बढ़ते अपराध पर नीतीश को घेर रहे चिराग पासवान, बहनोई सांसद अरुण भारती संग क्या राम विलास पासवान की विरासत बचा पाएंगे?
बिहार की बिगड़ती कानून व्यवस्था को लेकर केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने नीतीश कुमार पर हमला बोला है, जिससे उनके गठबंधन की मंशा पर सवाल उठे हैं. माना जा रहा है कि चिराग यह बयान अपनी राजनीतिक पकड़ मजबूत करने और दलित-पिछड़ा वोट बैंक साधने के लिए दे रहे हैं. अपने पिता राम विलास पासवान की विरासत को बनाए रखने की जद्दोजहद में चिराग और उनके बहनोई अरुण भारती दबाव और बार्गेनिंग की राजनीति का सहारा ले रहे हैं.;
बिहार विधानसभा 2025 के चुनावों की आधिकारिक घोषणा भले न हुई हो, इसके बाद भी मगर राज्य के हर छोटे-बड़े राजनीतिक दल में सत्ता के सिंहासन तक पहुंचने की होड़ शुरू हो चुकी है. हर नेता और राजनीतिक दल दूसरे को बुराइयों का ढेर बताकर उसे गिराकर खुद सत्ता के गलियारों का स्वाद लेने की बेइमान मंशा की मृग-मरीचिका से जूझ रहा है. इसी राजनीतिक उठा-पटक के बीच अब केंद्रीय मंत्री और केंद्र की मौजूदा सरकार के हिस्सेदार चिराग पासवान ने एक ऐसा दांव खेला है, जिसमें बिहार के नेता और जनता दोनों उलझकर रह गए हैं.
राज्य में ताबड़तोड़ बढ़ते अपराधों को लेकर बिहार में नीतीश कुमार की सत्ता को समर्थन देने वाले और केंद्र की भाजपा सरकार में मंत्री चिराग पासवान ने हाल ही में एक ऐसा बयान दे डाला है, जिसने अधिकांश लोगों को उलझा कर रख दिया है. क्योंकि इस बयान में चिराग पासवान ने साफ तौर से नीतीश सरकार को यह कहते हुए घेरा है कि, राज्य में ताबड़तोड़ अपराध की घटनाएं बढ़ रही हैं. पुलिस खामोश और कानून व्यवस्था पंगु हो चुकी है. सीधे-सीधे सरकार और नीतीश कुमार को घेरता यह बयान अगर, जनसुराज पार्टी वाले प्रशांत किशोर या फिर नीतीश के धुर-विरोधी लालू प्रसाद यादव अथवा उनके बेटे तेजस्वी यादव देते तो, गले उतरा कि वो नीतीश के राजनीतिक प्रतिद्वंदी हैं. इसलिए बिहार के मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की कानून व्यवस्था पर ढीली पड़ रही पकड़ को, आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में, नीतीश कुमार के खिलाफ ‘कैश’ करना चाहते हैं.
लोग हो रहे कंफ्यूज
हैरत में तो लोग इसलिए हैं कि जो भारतीय जनता पार्टी बिहार राज्य सरकार और नीतीश कुमार को अपना पूरा समर्थन दे रही है, आखिर उसी भाजपा के केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान क्यों और कैसे अपने ही समर्थन वाली बिहार सरकार और नीतीश कुमार के खिलाफ ऐसा बयान दे रहे हैं? इस बारे में स्टेट मिरर हिंदी के एडिटर इनवेस्टीगेशन ने जब बिहार के तमाम राजनीतिक दलों से जुड़े प्रमुख लोगों से बात की तब, अंदर की बात निकल कर बाहर आ गई. पता चला कि अपने ही समर्थन वाली (भाजपा समर्थित) बिहार की मौजूदा नीतीश कुमार के मुख्यमंत्रित्व वाली सरकार के खिलाफ चिराग पासवान के बयान के पीछे उनकी निजी स्वार्थ-सिद्धि की बू आती दिखाई दे रही है.
क्या खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं चिराग पासवान?
