INSIDE STORY: चिराग का दोस्त बाहुबली हुलास पांडेय, जिसका हुक्का-पानी बंद कराने में पुलिस ED-CBI भी पनाह मांगने लगीं!
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में चिराग पासवान ने अपने करीबी बाहुबली हुलास पांडेय को एलजेपी उम्मीदवार बनाया है. वही हुलास, जिनके नाम पर कभी पुलिस, ईडी और सीबीआई तक को पसीना बहाना पड़ा था. हत्या, रंगदारी और अपहरण जैसे मामलों से घिरे हुलास पांडे अब ब्रहमपुर सीट से मैदान में हैं. कभी फरार रहे यह बाहुबली अब सत्ता के करीब हैं, और उनके राजनीतिक उदय ने बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी है.;
चारा घोटाले में सीबीआई और जेल के चक्करों में फंसकर बीते कई साल से सत्ता सुख से दूर रहकर अपनी गर्दन कानून के पंजों में फंसाए बैठे और, 1990 के दशक में बिहार में जंगलराज के पुरोधा या कहिए जन्मदाता लालू प्रसाद यादव के जमाने की सी बदमाशी या गुंडई भले ही आज नीतीश कुमार के बिहार में बाकी न बची हो, मगर लालू यादव और राबड़ी देवी की छत्र-छाया में कालांतर में जरायम की दुनिया में फल-फूलकर बेल से बरगद या कहिए वट वृक्ष बन चुका एक नाम आज भी जमाने की जुबान पर है. हुलास पांडेय. बिहार की राजनीति का वह धाकड़ जिसके नाम से सरकारी हुक्मरान से लेकर शरीफ आदमी तक की घिग्घी बंध जाती है.
बिहार में जब इन दिनों राज्य विधानसभा चुनाव 2025 के महापर्व का उत्सव अपने शबाब पर है तब आज हम और आप बेबाक बात करेंगे बिहार के बदनाम बाहुबली हुलास पांडेय का. इसलिए नहीं कि हुलास पांडेय की गिनती अब अचानक से रातों-रात “शरीफों” में होने लगी है. बल्कि इसलिए कि बिहार के इस बाहुबली को अब केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने अपनी लोक जनशक्ति पार्टी से बिहार विधानसभा 2025 के चुनाव के लिए दावेवार-उम्मीद बना डाला है. मतलब कालांतर में जिन हुलास पांडेय को अक्सर पुलिस, ईडी, एनआईए, सीबीआई जैसी जांच एजेंसिंया ताड़ती-तलाशती रही हों. अगर सबकुछ सही सलामत रहा और जनता ने आंख मूंदकर या फिर भयांक्रांत होकर मतदान किया तो कोई बड़ी बात नहीं कि, आने वाले वक्त में ऐसा बदनाम धाकड़ बाहुबली हुलास पांडेय कुछ दिन बाद ही चिराग पासवान पुत्र पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय राम विलास पासवान की कृपा या उनके रहम-ओ-करम की बैसाखियों के बलबूते बिहार विधानसभा में “माननीय-विधायक” बनकर बैठा दिखाई दे जाए.
जनता को जगाना बेहद जरूरी
हुलास पांडेय के बारे में राज्य विधानसभा चुनाव के परिणाम आने से पहले उनकी जन्म और क्राइम कुंडली जान लेना जरूरी है. ताकि हुलास पांडेय जैसे धाकड़ को मतदान के जरिए चुनने जा रहे उनसे अनजान या फिर बेहद भोले भाले मतदाताओं को साफ-साफ बिना किसी यदि-किंतु-परंतु के पता रहे कि वे, अपना वोट किस चरित्र-चेहरे के उम्मीदवार को देने जा रहे हैं. 31 दिसंबर 1976 को बिहार के रोहतास जिले के थाना नासरीगंज क्षेत्र में मौजूद नावाडीह गांव में जन्मे हुलास पांडेय का चार भाइयों में खुद का तीसरा नंबर है. इनके बदनाम बड़े भाई नरेंद्र कुमार पांडे उर्फ सुनील पांडे तारारी विधानसभा से तीन बार विधायक रह चुके हैं. एक भाई रामानुज पांडे तीन बार पंचायत मुखिया रहे हैं. जबकि एक भाई संतोष पांडे ठेकेदारी का धंधा करते हैं.
