मिथिलांचल से मिशन सत्ता! मधुबनी-दरभंगा की 20 सीटें NDA के लिए ‘लाइफलाइन’, BJP को बड़ी उम्मीद
बिहार चुनाव 2025 के पहले चरण में मिथिलांचल की मधुबनी और दरभंगा की 20 सीटें एक बार फिर सियासी चर्चा में है. पांच साल पहले यहां के मतदाताओं ने बीजेपी और एनडीए सरकार की नींव रखी थी. इस बार भी पार्टी को इन इलाकों से बड़ी उम्मीद है, लेकिन मुकाबला पहले से कहीं ज्यादा टफ है.इ परंपरागत रूप से यह कांग्रेस का गढ़ था. उसके आरजेडी ने पकड़ बनाई, लेकिन पिछले दो दशक से बीजेपी और जेडीयू गढ़ बन गया है.;
मिथिलांचल के दो जिले मधुबनी और दरभंगा की पहचान सिर्फ संस्कृति और परंपरा से नहीं बल्कि सियासी समीकरणों से भी जुड़ी है. बिहार चुनाव 2025 में मधुबनी और दरभंगा जिले की कुल 20 विधानसभा सीटें एनडीए और महागठबंधन दोनों के लिए निर्णायक साबित हो सकती हैं. बीजेपी को पांच साल पहले इन इलाकों में जबरदस्त समर्थन मिला था. दरभंगा की 10 सीटों पर आज मतदान हो रहा है. अब पार्टी एक बार फिर उसी लहर को दोहराने की कोशिश में है.
मधुबनी जिले की 10 सीटें
मधुबनी जिले में 10 विधानसभा सीटें हैं. इनमें बिस्फी, मधुबनी, बेनीपट्टी, झंझारपुर, फुलपरास, खजौली, बाबूबरही, लौकहा, अंधराठाढ़ी और राजनगर (SC) शामिल हैं.
दरभंगा की 10 सीटें
दरभंगा जिले में भी 10 विधानसभा सीटें हैं. इनमें दरभंगा ग्रामीण, दरभंगा शहरी, हनुमाननगर (SC), बहादुरपुर, हायाघाट, बिरौल, गौड़ाबौराम, जाले, केवटी और सिंहवाड़ा शामिल हैं.
क्या है सियासी समीकरण?
मधुबनी और दरभंगा दोनों जिले मिथिलांचल की राजनीति के केंद्र माने जाते हैं. यहां जातीय समीकरणों के साथ-साथ भाजपा के पारंपरिक वोट बैंक का गहरा प्रभाव है. 2020 के चुनाव में बीजेपी ने इन 20 में से 17 सीटें जीती थीं. शेष सीटों पर महागठबंधन यानी आरजेडी के खाते में गई थी. आरजेडी ने दरभंगा ग्रामीण, मधुबनी सदर और लोकहा से जीत हासिल की थी.
दरभंगा और मधुबनी में ब्राह्मण, मैथिल कायस्थ, बनिया और सवर्ण समुदाय भाजपा के मुख्य वोटर रहे हैं, जबकि मुस्लिम-यादव समीकरण महागठबंधन की ताकत बना हुआ है. यही वजह है कि इस बार दोनों खेमे इन इलाकों में अपनी रणनीति को और आक्रामक बनाए हुए हैं.
दरभंगा सिटी बीजेपी के लिए प्रतिष्ठा का सवाल
दरभंगा शहरी सीट पर बीजेपी के लिए यह ‘प्रतिष्ठा की लड़ाई’ मानी जा रही है. यहां पिछली बार भाजपा ने रिकॉर्ड बढ़त से जीत हासिल की थी. वहीं बेनीपट्टी, झंझारपुर, फुलपरास और खजौली में जेडीयू और भाजपा के बीच सीट बंटवारे की सटीक रणनीति बनाई जा रही है.
महागठबंधन की ओर से आरजेडी और कांग्रेस दोनों दल यादव–मुस्लिम समीकरण को साधने में जुटे हैं. दोनों जिलों में एमवाई वोटर निर्णायक भूमिका निभाते हैं. खासकर ग्रामीण इलाकों में जातीय एकजुटता, बेरोजगारी और स्थानीय मुद्दे चुनावी माहौल को गर्म कर रहे हैं.
विकास के नाम पर एनडीए को जीत की उम्मीद
बीजेपी ने मिथिलांचल में विकास के एजेंडे पर जोर देते हुए दरभंगा AIIMS, सड़क परियोजनाएं और मिथिला पेंटिंग उद्योग को अपने प्रचार का केंद्र बनाया है. बिहार सरकार ने मखाना बोर्ड का भी गठन किया है. पूरे देश को मखाना सप्लाई करने वाले मिथिला क्षेत्र के लिए यह घोषणा भावनात्मक रूप से अहम है. मधुबनी पेंटिंग का केंद्र भी इसी दो जिलों में हैं. इसके अलावा भाजपा ने यहां के सामाजिक समीकरणों का भी हमेशा ख्याल रखा है। सकरी स्थित पंडौल में सूती मिल खुल गया है. वहीं आरजेडी बेरोजगारी और किसानों की समस्याओं को लेकर सरकार पर निशाना साध रही है.
राजनीति के जानकारों का कहना है कि मधुबनी-दरभंगा की 20 सीटें बिहार की सत्ता की दिशा तय करने में फिर निर्णायक साबित होंगी. यहां बीजेपी की बढ़त उसे राज्यभर में मनोवैज्ञानिक बढ़त दिला सकती है, जबकि महागठबंधन को पिछली हार की भरपाई करने का यही मौका है.
मैथिली ठाकुर अलीनगर से लड़ रहीं चुनाव
अलीनगर सीट से बीजेपी टिकट पर चुनाव लड़ रहीं मैथिली ठाकुर इसी क्षेत्र से हैं. मधुबनी के बेनीपट्टी की वह रहने वाली हैं. उनके मामा गांव दरभंगा जिले हैं. वह दरभंगा के अलीनगर से चुनाव लड़ रही हैं. यही वजह है कि वो अलीनगर को भी अपने मामा का गांव मानती हैं. पिछली बार इस सीट से बीजेपी के मिश्री लाल यादव चुनाव जीते थे. उन्होंने आरजेडी के विनोद मिश्रा को हराया था. इस बार भी आरजेडी की ओर से मैथिली ठाकुर के खिलाफ विनोद मिश्रा ही चुनाव लड़ रहे हैं. यह एकमात्र इलाका है, जहां ब्राह्मणों की अच्छी आबादी है. ऐसे में उन्हें भी दोनों दल मौका दे रहे हैं। इसके अलावा ओबीसी, दलित और मुस्लिम वर्ग को लुभाकर महागठबंधन आगे बढ़ने की कोशिश में है.