वोटर लिस्ट में 11000 भूतिया वोटर्स! बांग्लादेशी या रोहिंग्या होने का शक, बिहार SIR में बचे अब पांच दिन

बिहार की मतदाता सूची में 11,000 ऐसे वोटर मिले हैं जिनका न तो कोई पता है, न पड़ोसियों को जानकारी. चुनाव आयोग को शक है कि ये अवैध प्रवासी या फर्जी मतदाता हो सकते हैं. 41.6 लाख मतदाता अब तक अपने पते पर नहीं मिले हैं. यह आंकड़ा कई सीटों के नतीजों को प्रभावित करने की ताकत रखता है, जो लोकतंत्र पर बड़ा सवाल है.;

( Image Source:  ANI )
Edited By :  नवनीत कुमार
Updated On :

बिहार में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) अपने अंतिम चरण में है, लेकिन इसकी प्रक्रिया में सामने आए कुछ आंकड़े चिंता बढ़ाने वाले हैं. चुनाव आयोग के मुताबिक लगभग 41.6 लाख वोटर अपने पते पर नहीं मिले, जिनमें से 11,000 ऐसे हैं जिनका कोई अता-पता ही नहीं. ना पड़ोसियों को खबर, ना दर्ज पते पर घर मौजूद. यह आंकड़े मात्र गिनती नहीं, बल्कि लोकतंत्र की जड़ों में लगी एक चुपचाप फैलती बीमारी का संकेत हैं.

टाइम्स ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, ये 11,000 'पता नहीं लगने वाले' वोटर संभावित रूप से अवैध प्रवासी हो सकते हैं, जैसे कि बांग्लादेशी या रोहिंग्या, जो बिहार के बाहर रहकर भी फर्जी तरीके से राज्य में मतदाता पहचान पत्र बनवाने में सफल हुए. यह कैसे हुआ? संभवतः पिछली समीक्षा के दौरान की गई लापरवाही, राजनीतिक हस्तक्षेप या प्रशासनिक भ्रष्टाचार के चलते. विशेषज्ञ इसे फर्जी वोटिंग के लिए ज़मीन तैयार करने वाला कृत्य मान रहे हैं.

बीएलओ की तीन बार जांच, फिर भी ग़ायब वोटर!

चुनाव आयोग के निर्देश पर बूथ लेवल अधिकारियों (BLOs) ने तीन बार हर घर जाकर मतदाताओं की मौजूदगी की पुष्टि करनी चाही, लेकिन 5.3% यानी लगभग 42 लाख लोग अपने पते पर नहीं मिले. इनमें से कुछ का दावा है कि वे अब अन्य स्थानों पर बस चुके हैं, लेकिन कई नाम ऐसे भी हैं जो शायद कभी अस्तित्व में थे ही नहीं. पड़ोसी भी उनका नाम सुनकर हैरान हैं.

मरे हुए लोग भी वोटर लिस्ट में ज़िंदा?

सबसे हैरान करने वाला आंकड़ा यह है कि 14.3 लाख मतदाता संभवतः मृत हैं, फिर भी उनका नाम 24 जून 2025 तक मतदाता सूची में बना रहा. यह न सिर्फ प्रशासन की लापरवाही को दर्शाता है, बल्कि फर्जी वोटिंग की संभावना को भी बल देता है. अगर ऐसे वोट एक सीट पर निर्णायक भूमिका में आ जाएं, तो चुनाव की निष्पक्षता पर बड़ा सवाल खड़ा हो सकता है.

आंकड़ों में छिपा खतरा

41 लाख से ज्यादा मतदाता जब अलग-अलग निर्वाचन क्षेत्रों में वितरित होते हैं, तो यह आंकड़ा कई सीटों के हार-जीत के अंतर से भी बड़ा हो सकता है. यानी, अगर ऐसे मतदाता वास्तव में फर्जी हैं या ग़ायब, तो परिणामों की वैधता पर सीधा असर पड़ सकता है. यही वजह है कि आयोग इस बार पुनरीक्षण को इतना सख्ती से लागू कर रहा है.

96% वोटर्स तैयार, लेकिन चुनौती बाकी

अब तक बिहार के 7.9 करोड़ मतदाताओं में से 96% ने अपने नामांकन फॉर्म जमा कर दिए हैं और लगभग 88.2% का डिजिटलीकरण भी हो चुका है. आयोग का लक्ष्य है कि बचे हुए 32 लाख वोटर्स को अंतिम ड्राफ्ट में जोड़ा जाए. लेकिन जो असल चुनौती है, वह इन ग़ायब, मृत या फर्जी वोटर्स को पहचानकर सूची से हटाने की है, ताकि 2025 के चुनाव एक पारदर्शी और निष्पक्ष प्रक्रिया के रूप में संपन्न हो सके.

Similar News