Rohini Vrat 2025: क्यों रखा जाता है ये व्रत, जानें इससे मिलने वाले चमत्कारी फल

रोहिणी व्रत का विशेष धार्मिक महत्व जैन और हिन्दू दोनों परंपराओं में माना गया है. यह व्रत रोहिणी नक्षत्र के दिन रखा जाता है, जो इस वर्ष 7 नवंबर 2025 को पड़ रहा है. मान्यता है कि इस व्रत को श्रद्धा और नियमपूर्वक करने से व्यक्ति के जीवन से दुख, दरिद्रता और रोग दूर हो जाते हैं.;

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By :  स्टेट मिरर डेस्क
Updated On : 7 Nov 2025 6:30 AM IST

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार,रोहिणी 27 नक्षत्रों में से एक नक्षत्र है. इस नक्षत्र में किया जाने वाला व्रत रोहिणी व्रत कहलाता है. इस माह यह व्रत 7 नवंबर, शुक्रवार को किया जाएगा. यह व्रत विशेष रूप से जैन धर्म और वैष्णव परंपरा दोनों में श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया जाता है.

धार्मिक मान्यता है कि इस व्रत को करने से दुख, दरिद्रता और रोगों से मुक्ति मिलती है, साथ ही घर में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है.

रोहिणी व्रत कब मनाया जाता है?

रोहिणी व्रत का पालन जब भी रोहिणी नक्षत्र आता है, तब किया जाता है. चंद्र मास के अनुसार यह नक्षत्र लगभग महीने में एक बार आता है. अतः वर्ष में लगभग 12 बार रोहिणी व्रत मनाया जाता है. जैन परंपरा के अनुसार यह व्रत अत्यंत शुभ माना गया है और विशेषकर श्रावक-श्राविकाओं को इसका पालन करने का विधान बताया गया है.

पौराणिक महत्व

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी रुक्मिणी जी ने भगवान से कहा कि कौन-सा व्रत ऐसा है जिससे मनुष्य को सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिले और वह वैकुंठ लोक की प्राप्ति कर सके. तब श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया कि जो भक्त रोहिणी नक्षत्र के दिन श्रद्धा और नियमपूर्वक व्रत रखता है, उसे जन्म-जन्मांतर के पापों से मुक्ति मिलती है. जैन ग्रंथों में भी वर्णन मिलता है कि रोहिणी व्रत का पालन करने से आत्मा का कल्याण होता है और मोक्ष के मार्ग में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं.

व्रत की पूजा विधि

व्रत के दिन प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और मन को शुद्ध रखें. इसके बाद भगवान विष्णु या भगवान वासुपूज्य (जैन धर्म के बारहवें तीर्थंकर) का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें. पूजा स्थल पर भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र स्थापित कर दीपक जलाएं और तिलक लगाकर धूप, दीप, पुष्प, चावल, तुलसी पत्र, जल और पंचामृत से विधिवत पूजन करें. पूजन के समय “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” या “ॐ विष्णवे नमः” मंत्र का जाप करना अत्यंत शुभ माना जाता है.

व्रत के दौरान श्रद्धालु अन्न का त्याग कर फलाहार या केवल जल ग्रहण करते हैं. कुछ भक्त इस दिन पूर्ण उपवास रखकर भगवान विष्णु का ध्यान करते हैं. पूजा के पश्चात रोहिणी व्रत कथा का श्रवण किया जाता है, जिससे व्रत का फल कई गुना बढ़ जाता है. दिनभर भक्ति और ध्यान में समय व्यतीत कर सायंकाल आरती करने के बाद व्रत पूरा होता है.

इस व्रत का फल

धार्मिक मान्यता है कि जो व्यक्ति श्रद्धा और नियमपूर्वक रोहिणी व्रत करता है, उसके जीवन के समस्त कष्ट, रोग और दोष समाप्त हो जाते हैं. यह व्रत मनुष्य को आत्मिक शांति और मानसिक संतुलन प्रदान करता है. भगवान विष्णु की कृपा से परिवार में सुख, सौभाग्य और समृद्धि बढ़ती है. जैन ग्रंथों के अनुसार, इस व्रत का पालन करने से आत्मा पवित्र होती है और मोक्ष के मार्ग में आने वाली सभी बाधाएं दूर होती हैं.

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