असम में NRC को लेकर ये बवाल क्या? लाखों विदेशी बन गए भारतीय नागरिक और स्थानीय का हुआ ये हाल- जानें कैसे
एनआरसी में कितने विदेशी नागरिक शामिल हैं, इसे ठीक से जान पाना मुश्किल है, लेकिन किए गए सैंपल सर्वे के आधार पर माना जा सकता है कि लगभग 60 से 70 लाख ऐसे विदेशी लोगों के नाम इसमें दर्ज हो गए हैं. तो सवाल यह उठता है कि आखिर इतने बड़े पैमाने पर इस तरह की गलती कैसे हुई?;
राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) को लेकर एक बड़ा खुलासा हुआ है. पूर्व असम स्टेट कॉर्डिनेटर हितेश देव शर्मा ने कहा कि एनआरसी में कई विदेशी लोगों के नाम शामिल कर दिए गए हैं, जबकि असली स्थानीय लोगों के नाम छोड़ दिए गए. उन्होंने इसके कारण नागरिकता के डॉक्यूमेंट्स की पूरी जांच फिर से कराने की मांग की है.
अपने काम के दौरान उन्होंने दलगांव और बाघबर इलाकों में जांच की, जहां करीब 40% गलतियां मिलीं. उनका कहना है कि थोड़ी बहुत गलती हो सकती है, लेकिन 40% जैसी बड़ी गड़बड़ी स्वीकार्य नहीं है. तो सवाल उठता है कि क्या सरकार और अधिकारी सही तरीके से नागरिकता जांच कर रहे हैं? और क्या ऐसे में लोगों का भरोसा कैसे कायम रहेगा?
13 लाख से अधिक बिना दस्तावेज़ों के नाम शामिल
हितेश शर्मा ने बताया कि 13 लाख 20 हजार से ज्यादा लोगों के नाम बिना सही दस्तावेज़ के एनआरसी में शामिल कर लिए गए, जो बिलकुल गलत है. उन्होंने यह भी कहा कि चमारिया ब्लॉक में 64 हजार से ज्यादा लोगों को स्थानीय यानी असली निवासी दिखाया गया है, जबकि वे असल में संदिग्ध अप्रवासी हो सकते हैं. इस बात पर सवाल उठता है कि क्या ऐसा गलत आंकड़ा डालकर नागरिकता की सही जांच हो पाएगी? और क्या इससे सही लोगों का नुकसान तो नहीं होगा?
70 लाख विदेशी हुए शामिल
एनआरसी में कितने विदेशी नागरिक शामिल हैं, इसे ठीक से जान पाना मुश्किल है, लेकिन किए गए सैंपल सर्वे के आधार पर माना जा सकता है कि लगभग 60 से 70 लाख ऐसे विदेशी लोगों के नाम इसमें दर्ज हो गए हैं. तो सवाल यह उठता है कि आखिर इतने बड़े पैमाने पर इस तरह की गलती कैसे हुई?
सॉफ्टवेयर और डेटा से छेड़छाड़
यह भी बताया गया कि वेरिफिकेशन करने वाले अधिकारी और डेटा दर्ज करने वाले लोग एक ही समुदाय से थे, जिससे डेटा में हेरफेर होने का खतरा बढ़ गया. इसके अलावा, एनआरसी बनाने वाले सॉफ्टवेयर में भी बड़ी कमी थी, जिसकी वजह से सीनियर ऑफिसर सही तरीके से जांच नहीं कर पाए. ऐसे में कई गलत नाम एनआरसी में शामिल हो गए.
दी गई थी चेतावनी दी गई थी
शर्मा ने बताया कि उन्होंने 2016 में ही इन गलतियों के बारे में आगाह किया था, लेकिन तब के राज्य समन्वयक ने इसे गंभीरता से नहीं लिया. इस वजह से कई असली स्थानीय लोगों के नाम एनआरसी में शामिल नहीं हो पाए. साथ ही, उन्होंने कहा कि लोगों को उनके अपने जिलों की बजाय अलग-अलग जिलों में बुलाया गया, जो गलत था. क्या अधिकारियों ने सही तरीके से काम कर लोगों के अधिकारों की रक्षा की?
एनआरसी की प्रक्रिया में हुई इन बड़ी गड़बड़ियों ने न सिर्फ असली लोगों को परेशान किया है, बल्कि देश की नागरिकता प्रणाली पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं. इसलिए अब नागरिकता दस्तावेज़ों का पूर्ण और पारदर्शी पुनः सत्यापन करना जरूरी हो गया है.