बिहार वोटर लिस्ट में संशोधन से पुरानी यादें फिर हो गईं ताजा, अल्पसंख्यकों को NRC लागू होने का डर, कुछ ऐसे भी...

बिहार मतदाता सूची विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान 2025 को लेकर लोगों के मन में गंभीर सवाल हैं. उन्हें आशंका है कि केंद्र सरकार ने नागरिकता संशोधन अधिनियम का जोरदार विरोध होने के बाद साल 2019 में ठंडे बस्ते में डाल दिया था. कहीं उसी को मतदाता सूची में संशोधन के जरिए लागू नहीं करने की योजना तो नहीं. इसका जवाब सरकार या चुनाव आयोग दे.;

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Edited By :  धीरेंद्र कुमार मिश्रा
Updated On : 5 July 2025 4:35 PM IST

बिहार मतदाता सूची में संशोधन को लेकर घमासान की स्थिति है. इस मामले में वहां के नेता क्या कहते हैं, उसे अगर छोड़ भी दें तो आम लोगों की राय भी चुनाव आयोग के इस काम को लेकर अलग-अलग राय है. अल्पसंख्यकों वर्गों में कुछ लोग इसे पिछले दरवाजे से एनआरसी लागू करने की आशंका जता रहे हैं, वहीं अन्य लोगों का कहना है कि चुनाव आयोग का काम सही है. आप मतदाता बने रहने योग्य हैं या नहीं, यह जानने का हक आयोग या सरकार को. जहां तक बात इसके लिए जरूरी फॉर्म मिलने की है, तो चुनाव आयोग को यह सुनिश्चित करना होगा कि प्रदेश के मतदाताओं को या तो बीएलओ गंभीरता से घर-घर जाकर इसे मुहैया कराएं या फिर वो फॉर्म आसानी से कहां सें मिलेंगे, इसकी जानकारी आयोग लोगों को दे.




 


इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, "दरभंगा में कुछ अल्पसंख्यक इसे पिछले दरवाजे से एनआरसी लागू करने का संकेत मान रहे हैं. ईबीसी में से कई लोग इसके लिए जरूरी फॉर्म न मिलने की शिकायत करते नजर आए."


क्या ये एनआरसी नहीं है?

दरभंगा में शुक्रवार की नमाज से पहले मोहम्मद फारुख और उनके भतीजे मोहम्मद दिलनवाज इस समस्या के बारे में जानकारी लेने के लिए नजदीकी सरकारी स्कूल में जाने का फैसला करते हैं. उन्होंने सुना है कि बिहार की मतदाता सूची में संशोधन किया जा रहा है. वे जानना चाहते हैं कि क्या किया जाता है? हालांकि, वे निराश होकर लौटते हैं. स्कूल बंद है. आस पास कोई शिक्षक नहीं है.

स्कूल में किसी के न मिलने पर वे लोग घर वापस आ जाते हैं, बूढ़े होते फारुख कहते हैं कि उनके परिवार के किसी भी सदस्य को नए नामांकन फॉर्म नहीं मिले हैं, न ही उन्हें पता है कि आगे क्या करना है? मोहम्मद फारूक ने कहा कि लोगों को परेशान करने का नया तरीका है. वह पूछते हैं, क्या यह एनआरसी नहीं है?"

लोगों यह सवाल इसलिए करते हैं कि उन्हें आशंका है कि केंद्र सरकार द्वारा नागरिकता (संशोधन) अधिनियम से जोड़े जाने के बाद 2019 में विरोध प्रदर्शन हुए, तब से एनआरसी को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है, कहीं उसी को इस तरीके से तो लागू नहीं करना चाहती है केंद्र सरकार.


 

मोहम्मद अकबर - दस्तावेज मांगने के पीछे कुछ तो झाम है

दरभंगा शहर के मिसरी गंज के निवासी 55 वर्षीय मोहम्मद अकबर का कहना है कि वह और उनकी पत्नी का नाम 2020 से मतदाता सूची में नहीं हैं. वापस आने के लिए उन्हें विशेष गहन पुनरीक्षण अभ्यास के हिस्से के रूप में चुनाव आयोग द्वारा सुझाए गए 11 दस्तावेजों में से एक प्रस्तुत करना होगा. उनके पास कोई भी दस्तावेज नहीं है. उनके पास एकमात्र उम्मीद उनकी "वंशावली" या परिवार रजिस्टर बनवाना है. ड्राइवर के रूप में काम करने वाले मोहम्मद अंसार के पास ड्राइविंग लाइसेंस और आधार कार्ड है, लेकिन ये पर्याप्त नहीं माने जाएंगे. वो कहते हैं कुछ तो झमेला है.

