बिहार में चुनाव से पहले फिर बाहर निकला 'भूरा बाल' का जिन्‍न, लालू के इस विवादित नारे का इतिहास जान लीजिए

बिहार की राजनीति में एक बार फिर ‘भूरा बाल साफ करो’ का नारा चर्चा में है. यह नारा लालू प्रसाद यादव के 1990 के दशक के सोशल इंजीनियरिंग मॉडल से जुड़ा है. उस समय बिहार की सियासत में इस नारे ने जातीय ध्रुवीकरण को नई दिशा दी थी. जानिए, क्या है 'भूरा बाल' नारे का इतिहास और चुनाव आते ही यह आग की लपटों की तरह क्यों भड़क उठता है.;

Curated By :  धीरेंद्र कुमार मिश्रा
Updated On : 12 July 2025 11:34 AM IST

बिहार विधानसभा चुनाव से पहले हर बार प्रदेश की राजनीति में कुछ पुराने जिन्न फिर बाहर आ जाते हैं. इस बार चुनाव अक्टूबर नवंबर में प्रस्तावित है. हर बार की तरह एक बार फिर 'भूरा बाल साफ करो' का नारा सुर्खियों में है. यह वही नारा है जिसने 1990 के दशक में सत्ता, जाति और सामाजिक न्याय की बहस को एक नई दिशा दी थी. लालू प्रसाद यादव का यह नारा जितना उनके समर्थकों के लिए गर्व का प्रतीक बना, उतना ही विरोधियों के लिए सवर्ण विरोध का पर्याय भी माना गया.

‘भूरा बाल’ टर्म के तहत बिहार के चार प्रभावशाली सवर्ण जातियों को आरजेडी के नेताओं ने टारगेट किया गया था. इसमें भू से भूमिहार, रा से राजपूत, बा से ब्राह्मण और ल से लाला (वैश्य) शामिल हैं. इस नारे का मकसद यह है कि इन परंपरागत रूप से सत्ता में हावी जातियों को सत्ता से बेदखल किया जाए और पिछड़ों, दलितों और मुसलमानों को मुख्यधारा में लाया जाए. यह नारा मंडल कमीशन की राजनीति और OBC आंदोलन के उस दौर में गूंजा था, जब बिहार की राजनीति नई करवट ले रही थी.

लालू के नारे का इतिहास - कब और कैसे अस्तित्व में आया?

यह नारा पहली बार 1990 के शुरुआती वर्षों में बिहार की राजनीति में उभरा. उसी दौर में कांग्रेस का पतन होने के बाद लालू यादव बिहार में सामाजिक न्याय के झंडाबरदार बनकर उभरे थे. हालांकि, लालू यादव ने खुद कभी सार्वजनिक मंच से इस नारे को नहीं दोहराया, लेकिन उनके समर्थकों में यह नारा जातीय चेतना और वर्गीय संघर्ष का प्रतीक बन गया. तेजस्वी यादव ने हमेशा ‘समान अवसर, समान हिस्सेदारी’ की बात की है. तेजस्वी यादव का कहना है कि आरजेडी 'माई-बाप' की पार्टी है. माई मतलब मुसलमान और यादव. बाप मतलब बी से बहुजन, ए से अगड़ा, ए से आधी आबादी (महिला) और पी से पुअर (गरीब).

वह कहते हैं कि सामाजिक न्याय के बिना विकास अधूरा है, लेकिन चुनावों से पहले इस नारे का उछाल एक भावनात्मक ध्रुवीकरण की रणनीति के तहत देखा जा रहा है. शायद इस बार भी चुनाव से पहले यह जिन्न बोतल से बाहर आ गया है.

लालू यादव की राजनीति का सूत्र वाक्य था - ‘जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी.’ यह नारा उसी सिद्धांत का अमलीकरण था, जिसमें सत्ता को आबादी के अनुपात में बांटने की मांग की गई. इस नारे ने बिहार की सत्ता संरचना को पूरी तरह उलट दिया. जबकि बिहार में पहले सवर्ण जातियां प्रशासन, नौकरशाही और राजनीति में प्रभावशाली थीं. वहीं मंडल राजनीति के बाद OBC, विशेषकर यादव समुदाय ने सत्ता में अपनी मजबूत पकड़ बनाई. लालू ने इस ‘भूरा बाल’ मॉडल के जरिए एक स्थायी MY (Muslim-Yadav) गठजोड़ खड़ा किया, जो आज तक बिहार की राजनीति की धुरी बना हुआ है.

अब चर्चा में क्यों?

