खत्‍म नहीं हो रहा इंतजार! सीएम हिमंता को तीन साल पुराना वादा याद दिला रहे इन गांवों के लोग

असम के लखीमपुर में लोग सड़कों पर उतर आए हैं. प्रदर्शनकारी सीएम हिमंता को तीन साल पहले उपचुनाव में जनता से किया गया वादा याद दिला रहे हैं, जिसे वह भूल चुके हैं. एक ऐसा भरोसा जो इस गांव की जिंदगी के लिए बहुत जरूरी है.;

( Image Source:  AI Perplexity )
Edited By :  हेमा पंत
Updated On : 25 July 2025 2:41 PM IST

असम के माजुली की सीमा से सटे लखीमपुर ज़िले के कुछ गांवों की ज़िंदगी इन दिनों सुबनसिरी नदी की एक धारा के इर्द-गिर्द ठहरी हुई सी है. गुरुवार की सुबह मिसामोरा चापोरी और मिसामोरा कुमोलिया चापोरी जैसे इलाकों से सैकड़ों ग्रामीण जिनमें बड़ी संख्या में नदी किनारे इकट्ठा हुए.

इनमें ज्यादातर महिलाएं और छात्र भी शामिल थे. उनका एक मकसद उस पुल की मांग है, जो अब एक अधूरा वादा बन चुका है. एक प्रदर्शनकारी महिला ने गुस्से और मायूसी के बीच कहा कि 'चुनाव को तीन साल हो गए, लेकिन सरकार ने अभी तक कुछ नहीं किया. हम इंतज़ार करते रहे, लेकिन अब सब्र का बांध टूट चुका है.'

वादा जो अब सिर्फ़ एक याद बन गया

यह कहानी 2022 में शुरू होती है, जब माजुली विधानसभा उपचुनाव के दौरान मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने प्रचार सभा में एक वादा किया था. उन्होंने कहा था कि ' अगर इस चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार जीता, तो हम इस धारा पर एक पुल ज़रूर बनाएंगे.' जनता ने भरोसा जताया और उम्मीदवार जीत गया, लेकिन वादा आज तक हकीकत नहीं बन पाया.

छात्रों की मुश्किलें: शिक्षा तक पहुंच नहीं

इस पुल के अभाव का सबसे गहरा असर उन छात्रों पर पड़ा है, जो नारायणपुर स्थित माधवदेव विश्वविद्यालय तक रोज़ाना पढ़ाई के लिए जाते हैं. उन्हें नदी पार करने में काफी समय और मेहनत लगती है. कई बार, बारिश या तेज़ धारा की वजह से स्कूल-कॉलेज जाना ही नामुमकिन हो जाता है.

बीमारियों पर भारी पुल की कमी

केवल शिक्षा ही नहीं, स्वास्थ्य सेवाएं भी इस पुल की गैरमौजूदगी से प्रभावित हो रही हैं. एक बुज़ुर्ग ग्रामीण ने कहा कि 'जब कोई बीमार होता है, तो अस्पताल ले जाना एक जंग जैसी हो जाती है. नावें हर समय नहीं चलतीं, और सड़क तो है ही नहीं.'

उम्मीद बाकी है, लेकिन धैर्य कम होता जा रहा है. ग्रामीणों के प्रदर्शन के ज़रिए यह साफ़ हो गया कि वे अब चुप नहीं बैठने वाले हैं. वे अपने हक़ की मांग कर रहे हैं  एक ऐसा पुल जो उन्हें सिर्फ़ एक छोर से दूसरे छोर तक नहीं, बल्कि एक बेहतर ज़िंदगी की ओर ले जा सके. अब देखना यह है कि सरकार इस आवाज़ को सुनती है या फिर यह विरोध भी वक्त के साथ खामोश हो जाएगा.

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