Nicholas Pooran Retirement: निकोलस पूरन ने 29 साल की उम्र में इंटरनेशनल क्रिकेट को क्यों कह दिया अलविदा?
पिछले कुछ हफ्तों में क्रिकेट दुनिया में रिटायरमेंट की लहर छा गई है. रोहित शर्मा और विराट कोहली ने टेस्ट क्रिकेट को अलविदा कहा, वहीं ग्लेन मैक्सवेल, हेनरिक क्लासेन और निकोलस पूरन ने अलग-अलग फॉर्मेट से संन्यास की घोषणा कर दी. खासकर पूरन का सिर्फ 29 साल की उम्र में जाना क्रिकेट की बदलती प्राथमिकताओं की बड़ी तस्वीर को उजागर करता है.;
Nicholas Pooran Retirement: पिछले पांच हफ्तों में क्रिकेट जगत ने एक के बाद एक हाई-प्रोफाइल रिटायरमेंट देखे हैं. भारतीय कप्तान रोहित शर्मा (Rohit Sharma) ने 7 मई को टेस्ट क्रिकेट को अलविदा कहा और महज पांच दिन बाद विराट कोहली (Virat Kohli) ने भी यही रास्ता अपनाया. ये फैसले पूरी तरह अप्रत्याशित नहीं थे, लेकिन जिस तेजी से आए, उन्होंने भारतीय क्रिकेट में एक बड़ा शून्य छोड़ दिया.
रोहित शर्मा (38) और विराट कोहली (36) लंबे समय से टेस्ट क्रिकेट में भारत के स्तंभ रहे हैं. रोहित ने नवंबर 2013 में और कोहली ने जून 2011 में टेस्ट डेब्यू किया था. इन दिग्गजों के फैसलों के बाद ऑस्ट्रेलिया के ग्लेन मैक्सवेल ने वनडे क्रिकेट से संन्यास की घोषणा की ताकि वह आगामी टी20 वर्ल्ड कप पर फोकस कर सकें. इसके कुछ ही घंटे बाद दक्षिण अफ्रीका के विकेटकीपर हेनरिक क्लासेन ने भी सफेद गेंद के क्रिकेट से संन्यास ले लिया.
भावनाओं और थकावट के बीच संतुलन
मैक्सवेल और क्लासेन की रिटायरमेंट ने एक और पहलू को उजागर किया- मानसिक और शारीरिक थकावट. क्लासेन ने कहा, “मैंने महसूस किया कि मुझे अपनी परफॉर्मेंस और टीम की जीत से फर्क नहीं पड़ता था.” जब खिलाड़ी क्रिकेट में आनंद खो देते हैं, तो संन्यास एक आत्म-रक्षा का रास्ता बन जाता है. वहीं, मैक्सवेल जैसे खिलाड़ी अपने शरीर और प्राथमिकताओं को संतुलित करते हुए फॉर्मेट चुन रहे हैं.
निकोलस पूरन की हैरान कर देने वाली विदाई
हाल ही में इस रिटायरमेंट लहर में सबसे चौंकाने वाला नाम रहा वेस्टइंडीज का निकोलस पूरन. सिर्फ 29 साल की उम्र में पूरन ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कह दिया, जबकि वे टी-20 में कैरेबियाई टीम के सबसे ज्यादा रन बनाने वाले खिलाड़ी हैं. 2016 में डेब्यू करने वाले पूरन ने 61 वनडे और 106 टी20 मुकाबले खेले हैं. IPL 2025 में लखनऊ सुपर जायंट्स के लिए उनकी धमाकेदार फॉर्म से किसी को उनके फैसले की उम्मीद नहीं थी.
फ्रेंचाइज़ी क्रिकेट की पकड़
पूरन की विदाई से एक बड़ा सवाल खड़ा हुआ है कि क्या अब खिलाड़ी देश से ज़्यादा फ्रेंचाइज़ी लीग्स को प्राथमिकता देने लगे हैं? दुनिया भर में 20 ओवर की लीग्स ने एक अलग ही इकोनॉमी बना दी है, जहां खिलाड़ी कम समय में ज्यादा कमा सकते हैं. ऐसे में जब राष्ट्रीय टीम में जगह, सम्मान या सहयोग की कमी महसूस होती है, तो कई खिलाड़ी विकल्प चुनने लगते हैं.
खिलाड़ियों को दोष देने से पहले ढांचे की जांच जरूरी
जब खिलाड़ी फ्रेंचाइज़ी को प्राथमिकता देते हैं, तो अक्सर उन्हें 'लालची' करार दिया जाता है. मगर ये निर्णय केवल पैसों के लिए नहीं होते बल्कि व्यावसायिक सुरक्षा, मानसिक संतुलन और पारिवारिक जिम्मेदारियों से भी जुड़े होते हैं. देश के लिए खेलना गौरव की बात है, लेकिन यह गौरव भूख नहीं मिटाता. क्रिकेट बोर्ड को इस यथार्थ को समझना होगा.
वेस्टइंडीज और दक्षिण अफ्रीका में समान संकट
वेस्टइंडीज में बोर्ड और खिलाड़ियों के बीच लंबे समय से तनाव रहा है. कई सितारे बोर्ड के व्यवहार से तंग आकर चुपचाप दूर हो गए. दक्षिण अफ्रीका ने भी जातीय संतुलन और खिलाड़ियों के पलायन जैसी समस्याओं से जूझा है. क्लासेन का फैसला व्यक्तिगत है, लेकिन उसका संदर्भ भी इसी बड़े ढांचे से जुड़ा है जिसमें खिलाड़ी खुद को उपेक्षित महसूस करते हैं.
पूरन की विदाई: चेतावनी की घंटी
निकोलस पूरन की अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से विदाई शायद एक बड़ी समस्या की शुरुआत है. अगर क्रिकेट बोर्ड खिलाड़ियों को उनके देश के लिए खेलने के लिए पर्याप्त प्रेरणा और सुरक्षा नहीं देते, तो यह सिलसिला लंबा चल सकता है. समय आ गया है कि बोर्ड आत्मविश्लेषण करें कि क्या हम खिलाड़ियों के सपनों और ज़रूरतों को सही तरह से समझ पा रहे हैं? वरना अगला पूरन कौन होगा, यह केवल समय बताएगा.