ब्लैक होल के कोरोना के बदलते रूप का मिला सबूत, IIT गुवाहाटी और ISRO की बड़ी खोज
भारत के वैज्ञानिकों ने एक बार फिर साबित किया है कि देश अंतरिक्ष विज्ञान और खगोलभौतिकी के क्षेत्र में लगातार महत्वपूर्ण कदम बढ़ा रहा है. IIT गुवाहाटी और ISRO के UR राव सैटेलाइट सेंटर (URSC) ने इज़राइल की यूनिवर्सिटी ऑफ हाइफ़ा के साथ मिलकर ब्लैक होल से जुड़ा एक ऐसा रहस्य उजागर किया है, जो अब तक दुनिया भर के वैज्ञानिकों के लिए अनसुलझा था.;
ब्लैक होल ब्रह्मांड के सबसे रहस्यमयी पिंडों में से एक है, जो वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं के लिए हमेशा से जिज्ञासा का विषय रहा है. इनकी रहस्यमयी शक्तियां और इनके आस-पास घटने वाली घटनाएं अब तक पूरी तरह समझ से परे रही हैं. इसी कड़ी में भारत के वैज्ञानिकों ने एक बार फिर दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है. भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) गुवाहाटी और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के वैज्ञानिकों ने मिलकर एक महत्वपूर्ण खोज की है. उन्होंने पृथ्वी से लगभग 28,000 प्रकाश वर्ष दूर स्थित ब्लैक होल GRS 1915+105 से रहस्यमयी एक्स-रे सिग्नल पैटर्न का पता लगाया है.
यह खोज भारत के अपने स्पेस ऑब्जर्वेटरी AstroSat की मदद से की गई, जिसने ब्लैक होल से निकल रही चमकदार और मंद पड़ती एक्स-रे किरणों के पैटर्न को कैद किया. शोधकर्ताओं ने पाया कि इस ब्लैक होल से निकलने वाली रोशनी कुछ सौ सेकंड तक चमकीली रहती है और फिर उतने ही समय तक मंद पड़ जाती है. खास बात यह रही कि इस दौरान एक बहुत तेज़ और दोहराने वाला फ्लिकर सिग्नल मिला, जो केवल ब्लैक होल की ब्राइट अवस्था में ही दिखाई दिया. यह खोज न केवल ब्लैक होल के बारे में नई जानकारी देती है, बल्कि पूरे ब्रह्मांड और आकाशगंगाओं के विकास को समझने में भी मदद करेगी.
28,000 प्रकाश वर्ष दूर का ब्लैक होल
यह खोज GRS 1915+105 नामक ब्लैक होल से जुड़ी है, जो पृथ्वी से करीब 28,000 प्रकाश वर्ष दूर स्थित है. इस ब्लैक होल की खासियत यह है कि यह लगातार अपनी साथी तारे (companion star) की बाहरी परतों से गैस खींचता रहता है. जब यह गैस ब्लैक होल में गिरती है, तो अत्यधिक गर्मी पैदा होती है और एक्स-रे का उत्सर्जन होता है. यही एक्स-रे वैज्ञानिकों को ब्लैक होल के व्यवहार को समझने में मदद करते हैं.
AstroSat से हुआ अवलोकन
इस अध्ययन में भारत के अपने स्पेस टेलीस्कोप AstroSat का इस्तेमाल किया गया. इसके माध्यम से वैज्ञानिकों ने पाया कि ब्लैक होल से निकलने वाली एक्स-रे की चमक दो अवस्थाओं में बंटी रहती है, एक अवस्था में यह बेहद चमकीली होती है, जबकि दूसरी में यह मंद पड़ जाती है. हर अवस्था कई सौ सेकंड तक रहती है और फिर यह पैटर्न दोहराया जाता है.
IIT गुवाहाटी के भौतिकी विभाग के प्रोफेसर संतब्रत दास ने बताया कि, “हमने पहली बार यह सबूत पाया है कि ब्लैक होल की ब्राइट अवस्था के दौरान एक्स-रे बहुत तेज़ी से टिमटिमाती हैं, और यह लगभग 70 बार प्रति सेकंड दोहराई जाती हैं. दिलचस्प बात यह है कि यह फ्लिकरिंग डिम अवस्था में पूरी तरह गायब हो जाती है.”
कोरोना का रोल
शोधकर्ताओं ने पाया कि यह रहस्यमयी फ्लिकरिंग ब्लैक होल के चारों ओर मौजूद कोरोना के कारण होती है. कोरोना ब्लैक होल के आस-पास गर्म गैस और प्लाज्मा का क्षेत्र होता है. जब ब्लैक होल ब्राइट अवस्था में होता है, तो कोरोना सिकुड़कर और अधिक गर्म हो जाता है. इसी समय तेज़ फ्लिकरिंग दिखाई देती है. जबकि डिम अवस्था में कोरोना फैलकर ठंडा हो जाता है और फ्लिकरिंग गायब हो जाती है. इससे यह स्पष्ट हो गया कि कोरोना एक स्थिर संरचना नहीं है, बल्कि यह ब्लैक होल में गैस के प्रवाह के अनुसार अपना आकार और ऊर्जा बदलता रहता है.
ग्लोबल महत्व
इस खोज को खगोलभौतिकी की दुनिया में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि माना जा रहा है. ब्लैक होल को लेकर अब तक माना जाता था कि उनकी संरचना और ऊर्जा वितरण स्थिर रहते हैं. लेकिन यह शोध साबित करता है कि ब्लैक होल के आस-पास का वातावरण लगातार बदलता रहता है. प्रोफेसर दास का कहना है कि यह अध्ययन न केवल ब्लैक होल की कार्यप्रणाली को समझने में मदद करेगा, बल्कि इससे यह भी पता चलेगा कि ब्लैक होल किस तरह ऊर्जा छोड़ते हैं और अपनी आकाशगंगा को प्रभावित करते हैं.
ISRO की भूमिका
UR राव सैटेलाइट सेंटर (URSC), ISRO के डॉ. अनुज नंदी ने बताया कि, “हमारे अध्ययन ने यह प्रत्यक्ष प्रमाण दिया है कि एक्स-रे फ्लिकरिंग का स्रोत कोरोना है. पहले यह केवल अनुमान था, लेकिन अब हमने इसे साबित कर दिया है.” उन्होंने कहा कि इस खोज से ब्लैक होल के आसपास मौजूद प्लाज्मा और ऊर्जा विन्यास को समझने में बड़ी मदद मिलेगी.
अंतरराष्ट्रीय सहयोग और शोधपत्र
इस शोध में IIT गुवाहाटी के प्रोफेसर दास और उनके शोधार्थी सेषाद्रि मजूमदार, ISRO के डॉ. अनुज नंदी और इज़राइल की यूनिवर्सिटी ऑफ हाइफ़ा के डॉ. श्रीहरी हरीकेश शामिल रहे. इस शोध को प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय जर्नल Monthly Notices of the Royal Astronomical Society में प्रकाशित किया गया है.
क्यों है यह खोज अहम?
यह ब्लैक होल के कोरोना की बदलती प्रकृति का प्रत्यक्ष सबूत देती है. इससे ब्लैक होल के द्वारा ऊर्जा उत्सर्जन और उनकी वृद्धि को समझने में मदद मिलेगी. यह अध्ययन यह संकेत देता है कि ब्लैक होल अपनी आकाशगंगा की संरचना और विकास में भी भूमिका निभाते हैं.