नीतीश के 20 साल के कार्यकाल में बिहार की आधी आबादी का कितना हुआ सशक्तिकरण, कौन देगा जवाब?
पिछले दो दशक से नीतीश कुमार बिहार के सीएम हैं. इस दौरान बिहार की आधी आबादी का कितना सशक्तिकरण हुआ? रोजगार, आरक्षण, स्वास्थ्य, शिक्षा, कार्यबल में बिहार सरकार की योजनाओं से महिलाओं को लाभ मिला. या वाकई कोई बदलाव नहीं हुआ? या फिर एनडीए सरकार महिलाओं के लिहाज से सिर्फ जुमलेबाजी साबित हुई. इसको लेकर विपक्ष प्रदेश सरकार पर हमलावर है, वहीं सीएम महिलाओं को पिछले दो दशक के दौरान मिले फायदे गिना रहे हैं.;
बिहार में पिछले कुछ वर्षों में महिलाओं पर नीतीश सरकार ने काफी ध्यान दिया है, लेकिन उनका जितना सशक्तिकरण होना चाहिए था, क्या वो हो पाया. यह सवाल इसलिए कि नीतीश कुमार पिछले दो दशक से बिहार के सीएम हैं. बहुत कम नेता हुए जिन्हें इतना लंबा कार्यकाल किसी प्रदेश का नेतृत्व करने का मौका मिला हो. खास बात यह है कि ये सवाल अब नीतीश कुमार से पूछे जाने लगे हैं. आज हम इन्हीं सवालों की तह में जाएंगे और जानेंगे कि बिहार की असली तस्वीर महिलाओं के मामले क्या है?
दरअसल, बिहार में जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं, नीतीश कुमार की सरकार महिलाओं पर एक बार फिर से मेहरबान होती दिखाई दे रही है. महिलाओं को सरकारी नौकरी में 35 आरक्षण, आशा बहनों और ममता कार्यकर्ताओं की मानदेय में बढ़ोतरी सहित कई अन्य योजनाओं की न केवल प्रदेश सरकार ने एलान किया है बल्कि सीएम ने साफ कर दिया है कि महिलाओं का सशक्तिकरण हमारी पहली प्राथमिकता है.
वैसे भी नीतीश कुमार की सरकार महिलाओं पर अपने पहले कार्यकाल से ही मेहरबान है. पंचायत चुनाव और नगर निकाय चुनाव हो या स्कूलों की शिक्षकों की भर्ती, शराबबंदी हो या महिला कल्याण, हर क्षेत्र में महिलाओं के लिए पिछले 20 साल के दौरान काम हुए हैं.
मतदान के मामले में महिलाएं आगे
इसका सीधा असर भी देखने को मिला है. पिछले एक दशक में बिहार में महिला मतदाताओं का मतदान प्रतिशत लगातार पुरुषों के मतदान प्रतिशत से अधिक रहा है. साल 2020 के विधानसभा चुनावों में महिलाओं का मतदान प्रतिशत 59.7 प्रतिशत रहा, जबकि पुरुषों का 54.6 प्रतिशत रहा. लोकसभा चुनाव 2024 लगातार तीसरा चुनाव था, जहां महिलाओं ने बढ़त हासिल की.
साल 2019 के लोकसभा चुनाव में लगभग 59.9 प्रतिशत महिला मतदाताओं में भाग लिया. जबकि पुरुषों का मतदान प्रतिशत लगभग 55.3 प्रतिशत ही रहा. 2024 के लोकसभा चुनावों में महिलाओं ने फिर से पुरुषों को 59.45 प्रतिशत वोट देकर पछाड़ दिया, जबकि पहले यह 53 प्रतिशत था.
जनसांख्यिकीय स्तर पर भी बिहार ने धीरे-धीरे सुधार देखने को मिला है. नीति आयोग की मार्च 2025 में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार बिहार का वृहद और राजकोषीय परिदृश्य के मुताबिक बिहार में जन्म के समय लिंगानुपात प्रति 1,000 पुरुषों पर 933 महिलाएं थीं, जो राष्ट्रीय औसत 914 से काफी ज्यादा है.
कामकाजी महिलाओं की संख्या में 7 गुना बढ़ोतरी
एनडीए सरकार द्वारा महिलाओं के लिए आरक्षण एक अच्छा कदम साबित हुआ है. हाल के वर्षों में बिहार में महिला श्रमबल भागीदारी दर में तेजी से वृद्धि हुई है. आवधिक श्रमबल सर्वेक्षण के अनुसार 2017-18 में 15 वर्ष और उससे अधिक आयु की महिलाओं में यह दर केवल 4.1 प्रतिशत थी, जो भारत में सबसे कम में से एक है. 2022-23 तक यह बढ़कर 22.4 प्रतिशत हो गया और नवीनतम 2023-24 के दौर में यह 30.5 प्रतिशत पर पहुंच गया, जो छह वर्षों में सात गुना वृद्धि है.
बिहार के महिलाओं की कहानी यहीं खत्म नहीं होती. महिलाओं के काम करने का तरीका भी बदल गया है. साल 2017-18 में बिहार की महिला श्रमिक स्व-रोजगार, वेतनभोगी नौकरियों और आकस्मिक श्रम के बीच लगभग समान रूप से विभाजित थीं, लेकिन 2023-24 तक 83 प्रतिशत से अधिक महिलाएं स्वरोजगार में थीं. जबकि केवल 4.8 प्रतिशत के पास नियमित वेतन वाली नौकरियां थीं और 11.7 प्रतिशत आकस्मिक श्रमिक थीं. हालांकि, बिहार में महिलाओं को पुरुषों की तुलना में बड़े वेतन अंतर का सामना करना पड़ रहा है.
शहरी क्षेत्र में बढ़ोतरी ज्यादा
बिहार आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 के अनुसार स्व-रोजगार वाली ग्रामीण महिलाएं औसतन केवल 4,434 रुपये प्रति माह कमाती हैं. जबकि इसी श्रेणी के पुरुष 10 हजार रुपये से अधिक कमाते हैं. शहरी स्व-रोजगार में यह अंतर और भी अधिक है. जहां महिलाएं 8,342 रुपये कमाती हैं, जबकि पुरुष 18,583 रुपये कमाते हैं. यानी 10 हजार रुपये से अधिक का अंतर.
हालांकि, शहरी क्षेत्रों में नियमित वेतनभोगी नौकरियों में यह अंतर कम है. महिलाएं 22,394 रुपये कमाती हैं. जबकि पुरुष 23,869 रुपये कमाते हैं. ग्रामीण वेतन भोगी रोजगार में यह अंतर और साफ है. पुरुष 18,504 रुपये प्रतिमाह कमाते हैं. जबकि महिलाएं 14,848 रुपये कमाती हैं, जिसके परिणामस्वरूप मासिक अंतर 3,656 रुपये है.