चिराग पासवान द्वारा बिहार की मौजूदा सरकार में ढीली कानून व्यवस्था को लेकर दिया गया बयान सीधे-सीधे नीतीश कुमार के ऊपर दबाव बनाने की राजनीति का सबूत है. दरअसल, चिराग पासवान न तो बीजेपी का भला देख रहे हैं, न ही उन्हें बिहार राज्य की राजनीति या फिर नीतीश कुमार के राजनीतिक भविष्य के गर्त में गिरने से कोई सरोकार है. चिराग पासवान बिहार में अपनी मौजूदा पॉलिटिकल हालत से समझ चुके हैं कि, जिस तरह से राज्य में उनके स्वर्गीय पिता और पूर्व केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान की पकड़ केंद्रीय सत्र पर दलित-पिछड़ों पर थी. दलितों और पिछड़ों का खुद को केंद्रीय राजनीति में माई-बाप साबित कर पाने में चिराग पासवान खुद को कहीं फेल या फिर ठगा सा महसूस कर रहे हैं.
दलितों पर कमजोर पड़ रही चिराग की पकड़
चिराग पासवान सीधे-सीधे बिहार में नीतीश कुमार जैसे मास्टरमाइंड राजनीतिक खिलाड़ी से लड़कर तो नहीं जीत सकते हैं. दूसरे, अपने ही पिता राम विलास पासवान की तुलना में भी दलितों और पिछड़ों के ऊपर कमजोर पड़ती जा रही अपनी पकड़ की चिंता भी चिराग पासवान को दिन रात सता रही है. ऐसे में अब सबसे सस्ता और टिकाऊ या कहिए मजबूत उपाय चिराग पासवान के पास एक ही बचा है कि, वे जैसे ही बिहार में मौजूदा सत्ता की कमजोरियों और मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ बयानबाजी शुरू कर देंगे. तो बिहार का दलित-पिछड़ा चिराग पासवान की ओर लुढ़कने लगेगा. क्या यह बात सही है?
स्टेट मिरर हिंदी के एडिटर इनवेस्टीगेशन के सवाल के जवाब में पटना में मौजूद वरिष्ठ पत्रकार मुकेश बालयोगी बोले, “हां, आपकी बात में दम है. चिराग पासवान को अब नीतीश कुमार, उनकी बिहार में सरकार के भविष्य से ज्यादा अपनी चिंता हो रही है. उन्हें लगने लगा है कि भले ही वे केंद्रीय हुकूमत में मंत्री क्यों न बना दिए गये हों मगर, सच यह है कि जिस तरह से उनके पिता राम विलास पासवान की पकड़ राष्ट्रीय स्तर पर दलितों और पिछड़ों के नेता की थी. वैसा वर्चस्व चिराग पासवान का तो दलितों पिछड़ों के दिल-ओ-जेहन पर कतई नहीं है. ऐसे में अब खुद को दलितों-पिछड़ों का राष्ट्रीय नेता साबित करने के लिए चिराग पासवान के पास सिवाए नीतीश कुमार को घेरकर आगे बढ़ने के कोई दूसरा आसान रास्ता नहीं है. इसीलिए चिराग पासवान अपने निजी स्वार्थ सिद्धि के लिए नीतीश और उनकी पुलिस व बिहार में बिगड़ती शांति-कानून व्यवस्था के खिलाफ बयानबाजी कर रहे हैं. यह उनकी नीतिश कुमार के ऊपर सिर्फ और सिर्फ दवाब की राजनीतिक का हिस्सा है. जिसमें उन्हें आसानी से कामयाबी मिलना आसान नजर नहीं आता है.”
चिराग की अपनी ‘राजनीतिक जमा-पूंजी’ है ही क्या?
जिक्र जब बिहार की मौजूदा राजनीति में मची उठा-पटक और चिराग पासवान का हो रहा है तब ऐसे में पाठकों को बताना जरूरी है कि, चिराग पासवान के पास अपना खुद कोई ‘राजनीतिक जमा-पूंजी’ नहीं है. उनके पास या तो अपने पिता स्वर्गिय राम विलास पासवान से हासिल राजनीतिक विरासत है. या फिर इनके पिता के ही नाम-काम से भारतीय जनता पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व से किसी तरह से हासिल केंद्रीय मंत्री की कुर्सी का वजूद है. ऐसे में बिहार में नीतीश कुमार और लालू यादव जैसे राजनीतिक के मंझे हुए 'घाघ' खिलाड़ियों के बीच, खुद का वजूद बनाए रखने की लड़ाई का मोर्चा तो चिराग पासवान के सामने लगा हुआ है ही.
