Bihar Chunav: सभी दलों ने उड़ाई जाति जनगणना की धज्जियां! RJD-Congress की खुली पोल, जानें किसे मिला कितना हिस्सा
राजनीति में जातिगत हिस्सेदारी को लेकर बिहार चुनाव 2025 से करीब दो साल पहले आरजेडी, जेडीयू और कांग्रेस ने केंद्र सरकार को देश में पहली बार जातिगत जनगणना कराने के लिए मजबूर किया था. बिहार के प्रमुख सियासी दलों के आगे बीजेपी को भी झुकने के लिए मजबूर होना पड़ा. जातिगत जनगणना हुई, आंकड़े भी सामने आए, लेकिन किसी भी सियासी दल ने इसका ख्याल रखा. जब टिकट देने की बात आई तो सभी अपनी-अपनी रोटी सेंकते नजर आए.;
बिहार चुनाव 2025 में जाति जनगणना सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा रहा है. पिछले दो साल से इसको लेकर बड़े पैमाने पर सियासी नौटंकी भी बिहार में देखने को मिला. आरजेडी-कांग्रेस ने तो इसको लेकर आंदोलन भी चलाए और जातीय जनगणना को सियासी प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया है. इन दलों का केंद्र पर आरोप लगाया कि वो उन जाति के लोगों के साथ अन्याय कर रही है, जिसकी आबादी ज्यादा है, लेकिन जब टिकट बंटवारे की बारी आई तो वही दल इस जनगणना के आंकड़ों से मुंह मोड़ते नजर आए. एनडीए हो या महागठबंधन-किसी ने भी वास्तविक जनसंख्या अनुपात के अनुसार टिकट नहीं दिए. इससे जातीय न्याय और सामाजिक प्रतिनिधित्व की राजनीति की पोल खुल गई.
आरजेडी और कांग्रेस, जो जातीय न्याय का अगुवा थी, के टिकट वितरण में भी पिछड़ी व अति-पिछड़ी जातियों की हिस्सेदारी बेहद कम रही है. किसी भी प्रमुख दल ने संख्या के आधार पर उम्मीदवारों का चयन नहीं किया. जनसंख्या के मुकाबले मुस्लिम को जहां सबसे कम हिस्सेदारी मिली है, वहीं संख्या पर के आधार पर देखें तो इस बार राजपूतों को सबसे अधिक तवज्जो मिली.
1. Bihar: जातीय समीकरण
बिहार की कुल आबादी में राजपूत - 3.45%, भूमिहार - 2.86%, ब्राह्मण - 3.65%, वैश्य - 2.31 %, दलित - 19.65%, अतिपिछड़ा - 36%, यादव - 14.26%, कोईरी - 4.2 1%, मुस्लिम - 17.70% प्रतिशत है.
2. BJP: राजपूतों को कई गुना ज्यादा दिए टिकट
भाजपा ने राजपूत को 21 प्रतिशत, भूमिहार को 15 प्रतिशत, ब्राह्मण को 11 प्रतिशत, वैश्य को प्रतिशत, दलित को 12 प्रतिशत, अति पिछड़ों को 7 प्रतिशत, यादव को 6 प्रतिशत, कोईरी को 6 प्रतिशत और मुसलमान को शून्य प्रतिशत सीट बांटे हैं.
यानी बीजेपी ने बिहार की अन्य सियासी पार्टियों की तुलना में राजपूतों को उनकी जनसंख्या के मुकाबले सबसे अधिक हिस्सेदारी दी है. बीजेपी ने सवर्ण व व्यापारिक समुदाय के उम्मीदवारों पर ज्यादा भरोसा जताया. जहां तक बात भाजपा की है तो पार्टी के 101 उम्मीदवारों की सूची में ‘भूरा बाल’ यानी भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण और लाला को कुल जनसंख्या प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी दी है. हालांकि, सवर्णों में संख्या के हिसाब से ब्राह्मणों की सबसे ज्यादा उपेक्षा हुई.
भाजपा ने दलित और अति पिछड़ों को उनके औसत आबादी के हिसाब से कम टिकट दिया है. यदि कम हिस्सेदारी की बात करें तो बिहार में कुल वोटरों में अति पिछड़ा वोटरों की संख्या 36 प्रतिशत के करीब है, लेकिन भाजपा ने उसे महज 6 फीसदी हिस्सेदारी दी है. कोइरी जाति को जरूर भाजपा ने जनसंख्या के अनुपात में टिकट दिया है. कोइरी जाति से 6 उम्मीदवार मैदान में उतारे गए हैं. बिहार में कोइरी जाति की आबादी 4.2 1% है.