हुलास पांडे की क्राइम कुंडली
ऐसे धाकड़ दबंग को लेकर मीडिया में बिछी पड़ी क्राइम या फिर कहिए जन्मकुंडली पढ़ने पर पता चलता है कि इनके पिता कामेश्वर पांडे के कत्ल ने हुलास पांडे के दिल और मन पर इस कदर की चोट कर डाली कि, जिसके चलते वे जरायम के जंजाल में फंसते चले गए. एक बार अपराध के तालाब की कीचड़ में पांव मैले हुए तो मन भी भला कैसे उजला या साफ सुथरा रह पाता. सो थाने चौकी सीबीआई में एक के बाद एक मुकदमे हुलास पांडे के नाम चढ़ते चले गए. फिर चाहे वह मुकदमा रंगदारी वसूली, हत्या, हत्या की कोशिश, अपहरण, रेत खनन माफिया से सांठगांठ, अवैध हथियारों के काले कारोबार का रहा हो या फिर, सरकार और सत्ता को आंखें तरेर कर देखने-दिखाने के चलते बिहार पुलिस ने जब अपनी आंखों से हुलास पांडे को आम आदमी से बाहुबली बनता देखा. तो पुलिस ने उनके ऊपर कानूनी चाबुक चलाना शुरू कर दिया. एक के बाद एक कितने मुकदमे हुलास पांडेय के नाम में अब तक दर्ज हो चुके हैं इसकी सही गिनती शायद आज हुलास पांडेय को भी याद न हो.
हुलास पांडेय का हुक्का-पानी बंद नहीं हुआ
पुलिस ने कानून के चाबुक से जब-जब हुलास का हुक्का पानी बंद करने की कोशिश की तो मास्टरमाइंड हुलास पांडेय भूमिगत हो गए. यह अलग बात है कि जिन हुलास पांडे की तलाश में बिहार के तमाम थानों की पुलिस खाक छानती हुई अंधेरे में लाठियां भांजती फिर रही थी, तब यही हुलास पांडेय पुलिस और कानून के शिकंजे में फंसने के बजाए फरारी के दौरान ही आरा-बक्सर स्थानीय प्राधिकार से चुनाव जीतकर माननीय नेताजी यानी विधान पार्षद बन गए. और हुलास जैसे बाहुबलियों की गिरफ्तारी का ड्रामा करने वाली बिहार पुलिस न मालूम किस बिल में हुलास पांडेय को खोजने का ड्रामा करती ही रह गई. बिहार के धाकड़ हुलास पांडे एक बार चुनाव जीते तो उन्हें नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू यानी जनता दल यूनाइटेड ने भी अपनी गोद में बैठा लिया. क्योंकि नीतीश कुमार और उनकी पार्टी को भी हुलास पांडे जैसे बदनाम बाहुबलियों की ही जरूरत अक्सर पड़ती रहती है.
चोर-चोर मौसेरे भाई...
हुलास पांडे जैसे गुंडा-मवालियों बाहबुलियों को कानून के चाबुक से अपनी खाल बचाने के लिए माननीय नेताजी-मुख्यमंत्री विधायक सांसद का कंधा चाहिए होता है. मतलब मैं तेरी पीठ खुजाऊं और तू मेरी पीठ खुजाता रहे. मैं फंसूं तो तू मुझे बचा और तू फंसे तो मैं तेरी मदद करुंगा. यह अलग बात है कि नीतीश कुमार और उनकी पार्टी के कंधे पर सवारी करके अपनी वैतरणी पार लगाने की बेईमान उम्मीद लगाए बैठे हुलास पांडे, साल 2015 में हुए चुनाव में राधाचरण सेठ से विधानसभा चुनाव नहीं जीत सके. सिर्फ इसलिए क्योंकि राधचरण सेठ बाहुबली या धाकड़ बदनाम बदमाश नहीं थे. जबकि वहीं दूसरी ओर हुलास पांडे में यह सब ऐब ठूंस-ठूंस कर भरे हुए थे.
