अनंत सिंह के लिए जेल जाना न बन जाए संजीवनी... मोकामा में जाति, सहानुभूति और पावर का हाई-वोल्टेज चुनावी खेल

बिहार की सियासत में ‘बाहुबली’ अनंत सिंह का नाम हमेशा से डर और असर दोनों का पर्याय रहा है. अब जबकि जनता दल (यू) के इस दिग्गज नेता को गैंगस्टर से नेता बने दुलार चंद यादव की हत्या के मामले में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया है, बिहार की राजनीति में नया भूचाल आ गया है. अनंत सिंह की गिरफ्तारी ने मोकामा विधानसभा क्षेत्र की पूरी चुनावी समीकरणों को हिला कर रख दिया है.;

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Edited By :  प्रवीण सिंह
Updated On : 4 Nov 2025 2:05 PM IST

जेडीयू के कद्दावर नेता और मोकामा के बहुचर्चित बाहुबली अनंत सिंह की गिरफ्तारी ने बिहार की राजनीति में भूचाल ला दिया है. दुलारचंद यादव की हत्या के आरोप में जेल भेजे जा चुके अनंत सिंह भले ही चुनाव मैदान से बाहर हों, लेकिन उनकी राजनीतिक पकड़ और उनके आसपास बना शक्ति-तंत्र अभी भी पहले की तरह सक्रिय है. मोकामा में उनकी गिरफ्तारी ने चुनावी समीकरणों को उल्टा-पुल्टा कर दिया है - लेकिन दिलचस्प बात यह है कि इससे उन्हें नुकसान कम, फायदा ज़्यादा होता दिख रहा है.

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, अनंत सिंह के जेल जाने से जहां विरोधी दल खुले मैदान में उतरकर हमला बोल रहे हैं, वहीं दूसरी ओर उनकी पत्नी नीलम देवी ने चुनाव की कमान संभाल ली है. केंद्रीय मंत्री और क्षेत्रीय सांसद ललन सिंह समेत कई बड़े नेता उनके समर्थन में कूद पड़े हैं. ललन सिंह ने तो यहां तक कह दिया, “हर व्यक्ति को इस चुनाव में अनंत सिंह की तरह लड़ना चाहिए.”

मोकामा के चुनावी मैदान में ‘अनंत फैक्टर’ लौट आया

दो दशक से अधिक समय से मोकामा की राजनीति अनंत सिंह के इर्द-गिर्द घूमती रही है. उनका बाहुबली प्रभाव, स्थानीय पकड़, और जातीय समीकरण - यह सब उन्हें अजेय बनाते रहे. उनके जेल जाने से पहली बार विपक्षियों को खुलकर प्रचार करने का मौका मिला. लेकिन वहीं अनंत सिंह के समर्थकों में यह भाव फैलने लगा है कि यह गिरफ्तारी “सियासी साजिश” है. दिलचस्प बात यह है कि अनंत सिंह दो बार पहले भी जेल में रहते हुए चुनाव जीत चुके हैं. और इसी इतिहास की वजह से उनकी गिरफ्तारी को उनके समर्थक कमज़ोरी नहीं, बल्कि शहादत की तरह देख रहे हैं. इस बार भी नीलम देवी का मैदान में उतरना और नेताओं का खुला समर्थन, इस बात का संकेत है कि मोकामा में लड़ाई अब सिर्फ चुनाव की नहीं, बल्कि प्रतिष्ठा और वर्चस्व की बन चुकी है.

जातीय समीकरण: मोकामा की राजनीति की असली धुरी

मोकामा की राजनीति में जाति एक निर्णायक तत्व है.

  • अनंत सिंह - भूमिहार समुदाय से
  • दुलार चंद यादव - यादव (OBC) समुदाय से
  • गिरफ्तार सहयोगी मणिकांत ठाकुर - OBC
  • रंजीत राम - दलित समुदाय से

पुलिस द्वारा तीन अलग-अलग जातियों के लोगों को गिरफ्तार करना इस कारण भी महत्वपूर्ण था कि सरकार यह संदेश देना चाहती थी कि “कानून के सामने कोई जाति नहीं, कोई रुतबा नहीं.” ऐसा करके पुलिस ने विपक्ष द्वारा खड़ा किए जा रहे “फॉरवर्ड बनाम बैकवर्ड” नैरेटिव को कमजोर कर दिया. विपक्ष यही दिखाना चाहता था कि अनंत सिंह जैसे भूमिहार नेताओं के खिलाफ कार्रवाई, यादव और ओबीसी शक्ति को कमजोर करने की साजिश है. लेकिन पुलिस की कार्रवाई ने यह धारणा पूरी तरह खत्म नहीं होने दी.