साल 2025 के चुनाव नजदीक आते ही जातीय जनगणना, सामाजिक न्याय और आरक्षण जैसे मुद्दों ने दोबारा हवा पकड़ी है. विपक्ष एक बार फिर ‘जातीय आंकड़ों के आधार पर सत्ता और संसाधन के बंटवारे’ की मांग कर रहा है. ऐसे में पुराना नारा फिर से उछाला जा रहा है. NDA के सहयोगी दल और सवर्ण संगठनों ने इसका विरोध शुरू कर दिया है. जबकि RJD खेमे में इसे ‘सामाजिक न्याय का प्रतीक’ कहा जा रहा है.

दरअसल 5 जुलाई 2025 को आरजेडी के स्थापना दिवस समारोह सह राजद के खुला अधिवेशन में प्रदेश अध्यक्ष मंगनी लाल मंडल ने चतुराई से 20 सालों से राजनीति की नेपथ्य में चले गए जिन्न 'भूरा बाल' बोतल से बाहर निकाल दिया. उन्होंने इस नारे का जिक्र किया था। इसे लालू के खिलाफ साजिश बताया था. उन्होंने कहा था— 'लालू यादव ने सीना तान के सामंतों, मनुवादियों को चुनौती दी थी. तब हाजीपुर में षड्यंत्र रचा गया. फिर मंडल ने 'भूरा बाल' के बारे में नई पीढ़ी को बताया. भू मतलब भूमिहार, रा मतलब राजपूत, बा मतलब ब्राह्मण और ल मतलब लाला.

मंगनी लाल मंडल के बयान के चार दिन बाद यानी 9 जुलाई को राजद के अतरी विधायक अजय उर्फ रणजीत यादव की उपस्थिति में यह नारा एक जनसभा में लगाया गया. विधायक की मौजूदगी में मंच से अतरी के सीढ़ पंचायत के शिवाला में मुखिया पति मुनारिक यादव ने इसे दोहराया. उन्होंने कहा - 'शुरू में हमारे लालू जी जो कहते थे कि भूरा बाल साफ करो. अब वही समय आ गया है कि फिर से भूरा बाल साफ करो. उनके इस भाषण पर विधायक समेत सभा में उपस्थित लोगों ने खूब तालियां बजाई. वैसे विधायक ने मुनारिक रोकने की कोशिश भी की.

खतरे की आहट देख विधायक ने दी सफाई

अब इस घटना के बाद राजद विधायक रंजीत यादव ने सफाई दी है। अतरी विधायक ने स्पष्ट किया कि राजद ए टू जेड की पार्टी है। उन्होंने कहा कि यह नारा मुनारिक यादव नाम के एक शख्स ने दिया. विधायक के अनुसार, मुनारिक यादव न तो उनका कार्यकर्ता है और ना ही आरजेडी का कोई सदस्य है.

आरजेडी को भी जारी करना पड़ा स्पष्टीकरण

बिहार चुनाव से ठीक पहले पार्टी की छवि खराब करने की कोशिश राजद प्रवक्ता चितरंजन गगन ने कहा कि लालू यादव ने ऐसा कभी नहीं कहा. कई बार इसका खंडन भी किया जा चुका है. एक साजिश के तहत जान बूझकर कर राजद की छवि खराब करने के लिए इसे बार-बार दोहराया जाता है. हाजीपुर के जिस मीटिंग में ये बात कहने का जिक्र किया जाता है, वहां मैं खुद उपस्थित था. गोरौल प्रखंड में राम परीक्षण चंद्र ज्योति उच्च विद्यालय की उस चुनावी सभा में लालू जी ने ऐसा कुछ नहीं कहा था.

किसने क्या कहा?

भूरा बाल कहने वाले साफ हो जाएंगे - जीतन राम मांझी

केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने कहा कि जो इस स्लोगन को भूल गए थे, वो भुल भूलैया में है. उनको भूलना नहीं चाहिए. 'भूरा बाल' लालू जी का नारा है. अब ये स्लोगन कहने वाले ही साफ हो जाएंगे.

समाज को बांटने की कोशिश - गिरिराज सिंह

केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा कि विवादित नारे को दोहराया जाना गलत है. यह समाज को बांटने की कोशिश है. राष्ट्रीय जनता दल फिर से बिहार को 90 के दशक की पिछड़ी राजनीति में ले जाना चाहता है.

जंगलराज लाना चाहते हैं कि RJD वाले - अरुण भारती

लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास के सांसद अरुण भारती ने कहा कि 15 साल के लालू-राबड़ी राज में भी ऐसी ही बातें कही जाती थीं. ये लोग फिर से बिहार में जंगल राज लाना चाहते हैं. ऐसा प्रयास किया गया तो जनता मुंहतोड़ जवाब देगी.

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