कौन हैं तंगतोड़ा साधु, जिनके अखाड़े में शामिल होने के लिए देना पड़ता है Interview?
कुंभ मेले में अलग-अलग अखाड़ों के साधु-संत शामिल होते हैं. पहला गंगा स्नान साधु ही करते हैं. इनमें एक नाम तंगतोड़ा साधु का भी शामिल है. इनका चयन बहुत कठिन तरीके से किया जाता है. इन्हें परिवार को त्याग अपने माता-पिता और खुद का पिंडदान करना पड़ता है. इसके बाद अध्यात्म की राह चुनने वाले त्यागी को सात शैव अखाड़ों में नागा कहा जाता है.;
Mahakumbh 2025: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में 12 सालों के बाद महाकुंभ का आयोजन हो रहा है. देश-विदेश से लोग आस्था के इस मेले में शामिल होने के लिए यूपी पहुंच रहे हैं. कुंभ मेले में अलग-अलग अखाड़ों के साधु-संत शामिल होते हैं. पहला गंगा स्नान साधु ही करते हैं. इनमें एक नाम तंगतोड़ा साधु का भी शामिल है.
जानकारी के अनुसार, प्रयागराज में देश के हर कोने से साधुओं का जमावड़ा लग रहा है. अलग-अलग परंपराओं और अंदाज में साधु-संत वहां पहुंच रहे हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं तंगतोड़ा साधुओं को अखाड़े की कोर टीम में शामिल होने के लिए कठिन परीक्षा देनी पड़ती है? आज हम आपको इनके बारे में ही बताएंगे.
कौन हैं तंगतोड़ा साधु?
तंगतोड़ा साधु भी महाकुंभ में पहुंचे हुए हैं. इनका चयन बहुत कठिन तरीके से किया जाता है. इन्हें परिवार को त्याग अपने माता-पिता और खुद का पिंडदान करना पड़ता है. इसके बाद अध्यात्म की राह चुनने वाले त्यागी को सात शैव अखाड़ों में नागा कहा जाता है. बड़ा उदासीन अखाड़े में इन्हें तंगतोड़ा कहते हैं. फिर यह अखाड़े की कोर टीम में शामिल होते हैं.
साधुओं का होता है इंटरव्यू
देश भर में श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन निर्वाणी के करीब 5 हजार आश्रमों, मंठ और मंदिरों के महंत व प्रमुख संत अपने योग्य चेलों को तंगतोड़ा बनाने की संसुस्ति करते हैं. इसके बाद इन्हें रमता पंच जो अखाड़े के लिए इंटरव्यू बोर्ड का काम करते हैं, उनके पास भेजा जाता है. उनसे जो भी सवाल किया जाता है उसके जवाब किसी किताब में नहीं लिखे होते. इसलिए इसे काफी मुश्किल माना जाता है. बता दें कि चेलों से इनकी टकसाल, गुरु मंत्र, चिमटा, धुंधा और रसोई से संबंधित गोपनीय प्रश्न पूछे जाते हैं.
साधुओं को देनी होती है कठिन परीक्षा
इंटरव्यू इतना मुश्किल होता है कि एक दर्जन चेले ही इसमें पास हो पाते हैं. जो पास हो जाते हैं उन्हें संगम ले जाकर स्नान कराया जाता है फिर संन्यास और अखाड़े की परंपरा का पालन करने के लिए शपथ दिलाई जाती है. चेलों को अखाड़े में लाकर इष्ट देवता के सामने पूजापाठ होती है. इन्हें एक लंगोटी में धूना के सामने खुले आसमान में कई दिनों तक 24 घंटे के लिए रहना होता है, तब जाकर उन्हें संन्यास परंपरा में शामिल होने की अनुमति मिलती है.