पलटू कुमार’ कहने वाले आलोचकों के लिए उनका एनडीए और यूपीए के बीच बार-बार आना-जाना एक मुद्दा रहा है. 1999 से लेकर अब तक वे कम से कम छह बार गठबंधन बदल चुके हैं. 1999 से 2013 तक भाजपा के साथ, 2015 में राजद-कांग्रेस के साथ, 2017 में फिर एनडीए में, 2022 में इंडिया गठबंधन, और 2024 में फिर एनडीए में वापसी.
क्यों है नीतीश कुमार सभी दलों के लिए 'अनिवार्य'?
महज 3 फीसदी आबादी वाले कुर्मी समुदाय से आने वाले नीतीश ने शुरुआत में 'लव-कुश' (कुर्मी-कोइरी) समीकरण पर भरोसा किया, लेकिन समय के साथ उन्होंने अपनी पहुंच को EBC (अत्यंत पिछड़ा वर्ग) की 122 जातियों तक बढ़ा लिया , जिससे वे इस वर्ग के 'पोस्टर बॉय' बन गए. यही कारण है कि तमाम राजनीतिक उठापटक के बावजूद, नीतीश को कोई भी दल नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता.
जातीय जनगणना: एक रणनीतिक 'सोशल जस्टिस कार्ड'
2023 में नीतीश कुमार ने जातीय जनगणना करवा कर न केवल अपनी सामाजिक न्याय की छवि को फिर से स्थापित किया, बल्कि यह भी स्पष्ट कर दिया कि वे 36% से अधिक वोट बैंक के स्वाभाविक दावेदार हैं. इसके मुकाबले लालू प्रसाद यादव की MY (मुस्लिम-यादव) वोटबैंक लगभग 32% मानी जाती है.
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, जातीय जनगणना का उद्देश्य नीतीश को लव-कुश नेता से ऊपर उठाकर सम्पूर्ण EBC नेतृत्व का चेहरा बनाना था. साथ ही, यह राजद को स्पष्ट संकेत भी था कि नीतीश की पकड़ केवल एक वर्ग तक सीमित नहीं है.
2020 में खराब प्रदर्शन के बावजूद मजबूत पकड़
2020 विधानसभा चुनाव में जदयू का प्रदर्शन सबसे कमजोर रहा, लेकिन 115 सीटों पर पार्टी ने 32.83% वोट शेयर हासिल किया. यह दर्शाता है कि नीतीश का कोर वोटर बेस अब भी मजबूत है. जब 7% लव-कुश (कुर्मी+कोइरी) और 26% गैर-मुस्लिम EBC को जोड़ते हैं, तो आंकड़ा लगभग 33% हो जाता है.
नीतीश ने छात्र क्रेडिट कार्ड, स्कॉलरशिप, स्कूल यूनिफॉर्म, मुफ्त किताबें, व्यावसायिक प्रशिक्षण, हाउसिंग और रोज़गार जैसी योजनाओं के ज़रिए EBC समुदाय को लगातार साधा है.
चुनौती: चिराग पासवान और बदलता समीकरण
इस बार की सबसे बड़ी चुनौती चिराग पासवान के रूप में सामने आ रही है, जिन्होंने एलजेपी (रामविलास) के साथ सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की है. चिराग का वोटबैंक भी EBC और अनुसूचित जातियों में है, जो जदयू के लिए बड़ा खतरा बन सकता है. इसके अलावा, नीतीश कुमार की गिरती स्वास्थ्य स्थिति और विपक्ष द्वारा उठाए गए सवाल भी उन्हें घेरे हुए हैं.
2025 का विधानसभा चुनाव नीतीश कुमार के लिए सिर्फ सत्ता का संघर्ष नहीं, बल्कि उनके EBC ‘पोस्टर बॉय’ टैग और राजनीतिक प्रासंगिकता की अग्नि परीक्षा भी होगी. क्या वे एक बार फिर खुद को 'अपरिहार्य' साबित कर पाएंगे? इसका जवाब आने वाले महीनों में बिहार की जनता देगी.