आरजेडी और महागठबंधन की रणनीति: ‘जंगलराज 2.0’ का नैरेटिव

आरजेडी और महागठबंधन इस हत्याकांड को लेकर सरकार पर खुलकर हमला बोल रहे हैं. उनका कहना है कि यह हत्या प्रशासन की नाकामी का प्रमाण है. इस मामले का इस्तेमाल दलितों और पिछड़ों को टारगेट करने के लिए हो रहा है. गिरफ्तारियां “राजनीतिक दबाव” में हो रही हैं. आरजेडी इसे कानून व्यवस्था की विफलता और “जंगलराज” जैसी स्थिति बताने से नहीं चूक रही.

इसी बीच, एक और दिलचस्प मोड़ आया. अनंत सिंह की FIR में धानुक समुदाय के कुछ लोगों के नाम आने से नया ध्रुवीकरण शुरू हो गया है. ध्यान देने योग्य बात यह है कि जन सुराज के उम्मीदवार पियूष प्रियदर्शी भी धानुक समुदाय से आते हैं और दुलार चंद यादव उनकी कैंपेनिंग कर रहे थे. इससे धानुक समुदाय में असंतोष बढ़ सकता है, जो परंपरागत रूप से जेडीयू समर्थक रहा है. अगर यह वोट बैंक टूटता है, तो मोकामा का चुनावी संतुलन और बदल सकता है.

क्या अनंत सिंह को ‘जेल में रहकर’ ज्यादा फायदा मिलेगा?

यह सवाल चुनावी विश्लेषण में सबसे ज्यादा चर्चा में है.

इसके कई कारण हैं:

  • सहानुभूति लहर : गिरफ्तारी से अनंत सिंह के लिए सहानुभूति पैदा हुई. समर्थक यह मानने लगे हैं कि “हमारे नेता को साजिश के तहत फंसाया गया है.”
  • बिहार की राजनीति में सहानुभूति लहर अक्सर चुनावी जीत में बदल जाती है.
  • बाहुबली इमेज और ‘शहीद’ नैरेटिव : बिहार में कई बार देखा गया है कि जेल में रहना किसी बाहुबली नेता की जीत में बाधा नहीं बनता. बल्कि उल्टा जेल में बैठे नेता की छवि “सत्ता से टकराकर अन्याय झेलने वाले” की बन जाती है. अनंत सिंह के मामले में भी यही हो रहा है.
  • पत्नी नीलम देवी की सक्रियता : नीलम देवी ने अनंत सिंह के राजनीतिक नेटवर्क और संगठन को तुरंत सक्रिय कर दिया. गांव-गांव बैठकों, रैली, जनसंपर्क सब तेज हो गया. इससे यह संदेश गया कि “अनंत सिंह जेल में सही, लेकिन उनका असर खत्म नहीं हुआ.”
  • दोनों ही मुख्य उम्मीदवार भूमिहार समुदाय से: मोकामा में अनंत सिंह की मुख्य प्रतिद्वंद्वी हैं वीना देवी, जो सुरजभान सिंह की पत्नी हैं, और वह भी भूमिहार समुदाय से आती हैं. इसका मतलब यह है कि अगर जाति आधार पर वोट बंटता है, तो अनंत सिंह को 100% सहानुभूति का लाभ मिलता है.

क्या यह गिरफ्तारी राजनीति का हिस्सा है?

विश्लेषकों के अनुसार, सरकार की यह कार्रवाई दोहरा फायदा देती है - बाहर से लगे कि “सरकार निष्पक्ष है, अपराधी चाहे कोई हो, कार्रवाई होगी.” वहीं अंदर ही अंदर चुनाव से पहले अनंत सिंह के नेटवर्क को कमजोर किया जा सके. लेकिन इस रणनीति का उल्टा असर भी संभव है - क्योंकि सहानुभूति और “पीड़ित नेता” वाली छवि चुनाव में भारी पड़ सकती है.

जेल - अनंत सिंह का मास्टरस्ट्रोक साबित हो सकती है

मोकामा के चुनाव ने यह फिर साबित कर दिया कि बिहार की राजनीति में कानून, जाति, बाहुबली शक्ति, और भावनाओं का मिश्रण एक विस्फोटक चुनावी फॉर्मूला बनाता है. अनंत सिंह के जेल जाने से विरोधियों की रणनीति बदली, जातीय ध्रुवीकरण बढ़ा, सहानुभूति की लहर बनी और उनका राजनीतिक कद और ऊंचा हो गया. कई जानकार मानते हैं कि “अनंत सिंह को राजनीतिक रूप से जेल से उतना फायदा मिलेगा, जितना शायद बाहर रहकर भी न मिलता.”

अगर मतदान के दिन उनके संगठन ने पूरा खेल संभाल लिया तो यह चुनाव मोकामा में फिर एक बार अनंत सिंह बनाम पूरी व्यवस्था का मुकाबला बन सकता है.

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