माजुली आइलैंड में आई हरियाली क्रांति! असम की ‘Forest Queen’ मुनमुनी पायेंग उगा रही उम्मीद के लाखों पेड़

असम की मुनमुनी पायेंग, 'Forest Man of India' जादव पायेंग की बेटी, माजुली द्वीप को हरियाली से पुनर्जीवित कर रही हैं. ‘Seuj Dhoroni’ संस्था के ज़रिए वो एक मिलियन पेड़ लगाने का लक्ष्य लेकर स्थानीय महिलाओं, बच्चों और समुदायों को जोड़कर हरियाली आंदोलन चला रही हैं, जो बाढ़, कटाव और जलवायु संकट से जूझते माजुली के लिए जीवनदायिनी साबित हो रही है.;

( Image Source:  instagram/munmunipayeng )
Edited By :  नवनीत कुमार
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असम की 25 वर्षीय मुनमुनी पायेंग का जीवन एक जंगल की कोख से निकली कहानी है. माजुली द्वीप में जन्मीं मुनमुनी पायेंग न सिर्फ 'Forest Queen' के नाम से जानी जाती हैं, बल्कि वो एक चलती-फिरती प्रेरणा हैं, जिन्होंने अपने पिता 'Forest Man of India' जादव पायेंग की पर्यावरणीय विरासत को अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया है. बचपन से ही उन्होंने पेड़ों की छांव में जीना सीखा, बाढ़ और भूमि कटाव के बीच पेड़ों को जीवन का सहारा मानना सीखा. उनके लिए हर पौधा एक भाई है और हर जंगल एक घर.

मुनमुनी ने अपने अभियान को एक संगठित रूप देने के लिए 'Seuj Dhoroni' संस्था की स्थापना की, जिसका उद्देश्य है- माजुली को एक बार फिर से हरा भरा करना. संस्था की अनोखी बात ये है कि यह सिर्फ पेड़ लगाने की मुहिम नहीं है, बल्कि इसमें स्थानीय समुदाय, महिलाओं और बच्चों को शामिल कर एक जनांदोलन खड़ा किया गया है. मुनमुनी चाहती हैं कि हर घर, हर हाथ एक पौधे का रक्षक बने.

महिलाओं को बनाया हरी दीदी

मुनमुनी का मानना है कि जंगल केवल ऑक्सीजन नहीं देते, वे परंपरा, पहचान और पुनर्निर्माण का जरिया हैं. बम्बैक्स, कटहल, आम और बेर जैसे स्थानीय पेड़ न केवल मिट्टी को मजबूती देते हैं, बल्कि पशु-पक्षियों का घर भी बनते हैं. उन्होंने महिलाओं को 'हरी दीदी' और बच्चों को 'मिनी फॉरेस्टर' बनाकर पेड़ों को सिर्फ लगाना नहीं, बल्कि उन्हें बढ़ाना सिखाया है.

बाढ़, कटाव और हाथियों से जंग

माजुली द्वीप पर हर साल बाढ़ आती है, जिससे ज़मीन बह जाती है, लोग बेघर हो जाते हैं और जानवरों की पनाह छिन जाती है. मुनमुनी और उनकी टीम का काम सिर्फ पेड़ लगाना नहीं है, वे इन सभी प्राकृतिक आपदाओं के खिलाफ एक हरित दीवार खड़ी कर रही हैं. हाथियों से टकराव, खेतों की तबाही और लगातार मिटती ज़मीन. इन सभी समस्याओं से लड़ते हुए उन्होंने पेड़ों को पुनर्निर्माण का हथियार बना दिया है.

कई समुदायों को जोड़ा

मुनमुनी की सबसे बड़ी सफलता यह है कि उन्होंने बिहारी, मिसिंग, आहोम जैसे विभिन्न समुदायों को एक साथ जोड़ा है. उनका काम दर्शाता है कि पर्यावरण की लड़ाई में कोई जाति, धर्म या वर्ग नहीं होता. यह साझी ज़िम्मेदारी है. इस अभियान में शामिल युवाओं और बुजुर्गों ने न सिर्फ माजुली को फिर से हरा-भरा करने का बीड़ा उठाया है, बल्कि एकजुटता की मिसाल भी पेश की है.

‘Forest Queen’ की मिली उपाधि

मुनमुनी के काम को अब राज्य सरकार और राष्ट्रीय पर्यावरण संगठनों से भी सराहना मिल रही है. उन्हें ‘Forest Queen’ की उपाधि एक औपचारिक सम्मान नहीं, बल्कि एक पीढ़ियों को जोड़ने वाले आंदोलन की मान्यता है. जलवायु परिवर्तन के इस दौर में उनका प्रयास सिर्फ माजुली नहीं, असम और पूर्वोत्तर भारत के लिए एक मॉडल बन चुका है.

पेड़ नहीं, उम्मीद उगाई है

मुनमुनी पायेंग की कहानी हमें यह सिखाती है कि अगर हौसले मजबूत हों और नीयत साफ, तो एक अकेला इंसान भी हजारों जिंदगियों का भविष्य बदल सकता है. उनके लगाए पेड़ न सिर्फ ऑक्सीजन देंगे, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए विश्वास और उम्मीद भी बनेंगे. माजुली के पत्तों में आज जो हरियाली है, वो सिर्फ chlorophyll नहीं, बल्कि एक बेटी की दृढ़ता, सामुदायिक सहयोग और प्रकृति से प्रेम की मिसाल है.

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