2000 लोगों की गई थी जान... क्या था 1983 का नेल्ली नरसंहार, जिसकी रिपोर्ट असम विधानसभा में पेश करेगी हिमंत सरकार?
1983 का नेल्ली नरसंहार असम के इतिहास का सबसे काला अध्याय था, जिसमें लगभग 2,000 लोगों की निर्दयता से हत्या कर दी गई थी. यह घटना उस समय हुई जब असम में “विदेशी विरोधी आंदोलन” अपने चरम पर था. अब मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा की सरकार ने इस रिपोर्ट को असम विधानसभा में पेश करने का निर्णय लिया है.;
18 फरवरी 1983 असम के नेल्ली गांव की सुबह किसी भी और दिन जैसी ही शुरू हुई थी. लेकिन कुछ ही घंटों में यह धरती खून और चीखों से भर गई. महिलाओं और बच्चों समेत 2,000 से अधिक लोगों की बेरहमी से हत्या कर दी गई. घर जलाए गए, लोग भागे, और असम के इतिहास में वह दिन एक नरसंहार की तरह दर्ज हो गया.
अब इस पर असम की हिमंत बिस्वा सरमा सरकार विधानसभा में रिपोर्ट पेश करेगी. उनका कहना है कि यह कदम न केवल अतीत की सच्चाई को सामने लाने के लिए जरूरी है, बल्कि पीड़ितों के परिवारों और शोधकर्ताओं की लंबे समय से उठाई जा रही मांगों को भी पूरा करेगा.
क्या था नेल्ली नरसंहार?
1983 में नेल्ली नरसंहार हुआ था, जहां 18 फरवरी की सुबह 14 गांवों के 2000-3000 लोगों की जान चली गई. यह वही दौर था जब असम में विदेशी विरोधी आंदोलन अपने चरम पर था. आंदोलन का निशाना बने माइग्रेंट मुस्लिम समुदाय, जो पीढ़ियों से वहां रह रहे थे, लेकिन अचानक परदेसी कहे जाने लगे.
चार दशक से दबी रही रिपोर्ट, अब खुलेगा सच
अब 40 साल बाद असम की हिमंत बिस्वा सरमा सरकार ने फैसला लिया है कि नेल्ली नरसंहार की जांच रिपोर्ट को असम विधानसभा के नवंबर सत्र में पेश किया जाएगा. मुख्यमंत्री ने कहा कि रिपोर्ट अब तक इसलिए जनता के सामने नहीं आई थी क्योंकि सरकार के पास जो कॉपी थी, उस पर जांच आयोग के चेयरमैन जस्टिस त्रिभुवन प्रसाद तिवारी के साइन नहीं थे.
नरसंहार के एक साल बाद ही सौंप दी थी रिपोर्ट
यह रिपोर्ट 1983 में तत्कालीन सरकार ने नेल्ली हत्याकांड के कारणों और घटनाओं की जांच के लिए बनवाई थी. आयोग ने 1984 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी, लेकिन इसे कभी जनता के सामने नहीं लाया गया. मानवाधिकार संगठनों और इतिहासकारों की लगातार मांग के बावजूद यह दस्तावेज कई दशकों तक फाइलों में दबा रहा और धूल खाता रहा.
सरकार का नया रुख
मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि रिपोर्ट पेश करना असम के इतिहास के उस काले अध्याय को साफ और पारदर्शी तरीके से देखने का एक कदम है. उन्होंने कहा कि नेल्ली कांड सिर्फ साम्प्रदायिक हिंसा नहीं था, बल्कि यह एक चेतावनी है कि राजनीतिक उकसावे और पहचान की राजनीति कैसे निर्दोष लोगों की जान को खतरे में डाल सकती है.
सामाजिक नीतियों में भी बड़े बदलाव का एलान
कैबिनेट की बैठक में नेल्ली रिपोर्ट के अलावा कई महत्वपूर्ण सामाजिक फैसले भी लिए गए. सरकार ने बताया कि अनुसूचित जनजाति, चाय जनजाति (आदिवासी), मोरन और मातक समुदाय को सरकारी नौकरियों के लिए लागू दो बच्चों की नीति से छूट दी जाएगी. सरकार का कहना है कि अगर यह नीति इन समुदायों पर लागू रहती, तो अगले 50 साल में इन जनजातियों की पहचान धीरे-धीरे खत्म हो सकती थी.
चाय बागान मजदूरों के लिए खुशखबरी
इसके अलावा, राज्य सरकार भूमि सीमा कानून में बदलाव करके लगभग 96,000 एकड़ जमीन (2.9 लाख बीघा) चाय बागान मजदूरों के चार लाख परिवारों में बांटेगी. इस पर मुख्यमंत्री सरमा ने कहा कि 'यह हमारे समाज के सबसे मेहनतकश लोगों को जमीन से जुड़ने का मौका देगा.'
नेल्ली: एक घाव जो अब भी ताजा है
नेल्ली नरसंहार केवल इतिहास की एक घटना नहीं, बल्कि असम की अंतरात्मा पर पड़ा गहरा दाग है. चार दशक बाद जब रिपोर्ट विधानसभा में पेश होगी, तो यह सिर्फ एक दस्तावेज नहीं, बल्कि हजारों पीड़ितों की आत्माओं के लिए इंसाफ की प्रतीक्षा का प्रतीक होगी. यह रिपोर्ट बताएगी कि कैसे राजनीतिक लालच, जातीय विभाजन और प्रशासनिक असफलता ने मिलकर एक शांत गांव को मौत के मैदान में बदल दिया था. अब सवाल यह है कि क्या 40 साल बाद भी असम उस सच का सामना करने की हिम्मत जुटा पाएगा?