हार की बौखलाहट में नीतीश को नमस्ते
उस हार से बेहाल बौखलाए और खार खाए बैठे हुलास पांडे ने नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जेडीयू को रातों-रात न केवल नमस्ते किया. अपितु पुलिस और कानून से अपनी खाल बचाए रखने की उम्मीद में कुछ वक्त बाद ही राम विलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी यानी एलजेपी में एडमीशन ले लिया. इन दिनों लोजपा में बिहार का ऐसा बदनाम नाम हुलास पांडेय संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष हैं. जरा गौर से सोचिए कि इन्हीं बदनाम बाहुबली हुलास पांडेय को अब चिराग पासवान ने अपना सबसे काबिल विधानसभा कंडीडेट मानकर ब्रहमपुर सीट से उम्मीदवार बनाया है.
रणवीर सेना प्रमुख ब्रह्मेश्वर मुखिया हत्याकांड
जिक्र जब जरायम की दुनिया से राजनीति की ओर दौड़ लगाने वाले हुलास पांडे का हो तब फिर भला उनके बड़े भाई सुनील पांडे की कुंडली पढ़कर न सुनाई या बताई जाए तो कहानी आधी-अधूरी सी लगेगी. सुनील पांडे का नाम यूं तो बिहार में भली भांति बदनाम रहा है मगर 17 मई 2003 को जब पटना के मशहूर न्यूरो सर्जन डॉक्टर रमेश चंद्रा का अपहरण कर लिया गया. तब मांगी गई 50 लाख की फिरौती में हुलास पांडे के भाई और पूर्व विधायक सुनील पांडे का नाम खूब बदनामी के साथ उछला था. रणवीर सेना के संस्थापक ब्रह्मेश्वर मुखिया के लोमहर्षक कत्ल कहिए या फिर हत्याकांड की घटना बिहार और देश में भला किसे आज भी याद नहीं होगी. उस सनसनीखेज मुखिया हत्याकांड में हुलास पांडेय और उनके बदनाम पूर्व बाहुबली विधायक भाई सुनील पांडेय का नाम पुलिस और सीबीआई की किताबों में मोटे अक्षरों से लिखा गया था. हैरतंगेज कहूं या फिर शर्मनाक बात यह है कि हर किस्म के संगीन अपराधों में नामजद या फिर कुछ में बुरी तरह से बदनाम रहे ऐसे हैरान करने वाले धाकड़ हुलास पांडे पर भले ही दर्जनों आपराधिक मुकदमें कालांतर में क्यों न दर्ज होते रहे हों मगर, कानूनन उन्हें देश की कोई भी एजेंसी या फिर बिहार पुलिस कभी भी किसी मामले में सजा मुकर्रर नहीं करवा सकी.
बदनाम बाहुबली से ‘माननीय नेताजी’ तक
इसी का नतीजा यह रहा कि आज दोनों बदनाम बाहुबली भाई नेताजी का सफेद चोला ओढ़कर गुंडई के गड्ढे का बिहार की राजनीति में बटवृक्ष बने बैठे हैं. देश के केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान के मुंहलगे विश्वासपात्र दुलारे लाडले यह वही हुलास पांडे हैं, कल तक जिनके ठिकानों पर कभी एनआईए की छापामारी में 45 लाख कैश, डेढ़ किलो सोना जब्त किए जाने की खबरें भी खूब उछलीं. कहने को तो केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान के ऐसे धाकड़ नेता पर रकम के लेनदेन में फर्जीवाड़े का भी आरोप लगा. सरकारी कर्मचारियों को धमकाने का आरोप लगा. कई मुकदमे आज भी तमाम अदालतों में विचाराधीन हैं. इस सबके बाद जो सबसे बड़ी और हैरानी से किसी की भी आंखें खोल देने वाली बात है वह यह कि हुलास पांडेय, अब तक कभी किसी मुकदमे या मामले में देश की किसी भी जांच एजेंसी या फिर किसी भी अदालत द्वारा दोषी करार नहीं दिए जा सके हैं. इसे हुलास पांडेय की काबिलियत, सत्ता के गलियारों में उनकी मजबूत पकड़ या फिर बिहार पुलिस और देश की जांच एजेंसियों के निकम्मेपन का परिणाम समझें. इन तमाम सवालों के जवाब संबंधित एजेंसियों और हुक्मरानो के ही पास हैं. या फिर ऐसे हर सवाल का जवाब हर लम्हा हुलास पांडेय अपनी जेब में डालकर घूमा करते हैं.