अकबर और अंसार साथ ही उनके पड़ोसी मोहम्मद हाफिज ने चुनाव आयोग की इस कवायद के बारे में अपने स्थानीय स्कूल के शिक्षकों से ही सुना और कहा कि उन्हें अभी तक अपने फॉर्म नहीं मिले हैं.

EC को है दस्तावेज मांगने का हक - चतरा और सिमरी गांव के लोग

चतरा गांव में अशोक कुमार यादव भाग्यशाली लोगों में से एक हैं. अपना फॉर्म पकड़े हुए एक राशन की दुकान के मालिक कहते हैं, "मुझे अभी यह मिला है. मुझे देखना है कि वे क्या चाहते हैं." यादव चुनाव आयोग के कदम का पूरा समर्थन करते हैं. उनका कहना है, "सरकार को दस्तावेज मांगने का अधिकार है. उसे सुरक्षित रखना हर नागरिक की खुद की जिम्मेदारी है. सा नहीं हो सकता कि बिहार में कोई अवैध अप्रवासी न हो." सिमरी गांव में भी चुनाव आयोग के अभियान को समर्थन मिल रहा है. साथ ही लोग सावधानी भी बरत रहे हैं.

परिवर्तन प्रकृति का नियम, सब कुछ ठीक हो जाएगा - मोहम्मद इरशाद

सिमरी गांव सरकारी स्कूल के शिक्षक मोहम्मद इरशाद कहते हैं, “परिवर्तन प्रकृति का नियम है. शुरुआत में लोगों को कुछ परेशानी होगी, लेकिन प्रक्रिया ठीक हो जाएगी.” हालांकि, वे कहते हैं कि चुनाव आयोग को मतदाताओं को आवश्यक दस्तावेज उपलब्ध कराने के लिए और समय देना चाहिए था. इरशाद कहते हैं कि उनके पास सभी कागजात हैं, क्योंकि जब एनआरसी प्रस्तावित किया जा रहा था, तब मैंने अपने परिवार के 1965 से पहले के दस्तावेजों की तलाश शुरू कर दी थी. फिर भी वे स्वीकार करते हैं, “डर तो सभी को लगता है?”

लोगों के क्यों है बेचैनी, क्या है पूरा मामला?

चुनाव आयोग ने कहा है कि 2003 के बाद प्रवासन, शहरीकरण और मतदाता सूची में विदेशियों के संभावित प्रवेश जैसे कारकों को ध्यान में रखते हुए एक विशेष गहन संशोधन अभियान चलाया गया है. 24 जून को जारी चुनाव आयोग के निर्देश के अनुसार बिहार के 7.8 करोड़ से अधिक मौजूदा मतदाताओं को नए गणना फॉर्म जमा करने होंगे. जो लोग 2003 की मतदाता सूची में थे, उन्हें सबूत के तौर पर केवल इसका एक अंश जमा करना होगा. अन्य लोगों को जन्म की तारीख या स्थान साबित करने के लिए 11 की सूची में से दस्तावेज देने होंगे, जो नागरिकता स्थापित करता है. सूची में आधार और राशन कार्ड शामिल नहीं हैं, जो सबसे अधिक इस्तेमाल किए जाने वाले दस्तावेज हैं.

चुनाव आयोग ने 28 जून को मतदाता सूची में संशोधन की प्रक्रिया शुरू की थी. 25 जुलाई तक इसे पूरा करने और 1 अगस्त तक मतदाता सूची के मसौदे को छापने की योजना है. अंतिम मसौदा 30 सितंबर को छपने वाला है, जो विधानसभा चुनाव से कुछ दिन पहले है.

चुनाव आयोग ने 4 जुलाई 2025 कसे बूथ लेवल ऑफिसर (बीएलओ) ने लगभग 1.5 करोड़ घरों का दौरा किया और 87 फीसदी गणना फॉर्म वितरित किए और उनमें से 5 फीसदी भरे हुए वापस आ गए. चुनाव आयोग ने कहा, "शेष घर बंद हो सकते हैं या मृत मतदाताओं, प्रवासियों या यात्रा पर गए लोगों के हो सकते हैं."

अब चुनाव आयोग ने फैसला लिया है कि बीएलओ प्रत्येक घर में तीन बार जाएंगे. दरभंगा में जमीनी स्तर पर कई लोगों से अभी भी बीएलओ द्वारा संपर्क नहीं किया गया है. रिजवाना खातून की दूसरी चिंता यह है कि उनके पति सऊदी अरब में काम करते हैं. वह पूछती हैं, विदेश में काम करने वालों के फॉर्म का क्या होगा?


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