बिहार में अब भी अपनी हैसियत की लड़ाई लड़ रहे चिराग
बिहार में हाल ही में आई अपराधों की बाढ़ और उस पर राज्य पुलिस की चुप्पी पर अपने ही समर्थन वाली नीतीश कुमार की हुकूमत को घेरने वाले, केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान के से केंद्र में हुकूमत कर रही भारतीय जनता पार्टी अगर आज अपने हाथ पीछे खींच ले. तो रातों-रात चिराग पासवान को राजनीति में अपना वर्तमान और भविष्य बचाने का संकट उत्पन्न हो जाएगा. चिराग पासवान की पार्टी लोकसभा में भी जो दो-चार सीटें बिहार से जीतकर पहुंची है वह भी, मोदी-भाजपा और राम विलास पासवान की राजनीतिक विरासत के चलते मिली हैं. वरना बिहार में नीतीश कुमार और लालू यादव जैसे राजनीतिक धुरंधरों के सामने चिराग पासवान के सामने अपने राजनीतिक भविष्य को बचाने का भी संकट कब खड़ा हो जाए, इस तथ्य को चिराग पासवान खुद भी बखूबी जानते हैं. बिहार की राजनीतिक जमीन पर देखें तो चिराग पासवान अभी भी अपनी हैसियत के पांव जमाने की लड़ाई ही लड़ रहे हैं.
कौन सा खेल खेल रहे जीजा-साला?
चिराग पासवान ने जिस तरह से अचानक पहले अपने बहनोई जमुई से सांसद अरुण भारती से बिहार में बढ़ते अपराध और बिगड़ती कानून व्यवस्था को लेकर बयान दिलाया. भाजपा और नीतीश कुमार के ऊपर जब अरुण भारती के उस बयान का कोई असर नहीं हुआ तब, फिर खुद बयान दिया. यह सब कहीं न कहीं चिराग पासवान के भीतर ही उनके अंदर समाए अपने राजनीतिक भविष्य की चिंता को उजागर करता है. अगर चिराग पासवान मौकापरस्ती की राजनीति नहीं कर रहे हैं तो फिर वह सीधे-सीधे घोषणा करें कि अगर जल्दी ही कानून व्यवस्था नियंत्रित नहीं हुई राज्य में तो वह नीतीश के साथ अपनी राजनीतिक साझेदारी तुरंत वापिस ले लेंगे. मतलब, साफ है कि चिराग पासवान सिर्फ और सिर्फ अपनी राजनीतिक दुकान मजबूत करने के लिए नीतीश और उनकी सरकार के खिलाफ बयानबाजी कर रहे हैं. मर्यादा और राजनीति में एक नेक-नीयति तो होनी ही चाहिए. जोकि अपनी स्वार्थ-सिद्धि के चक्कर में फंसे चिराग पासवान और उनके बहनोई पूरी तरह से भूलते जा रहे हैं. इसीलिए चिराग पासवान और उनके बहनोई अब नीतीश कुमार और अपने गठबंधन के भी खिलाफ बोलने में नहीं शर्मा रहे हैं. ताकि किसी भी तरह से साम-दाम-दंड-भेद भुलाकर, इन जीजा बहनोई का अपना राजनीतिक भविष्य संवर सके.
