कांग्रेस ने बिहार में नया अध्यक्ष बनाकर बदला सियासी समीकरण, क्या आरजेडी के लिए होगी मुश्किल?
बिहार कांग्रेस में बड़ा बदलाव हुआ है. राजेश कुमार को नया प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है. यह कदम दलित वोट बैंक को साधने और कांग्रेस की अलग सियासी पहचान बनाने की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है. कांग्रेस अब आरजेडी की बी टीम नहीं बनेगी और आगामी विधानसभा चुनाव में आक्रामक रुख अपनाएगी.;
बिहार कांग्रेस में बड़ा राजनीतिक बदलाव हुआ है. औरंगाबाद के कुटुंबा से विधायक राजेश कुमार को बिहार कांग्रेस का नया प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया गया है. यह बदलाव ऐसे समय में आया है जब राज्य में विधानसभा चुनाव नजदीक है. कांग्रेस ने यह फैसला ऐसे समुदाय को साधने के लिए लिया है जो चुनावी समीकरण में अहम भूमिका निभा सकता है.
राजेश कुमार की नियुक्ति को कांग्रेस की दलित वोट बैंक को मजबूत करने की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है. बिहार में दलित समुदाय का बड़ा वोट प्रतिशत है और कांग्रेस चाहती है कि यह वोट बैंक पार्टी के पक्ष में आए. इससे पहले भी कांग्रेस ने प्रदेश अध्यक्ष पद पर दलित चेहरे को मौका दिया था और इस बार फिर यही दांव खेला गया है.
कौन हैं राजेश कुमार?
राजेश कुमार बिहार के कुटुंबा (आरक्षित) विधानसभा सीट से दो बार लगातार विधायक चुने गए हैं. उनकी राजनीतिक समझ और अनुभव ने उन्हें प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के महत्वपूर्ण पद तक पहुंचाया है. राजेश कुमार राजनीति में एक मजबूत विरासत लेकर आए हैं. वे पूर्व मंत्री दिल्केश्वर राम के बेटे हैं, जो कांग्रेस सरकार में मंत्री रह चुके थे. दिल्केश्वर राम देव विधानसभा क्षेत्र से विधायक थे और चंद्रशेखर सिंह तथा भगवत झा आजाद की सरकार में मंत्री पद संभाल चुके थे.
आरजेडी से दूरी बढ़ाने की कोशिश
नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति से यह भी संकेत मिल रहे हैं कि कांग्रेस अब आरजेडी की 'बी टीम' बनने के बजाय अपनी अलग सियासी पहचान स्थापित करना चाहती है. पूर्व अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह को लालू यादव का करीबी माना जाता था, लेकिन राजेश कुमार की नियुक्ति से कांग्रेस ने स्पष्ट कर दिया है कि वह बिहार में अपनी अलग सियासी जमीन तैयार कर रही है.
राहुल गांधी की दलित राजनीति
कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी बिहार में दलित समुदाय को साधने के लिए लगातार सक्रिय रहे हैं. वे कई बार दलित सम्मेलनों में शामिल हो चुके हैं. इससे यह स्पष्ट होता है कि कांग्रेस दलित समुदाय को पार्टी से जोड़ने के लिए पूरी ताकत लगा रही है. राजेश कुमार की नियुक्ति इसी रणनीति का हिस्सा है, जिससे कांग्रेस को राजनीतिक लाभ मिलने की उम्मीद है.
कितना होगा फायदेमंद?
राजेश कुमार की राजनीतिक पृष्ठभूमि और संगठन पर पकड़ को देखते हुए कांग्रेस को उम्मीद है कि वह बिहार में अपनी स्थिति मजबूत कर सकती है. विधानसभा चुनाव में यह फैसला कांग्रेस के लिए कारगर साबित हो सकता है. खासकर दलित समुदाय में राजेश कुमार की पकड़ पार्टी को अतिरिक्त बढ़त दिला सकती है.
क्या कांग्रेस आरजेडी से अलग चुनाव लड़ेगी?
इस बदलाव से यह अटकलें भी लगाई जा रही हैं कि कांग्रेस भविष्य में आरजेडी से अलग होकर चुनाव लड़ सकती है. हालांकि, पार्टी के नेताओं का कहना है कि अभी गठबंधन की स्थिति पर अंतिम फैसला नहीं हुआ है, लेकिन कांग्रेस अब गठबंधन में दबाव की राजनीति नहीं झेलेगी. आने वाले दिनों में कांग्रेस और आरजेडी के बीच सीट बंटवारे को लेकर खींचतान देखने को मिल सकती है.
बिहार में कांग्रेस की नई सियासी दिशा
बिहार कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन के बाद यह साफ हो गया है कि पार्टी अब चुनावी रण में पूरी तैयारी के साथ उतरने की योजना बना रही है. दलित वोट बैंक को साधने से लेकर गठबंधन की राजनीति में अपनी पकड़ मजबूत करने तक, कांग्रेस ने बड़ा दांव खेला है. विधानसभा चुनाव में इसका असर कितना दिखेगा, यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन कांग्रेस ने संकेत दे दिए हैं कि वह अब पीछे हटने वाली नहीं है.