लालू यादव को क्यों माना जाता है 'Maverick Politician? ऐसे नेताओं की क्या होती है खासियत, जानें सब कुछ
Maverick Politician Lalu Yadav: बिहार में दो महीने बाद विधानसभा का चुनाव होना है. इस बात को ध्यान में रखते हुए पुराने और उभरते नेताओं को लेकर कवायद भी जारी है, लेकिन एक नाम ऐसा है, जो सत्ता में तो नहीं है, लेकिन खुद में एक सत्ता से कम भी नहीं है. बिहार में ऐसा पॉलिटिशयन एक ही है, और वो हैं लालू यादव. लालू यादव जिस सोच और तौर तरीके के नेता है, उसे दुनियाभर के शैक्षिक संस्थानों में 'मावरिक पॉलिटिशियन' यानी लीक से हटकर चलने वाला नेता माना जाता है. अमेरिकी राजनेता जॉन मैक्केन को भी इसी श्रेणी का राजनेता माना जाता था.

Lalu Yadav News: आरजेडी प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री रहे लालू प्रसाद यादव एक दौर में बिहार ही नहीं देश की राजनीति में किंगमेकर की भूमिका में रहे. एचडी देवेगौड़ा और इंद्र कुमार गुजराल को देश का पीएम बनाने के पीछे उन्हीं का हाथ था. बिहार में उनकी पार्टी के हाथ में लगातार 15 साल तक सत्ता रही. इसके अलावा, लालू यादव राजनीति में कभी बेहतरीन फोटो खिंचवाने के लिए जाने गए. कभी सरकारी आवास पर सिर्फ अंडरवियर पहने हुए भैंस का दूध दुहने, रसोई में पत्नी राबड़ी देवी द्वारा पकाई जा रही रोटियां खाते हुए फोटो खिंचवाने और कभी चरवाहा विद्यालय के लिए भी जाने गए. एक दौर ऐसा भी आया जब वो केंद्र सरकार में बतौर रेल मंत्री दुनिया भर में भारतीय रेल का बेहतर संचालन और उसे प्रॉफिट में लाने के लिए जाने गए. यही वजह है कि वो लीक से हटकर चलने वाला राजनेता (Maverick Politician) बन गए.
चारा घोटाले में नाम आने के बाद आत्मसमर्पण करने के लिए उन्होंने साइकिल रिक्शा चलाया और उस समय उनके समर्थन में अपार जनसमूह और उसके बीच हाथी पर सवार लालू यादव ने खूब सुर्खियां बटोरी थी. सामाजिक न्याय की दृष्टि से देखें तो लालू यादव ने बिहार की राजनीति को पूरी तरह बदल दिया. लेकिन जिस बात ने उन्हें घर-घर में मशहूर कर दिया, वह थी तत्कालीन भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी की नाटकीय गिरफ्तारी. उस समय लालू यादव बिहार के सीएम थे और जब 1990 में आडवाणी का 'रथ' बिहार में घुसा, उन्होंने गिरफ्तार करवा दिया. साल 2003 तक उनकी लोकप्रियता इतनी बढ़ गई थी कि जब लालू प्रसाद इस्लामाबाद की एक सब्जी मंडी गए, तो हर उम्र के पाकिस्तानियों ने उन्हें घेर लिया था.
अपने कद के नेताओं से निकल गए बहुत आगे
आरजेडी प्रमुख अपने देहाती रूप-रंग, हाजिर जवाबी और घटनाओं व जनहितैषी रवैये की वजह से वह अपने कई समकालीनों से बहुत जल्दी आगे निकल गए. वे हमेशा अपनी राय को लेकर स्पष्ट रहे हैं. खासकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और हिंदुत्व की राजनीति के प्रति उनकी गहरी नापसंदगी जगजाहिर है. जब सोनिया गांधी राजनीति में आने के बाद अपने विदेशी मूल को लेकर निशाने पर आईं, तो लालू प्रसाद उनके सबसे बड़े समर्थकों में से एक थे और आज भी हैं.
लालू राजनेता न होते तो अभिनेता होते
एक बार उन्होंने दर्शकों को यह बताकर मंत्रमुग्ध कर दिया कि कैसे वे जापान को बिहार बना सकते हैं. एक जापानी ने बिहार को जापान बनाने का वादा किया था. इसी तरह उन्होंने बिहार की सड़कों को अभिनेत्री हेमा मालिनी के गालों जितना "चिकना" बनाने का वादा किया था. जैसे-जैसे वे आगे बढ़े, उन्होंने राजनीति में कभी न मिटने की कसम खाई और एक स्व-निर्मित उक्ति कही जो उनकी ही तरह प्रसिद्ध हुई: "जब तक रहेगा समोसा में आलू, तब तक रहेगा बिहार में लालू!" उनकी नाटकीयता इतनी थी कि अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा ने कहा था कि अगर लालू प्रसाद राजनेता न होते, तो वे बॉलीवुड में एक सफल अभिनेता होते।
सोशल इंजीनियरिंग के मसीहा
लालू यादव सियासी करियर के शुरुआती दौर में साल 1977 से 1980 तक लोकसभा में गुमनामी में रहने के बाद दो बार बिहार विधानसभा के लिए चुने गए और 1989 में विपक्ष के नेता बने. उत्तरी क्षेत्र में कांग्रेस के पतन के साथ ही लालू प्रसाद 1990 में भारत के सबसे पिछड़े राज्यों में से एक बिहार के मुख्यमंत्री बने. उनकी जाति-आधारित राजनीति को "सोशल इंजीनियरिंग" के रूप में पहचाना जाने लगा. वह सात साल तक इस पद पर रहे. यही वह दौर था जब लालू प्रसाद एक तरह से राजनीतिक दिग्गज बन गए और कमंडल का जवाब मंडल से दिया. इससे उनका कद बिहार से बाहर भी बढ़ा और उनकी महत्वाकांक्षाएं भी.