मतलबपरस्ती की राजनीति और बयानबाजी
पाठकों को बताना जरूरी है कि इन्हीं चिराग पासवान के स्वर्गवासी पिता और पूर्व केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान कहा करते थे कि, मेरा (राम विलास पासवान का) समर्थक अखबार नहीं पढ़ता न ही मेरा समर्थक टीवी ही देखता है. ऐसे उसूलों वाले राम विलास पासवान के बेटे चिराग पासवान और चिराग के बहनोई अरुण भारती फिर खुद आज सोशल मीडिया, एक्स का इस्तेमाल क्यों कर रहे हैं? अगर वे अपने पिता-ससुर के ही बनाए उसूलों पर पिछड़ों और दलितों की राजनीति कर रहे हैं. इन्हें भी तो सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. इससे भी साफ जाहिर है कि राम विलास पासवान की अनुपस्थिति में उनके वारिसान मौका-परस्ती की ज्यादा और दलितों-पिछड़ों की राजनीतिक कम कर रहे हैं. अब चिराग पासवान और उनके बहनोई जमुई से सांसद अरुण भारती सिर्फ अपने लिए, अपनी राजनीति कर रहे हैं. न कि ये दोनों ही दलितों और पिछड़ों के मसीहा रह गए हैं. बिहार में बढ़ रहे अपराधों पर चिराग पासवान और अरुण भारती के बयानों में दलित-पिछड़ों का दुख-दर्द व्यथा-कथा दूर-दूर तक नहीं है. यह दोनों मौका और मतलबपरस्ती की राजनीति और बयानबाजी कर रहे हैं. जिससे नीतीश को चिंतित होने की जरूरत नहीं है मगर सतर्क रहने की जरूरत जरूर है.
जोड़तोड़-बार्गेनिंग की राजनीति कर रहे चिराग
स्टेट मिरर हिंदी के एक सवाल के जवाब में पटना में मौजूद वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार मुकेश बालयोगी ने कहा, “अतीत उठाकर देख लीजिए दलित नेतृत्व हमेशा बार्गेनिंग-सौदा-समझौता-जोड़-तोड़ के बलबूते ही जिंदा रहा है. ऐसे में अब अपनी राजनीतिक जमीन बेहद कमजोर देख चिराग पासवान उनके बहनोई जमुई से सांसद अरुण भारती भी बेहाली के आलम में इसी जोड़तोड़ बार्गेनिंग की राजनीति नीतीश और बीजेपी के साथ करके अपना वर्चस्व बनाने की लड़ाई से जूझ रहे हैं. अंबेडकर ने भी यही कहा था कि दलितों को अपनी ताकत बढ़ाने के लिए पहले अपनी बार्गेनिंग ताकत बढ़ानी होगी. राम विलास पासवान जी के राजनीतिक राजपाट का इतिहास सबके सामने मौजूद है. वह भी जीवन-पर्यंत कभी जदयू और कभी बीजेपी कभी राजग के साथ जोड़तोड़ बार्गेनिंग की ही दलित और पिछड़ों की राजनीति करते रहे.”
दबाव की राजनीति में मिलेगी कामयाबी?
अब चिराग पासवान की समझ में जैसे ही आया कि दलितों-पिछड़ों की राजनीति में उनका अपना तो कोई यादगार मजबूत योगदान तो है ही नहीं. तब फिर वे अगर नीतीश कुमार या भाजपा ने दूर हटाकर फेंके तब चिराग पासवान खुद के लिए राजनीति में क्या कर सकेंगे? बस इसी चिंता ने उन्हें दलितों और पिछड़ों के लिए जोड़तोड़-बार्गेनिंग की राजनीति की ओर मोड़ा है. इसमें उन्हें सफलता किस हद तक की मिलेगी? यह फिलहाल भविष्य के गर्त में हैं. क्योंकि राजनीति में इसका कोई पक्का ठौर-ठिकाना नहीं होता है कि, कब कहां से कौन छुटभैय्या नेता भी सत्ता के सिंहासन पर जा बैठने की काबिलियत या हुनर खुद में पैदा कर डाले? इस वक्त बिहार में राज्य विधानसभा चुनाव की बयार चल रही है. सत्ता-सुंदरी का सिंहासन सजा हुआ है. अपने राजनीतिक भविष्य के दृष्टिकोण से बेहद मुफीद ऐसे मौके को चिराग पासवान और उनके बहनोई अरुण भारती भला कैसे खाली हाथ जाने देना चाहेंगे? दोनों ही हर हाल में चाहेंगे कि किसी भी तरह से राजनीतिक दबाव बनाकर अपना-अपना राजनीतिक भविष्य संवार सकें.
(पटना से वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार मुकेश बालयोगी से नई दिल्ली में मौजूद स्टेट मिरर हिंदी के एडिटर से हुई विशेष बातचीत के आधार पर)