भाजपा की सूची में दो सबसे बड़े जातीय समूह यानी यादव और मुस्लिम में यादव की हिस्सेदारी बेहद कम दी है. मुस्लिम की तो सूची में नाम तक नहीं है. जबकि बिहार में मुसलमान की आबादी 17.70% है. बिहार में यादवों की जनसंख्या 14.26 प्रतिशत है, लेकिन भाजपा ने यादव जाति के 7 नेताओं को विधानसभा की टिकट दिया है.
3. JDU ने भी संख्या का नहीं किया सम्मान
नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड की बात करें तो इस बार उसने चार मुस्लिम चेहरों को मौका दिया है. 2020 के विधानसभा चुनाव में यह आंकड़ा 11 था. जदयू की लिस्ट में 13 महिलाएं भी दिखाई दे रही हैं, जिनमें से कुछ विधायकों को फिर से मौका मिला है. जेडीयू ने 101 उम्मीदवारों में से 59 ईबीसी और ओबीसी को टिकट दिए हैं. इनमें ईबीसी को 22 टिकट मिले हैं. कम आबादी वाले कुर्मी जाति को 12 प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं. आठ यादव और चार अन्य जातियों को भी जेडीयू की लिस्ट में जगह दी है. पार्टी के पांच प्रत्याशी मुसहर और रविदासी समुदाय से हैं.
4. RJD ने मुसलमानों के साथ किया भेदभाव
बिहार में जातिगत जनगणना की सबसे ज्यादा मांग करने वाली पार्टी आरजेडी ने टिकट देते समय मुस्लिम समाज के साथ अन्याय किया है. लालू यादव ने आरजेडी के 143 उम्मीदवारों में से 51 यादव उम्मीदवार उतारे हैं. 19 मुस्लिम प्रत्याशियों को टिकट दिए हैं. 14 सवर्ण उम्मीदवारों को भी पार्टी ने चुनाव लड़ने का मौका दिया है. कुशवाहा समाज पर भी पार्टी का विशेष ध्यान रहा है. 11 उम्मीदवार इसी वर्ग से आते हैं. आरजेडी का यह जातीय समीकरण उसके पारंपरिक गठजोड़ “MY” (मुस्लिम-यादव) प्लस 'के' यानी कुशवाहा का गठजोड़ दिखाई दे रहा है.
बिहार में सवर्ण, दलित और मुसलमान कांग्रेस के परंपरागत वोटर रहे हैं. कांग्रेस के परंपरागत मतदाताओं पर बीजेपी, आरजेडी और जेडीयू का कब्जा है. कांग्रेस ने अपनी खोई जमीन वापस हासिल करने के लिए सवर्ण, मुसलमान तथा दलित समाज से आने वाले नेताओं पर भरोसा जताया है. सवर्णों को खुले मन से टिकट देने के साथ ही इस बार पिछड़ा-अति पिछड़ा वर्ग को भी देश की सबसे पुरानी पार्टी ने तवज्जो दी है. इसके अलावा कांग्रेस ने 5 मुस्लिमों को भी मैदान में उतारा है, जो उनकी आबादी से कम है.
5. VIP निषाद को सबसे ज्यादा, एलजेपी ने राजपूत-यादव को तवज्जो
बिहार असेंबली इलेक्शन 2025 में मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) ने 15 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है. पार्टी ने मुकेश सहनी के छोटे भाई संतोष सहनी गौड़ा बौराम से मैदान में उतारा है. पार्टी ने सबसे ज्यादा निषाद जाति के 7 लोगों को टिकट दिया है. इसके अलावा, 3 यादव, 2 राजपूत और मुसहर, कुर्मी, अग्रहरि वैश्य से एक-एक उम्मीदवार को मैदान में उतारा है. लोजपा-आर ने सबसे ज्यादा राजपूत और यादव जाति के 5-5 उम्मीदवारों को टिकट दिया है. पासवान एवं भूमिहार से 4-4, जबकि ब्राह्मण, तेली, पासी, सूढ़ी, रौनियार, कानू, रजवार, धोबी, कुशवाहा, रविदास और मुस्लिम समाज से एक-एक कैंडिडेट उतारा गया है.
6. वामपंथी पार्टियों ने भी तोड़ी परंपरा
बिहार में वामपंथी पार्टियां - सीपीआई एमएल, सीपीआई और सीपीएम जो सामाजिक न्याय की बात करती हैं, लेकिन उनके टिकटों में भी अधिकांश प्रत्याशी सवर्ण या ओबीसी जातियों से हैं.