मियां कहकर अपमान क्यों? धर्म के नाम पर सत्ता चाहती है सरकार, अतिक्रमण हटाओ अभियान पर जमीयत उलमा-ए-हिंद का फूटा गुस्सा

असम में चल रहे अतिक्रमण हटाओ अभियान को लेकर जमीयत उलमा-ए-हिंद ने सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं. संगठन के उलेमा का कहना है कि यह कार्रवाई सिर्फ जमीन खाली कराने के लिए नहीं, बल्कि एक खास समुदाय को निशाना बनाने के इरादे से की जा रही है. उन्होंने सवाल उठाया कि लोगों को 'मिया', 'अज्ञात' और 'संदिग्ध' जैसे शब्दों से क्यों अपमानित किया जा रहा है.;

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Edited By :  हेमा पंत
Updated On : 2 Sept 2025 2:50 PM IST

असम में अतिक्रमण हटाने को लेकर चल रहे अभियान पर अब राजनीतिक और सामाजिक बहस तेज हो गई है.राज्य सरकार की इस कार्रवाई से हजारों बांग्ला बोलने वाले मुस्लिम परिवारों को प्रभावित होना पड़ा है. इसी को लेकर जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने चिंता जताई है और इस अभियान की आलोचना की है.

मौलाना मदनी ने कहा कि यह सिर्फ ज़मीन का नहीं, बल्कि इंसानियत और संविधान की मर्यादा से जुड़ा मामला है. उन्होंने आरोप लगाया कि लोगों को धर्म के आधार पर बांटा जा रहा है ताकि राजनीतिक फायदा उठाया जा सके. उनके मुताबिक, कुछ खास नारे लगाकर लोगों को अलग समुदाय का बताया जा रहा है, उन्हें 'मिया', 'अज्ञात' और 'संदिग्ध' कहकर निशाना बनाया जा रहा है

जमीन से बेदखली या समुदाय विशेष को निशाना?

मौलाना महमूद मदनी ने मंगलवार को असम के ग्वालपाड़ा जिले का दौरा किया. दौरे के बाद उन्होंने कहा कि जो अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई हो रही है, वह सिर्फ जमीन का मामला नहीं है, बल्कि इसे एक खास समुदाय को निशाना बनाकर दमन के रूप में अंजाम दिया जा रहा है. उन्होंने बताया कि लोगों को 'मिया', 'अज्ञात' और 'संदिग्ध' जैसे शब्दों से पुकारा जा रहा है, जो अपमानजनक हैं. ऐसे शब्द समाज में नफरत फैलाते हैं और लोगों को एक-दूसरे से दूर करते हैं.

पहचान के लिए सही रास्ता अपनाए

मौलाना मदनी ने सवाल उठाया कि अगर किसी पर शक है कि वह विदेशी है, तो सरकार को पहले उसकी पहचान ठीक से जांचनी चाहिए और फिर कानूनी प्रक्रिया अपनानी चाहिए. उन्होंने कहा कि 'हम यह नहीं कह रहे कि कोई विदेशी भारत में रहना चाहिए, लेकिन सिर्फ शक के आधार पर किसी को बेघर कर देना, और वह भी अपमानजनक तरीके से, यह बिल्कुल ठीक नहीं है.'

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मौलाना मदनी का भावुक बयान

मौलाना महमूद मदनी ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि 'अगर आप जाकर देखें कि निष्कासन किस तरीके से किया जा रहा है, तो आप भी दुखी हो जाएंगे. समुदाय और देश, दोनों एक व्यवस्थित ताने-बाने से बनते हैं. अगर उसे तोड़ा जाता है, कुचला जाता है, तो उसका असर पूरे देश पर पड़ता है.'

सरकार की सफाई और पुलिस की सतर्कता

इस बीच, असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने स्थिति पर निगरानी बनाए रखने की बात कही है. उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा कि जमीयत का सात सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल असम दौरे पर है, और प्रशासन व पुलिस शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए सतर्क हैं. सरमा ने साफ किया कि बोडोलैंड प्रादेशिक क्षेत्र में आगामी चुनावों को देखते हुए राज्य सरकार अतिरिक्त सतर्कता बरत रही है. उनका कहना है कि निष्कासन अभियान प्रशासनिक प्रक्रिया का हिस्सा है और इसका उद्देश्य सरकारी जमीन को अतिक्रमण से मुक्त कराना है, न कि किसी धर्म या समुदाय को निशाना बनाना.

2021 से अब तक का असर: हजारों प्रभावित

असम सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, 2021 से शुरू हुए इस अभियान के तहत अब तक 160 वर्ग किलोमीटर से अधिक जमीन को अतिक्रमण मुक्त कराया जा चुका है. इस प्रक्रिया में करीब 50,000 से ज्यादा लोग प्रभावित हुए हैं, जिनमें अधिकांश बांग्ला भाषी मुस्लिम परिवार हैं. जमीयत और अन्य सामाजिक संगठनों का आरोप है कि यह अभियान सुनियोजित तरीके से एक खास अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बना रहा है. उनका कहना है कि जिन परिवारों को हटाया गया, वे वर्षों से वहां रह रहे थे, और उनके पास कुछ कानूनी दस्तावेज भी मौजूद थे. बावजूद इसके, उन्हें अचानक बेदखल कर दिया गया.

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