रेलवे को प्रॉफिट में लाकर दुनिया भर में कमाया नाम
साल 1997 में उन्होंने जनता दल से नाता तोड़कर राष्ट्रीय जनता दल (राजद) बना लिया. 1998 में लालू प्रसाद लोकसभा में लौटे. तब तक उन्होंने कांग्रेस के साथ गठबंधन कर लिया था. गठबंधन से पहले तक वह कांग्रेस से नफरत करते थे. साल 2004 में उनकी पार्टी आरजेडी कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए गठबंधन का एक प्रमुख घटक बन गई. लालू प्रसाद को हाई-प्रोफाइल रेल मंत्री बनाया गया. यह वह दौर था जब उन्होंने घाटे में चल रही भारतीय रेलवे को मुनाफे में बदलकर दोस्तों और दुश्मनों, दोनों को चौंका दिया. उनकी सफलता की कहानी ने उन्हें भारत और विदेशों के बिजनेस स्कूलों में प्रशंसा दिलाई. उन्होंने भारतीय प्रबंधन संस्थान और अमेरिका के शीर्ष बिजनेस स्कूल हार्वर्ड और व्हार्टन के छात्रों के साथ प्रबंधन के टिप्स समझाएं. उन्होंने लाखों यात्रियों को चाय परोसने के लिए कागज के कपों की जगह कुल्लड़ दिए.
अभिशाप साबित हुआ चारा घोटाला
लालू प्रसाद की राजनीति को उस समय झटका लगा जब 'चारा घोटाला' में उनका नाम सामने आया, जो उनके लिए अभिशाप साबित हुआ. जेल जाने के बाद उनकी पत्नी राबड़ी देवी बिहार की सीएम बनीं. जब तक उन्होंने बिहार पर शासन किया, वे राज्य के राजा थे, लेकिन नीतीश कुमार के उदय के बाद लालू प्रसाद बिहार में अपनी स्थिति फिर से मजबूत करने की पुरजोर कोशिश की. इस बीच 3 अक्टूबर, 2013 को चारा घोटाले में उन्हें पांच साल के लिए जेल भेज दिया गया.
किसे माना जाता है मावरिक पॉलिटिशियन?
मावरिक पॉलिटिशियन का मतलब होता है एक ऐसा नेता जो पुराने ढर्रे को हटकर खुद की सोच के अनुरूप नए मानदंडों को स्थापित करता है. यानी पहले से स्थापित सियासी मानकों को ध्वस्त करने वाला. ऐसे नेता अपने अपरंपरागत विचारों और रूढ़ि के विरुद्ध जाने की इच्छा के लिए जाने जाते हैं. भले ही इसका मतलब अपनी ही पार्टी से अलग होना क्यों न हो. ऐसे नेता खुद की ज्यादा दूसरों की कम सुनते और समझने की कोशिश करते हैं.
ऐसे राजनेता पार्टी निष्ठा की तुलना में अपने निर्णय और सिद्धांतों को प्राथमिकता देते हैं. ऐसे नेताओं को अन्य राजनीतिक दलों का भी समर्थन मिलता है. कुछ लोग ऐसे नेताओं के साहस की हद से परे जाकर तारीफ तो कुछ आलोचना करते हैं. ऐसे नेता की आलोचना करने वाले मावरिक पॉलिटिशियन को अविश्वसनीय मानते हैं.
अमेरिकी सीनेटर और एरिजोना से रिपब्लिकन पार्टी के राजनेता जॉन मैक्केन को मावरिक पॉलिटिशियन ही माना जाता है. वह 1983 से 2018 में अपने कार्यकाल के दौरान अमेरिकी कांग्रेस के सदस्य रहे. दो बार अमेरिकी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार और 2008 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार थे. उन्होंने अपनी सार्वजनिक टिप्पणियों, राष्ट्रपति पद के लिए अपने अभियान के बयानों और सीनेटर पद के लिए अपने मतदान रिकॉर्ड की वजह से अलग पहचान बनाई थी.
मैक्केन ने जून 2008 में कहा था, "मेरे सिद्धांत, मेरा व्यवहार और मेरा मतदान रिकॉर्ड बहुत स्पष्ट है. न केवल 2000 से बल्कि 1998, 1992 और 1986 से भी. मेरे विरोधी कहते हैं मैं बदल गया हूं. सच यह है कि मेरे किसी भी सिद्धांत या मूल्य में कोई बदलाव नहीं आया है. बस! मैंने बदली हुई परिस्थितियों के कारण कुछ मुद्दों पर अपना रुख बदला है? "