कभी हरगिला के चूजों को देखकर आई थी जुड़वां बेटियों की याद, अब बनीं 'टाइम वुमन ऑफ द ईयर'... कहानी पूर्णिमा देवी की
दुनिया की प्रसिद्ध टाइम मैगजीन ने 2025 के लिए 13 महिलाओं को टाइम वुमन ऑफ द ईयर चुना है, जिसमें असम के कामरूप जिले की रहने वालीं पूर्णिमा देवी बर्मन भी शामिल हैं. उन्हें हरगिला पक्षी के संरक्षण के लिए उनके द्वारा चलाए गए अभियान को देखते हुए उन्हें वुमन ऑफ ईयर चुना है. इससे पहले, 2022 में उन्हें UNEP ने 'चैंपियंस ऑफ द अर्थ' चुना था.;
Time Women of the Year 2025 Story of Purnima Devi: दुनिया की प्रसिद्ध टाइम मैगजीन ने 13 महिलाओं को 2025 के लिए वुमन ऑफ द ईयर चुना है. इन महिलाओं में भारत की डॉक्टर पूर्णिमा देवी बर्मन भी शामिल हैं. पूर्णिमा असम के कामरूप जिले की रहने वाली हैं. उन्हें हरगिला पक्षी को बचाने के लिए उनके द्वारा चलाई गई मुहिम के लिए टाइम वुमन ऑफ द ईयर 2025 चुना गया है. वह 13 महिलाओं में शामिल एकमात्र भारतीय महिला हैं.
हरगिला को ग्रेटर एडजुटेंट स्टॉर्क भी कहा जाता है. इसे लुप्तप्राय पक्षी माना जाता है. पूर्णिमा ने इन पक्षियों को बचाने के लिए 'हरगिला सेना' बनाई है, जिनमें 20 हजार महिलाएं शामिल हैं.
2007 की घटना ने बदल दी जिंदगी
साल 2007 की घटना ने पूर्णिमा देवी की जिंदगी बदलकर रख दी. एक दिन पूर्णिमा को किसी ने फोन पर बताया कि एक पेड़ काटा जा रहा है. इसमें हरगिला का घोंसला भी है. इस पर जब पूर्णिमा मौके पर पहुंचीं तो हरगिला के चूजे जमीन पर गिरे हुए थे. जब उन्होंने पेड़ काटने वालों से पूछा कि उन्होंने ऐसा क्यों किया तो उन्होंने बताया कि यह पक्षी अपशकुन माना जाता है. इससे बीमारी फैलती है. इसलिए पेड़ को काट दिया.
'विरोध करने पर नाराज हुए पड़ोसी'
पूर्णिमा देवी ने जब पेड़ काटने वालों की बात का विरोध किया तो पड़ोसी नाराज हो गए. हरगिला के चूजों को देखकर उन्हें उनकी नवजात जुड़वां बेटियां याद आ गईं, जो अभी छोटी थीं. जब पूर्णिमा ने चूजों की धड़कन महसूस की तो उनके पैर वहीं थम गए. यहीं से उन्होंने यह तय कर लिया कि अब वे हरगिला को मरने नहीं देंगी और उन्हें बचाएंगी.
450 से अब 1800 के पार पहुंची हरगिला की संख्या
बता दें कि असम में 2007 में 450 हरगिला थे. उनकी कोशिशों का नतीजा रहा कि इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर ने हरगिला को 'संकटग्रस्त' से हटाकर 'नियर थ्रेटेंड' कर दिया. आज राज्य में इनकी संख्या 1800 से ज्यादा है. यह 'हरगिला सेना' के प्रयासों का नतीजा है. इस सेना में शामिल 20 हजार महिलाएं हरगिला के घोंसलों की रक्षा करती हैं. इसके साथ ही वह लोगों को जागरूक भी करती हैं. आज हरगिला को बचाने की मुहिम प्रदेश और देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी फैल चुकी है. फ्रांस में तो स्कूलों में हरगिला के बारे में बच्चों को पढ़ाया जा रहा है.
UNEP ने 2022 में चुना 'चैंपियंस ऑफ द अर्थ '
डॉ पूर्णिमा देवी बर्मन वुमन इन नेचर नेटवर्क (WiNN) इंडिया की निदेशक और IUCN स्टॉर्क, आइबिस और स्पूनबिल विशेषज्ञ समूह की सदस्य हैं. उन्हें संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम यानी UNEP ने 2022 में 'चैंपियंस ऑफ द अर्थ' चुना था. उन्हें 2017 में तत्कालीन राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने नारी शक्ति पुरस्करा से सम्मानित किया गया. इसके अलावा, उन्हें 2017 में ही ब्रिटेन की राजकुमारी द्वारा दिया जाएगा व्हिटली पुरस्कार भी मिला.
5 साल की उम्र में दादी के पास रहने आईं
पूर्णिमा देवी को 5 साल की उम्र में ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे अपनी दादी के पास रहने के लिए भेज दिया गया. दादी के लिए पूर्णिमा को संभालना मुश्किल हो जाता था. इसलिए उन्होंने उनका ध्यान भटकाने के लिए उन्हें धान के खेतों और दलदली भूमि पर ले जाने लगीं और वहां के पक्षियों के बारे में उन्हें सिखानी लगीं. पूर्णिमा ने सारस और कई अन्य प्रजातियों को देखा. दादी ने उन्हें पक्षियों के गीत भी सिखाए. यही नहीं, दादी ने उन्हें बगुलों और सारसों के लिए गाने को कहा. इसी दौरान उन्हें पक्षियों से प्यार हो गया.
ग्रेटर एडजुटेंट स्टॉर्क पर शुरू की पीएचडी
पूर्णिमा देवी ने जूलॉजी में मास्टर डिग्री हासिल करने के बाद ग्रेटर एडजुटेंट स्टॉर्क पर पीएचडी शुरू की, लेकिन यह देखते हुए कि उनके साथ बड़े हुए कई पक्षी अब नहीं रहे, उन्होंने इस प्रजाति को जीवित रखने पर ध्यान केंद्रित करने के लिए अपनी थीसिस को स्थगित करने का फैसला किया. उन्होंने 2007 में हर्गिला को बचाने के लिए अपना अभियान शुरू किया, जिसमें असम के कामरूप जिले के उन गांवों पर ध्यान केंद्रित किया गया, जहां पक्षी सबसे अधिक संख्या में थे. यहां हरगिला को शवों को खाने, हड्डियों और मृत जानवरों को अपने घोंसले के पेड़ों पर लाने और बदबूदार मल त्यागने के लिए बदनाम किया जाता है.
हरगिला लगभग 5 फीट (1.5 मीटर) लंबे होते हैं. उनके पंखों का फैलाव 8 फीट (2.4 मीटर) तक होता है. सारस को असमिया में हरगिला कहते हैं, जिसका मतलब होता है- हड्डी निगलने वाला.