खरमास का महीना शुरू, जानिए इस माह का पौराणिक महत्व और क्या करें क्या ना करें
हिंदू पंचांग के अनुसार खरमास का महीना हर साल विशेष महत्व रखता है. यह महीना धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से बेहद पवित्र माना जाता है. इस दौरान केवल पूजा-पाठ और पुण्यकर्म ही किए जाते हैं, जबकि कई शुभ कार्य और मांगलिक कामों से परहेज करना चाहिए.;
सूर्य के धनु राशि में प्रवेश करते ही एक माह के लिए खरमास आरंभ हो जाता है. सूर्य के धनु राशि में गोचर को धनु संक्रांति के नाम से जाना जाता है. खरमास में शुभ कार्य करना वर्जित होता है और इसमें विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश और जनेऊ संस्कार जैसे शुभ और मांगलिक कार्य एक माह के लिए थम जाते हैं.
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शास्त्रों में खरमास को संयम, जप और साधना का काल माना गया है. इस अवधि में व्यक्ति को सांसारिक भोग-विलास से दूरी बनाकर धर्म और अध्यात्म की ओर अधिक ध्यान देने की परंपरा रही है.
खरमास के महीने का धार्मिक महत्व
हिंदू पंचांग के अनुसार, एक वर्ष में खरमास दो बार आता है. जब सूर्य धनु और मीन राशि में प्रवेश करते हैं तो खरमास लगता है. वैदिक ज्योतिष शास्त्र में धनु और मीन राशि के स्वामी देवगुरु बृहस्पति होते हैं. मान्यता है कि सूर्य के धनु और मीन राशि में प्रवेश करने से सूर्यदेव अपने गुरु बृहस्पति की सेवा में एक माह लीन रहते हैं जिस कारण शुभ कार्य थम जाते हैं. हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कामो की शुरुआत में पंचदेवों की पूजा अवश्य होती है. पंचदेव में भगवान विष्णु, शिव, गणेश,देवी दुर्गा और सूर्यदेव शामिल हैं. सूर्य धनु राशि में गोचर करने से ये एक माह के लिए अपने गुरु की सेवा में होते हैं जिस कारण से विवाह, गृहप्रवेश और जनेऊ संस्कार में सूर्य देव शामिल नहीं हो पाते हैं. इस कारण खरमास में मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं.
पूजा-पाठ और साधना क्यों करनी चाहिए?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार खरमास में भगवान विष्णु की विशेष पूजा की जाती है. कहा जाता है कि इस अवधि में विष्णु सहस्रनाम का पाठ, ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जप और नारायण कवच का पाठ अत्यंत फलदायी होता है.
खरमास में दान-पुण्य का विशेष महत्वपुराणों में खरमास को दान-पुण्य का श्रेष्ठ काल बताया गया है. इस दौरान अन्न, वस्त्र, तिल, गुड़, घी, कंबल और पात्र का दान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है. गरीबों, असहायों और वृद्धों की सेवा करना विशेष पुण्यदायी माना गया है.
क्या करें और क्या नहीं
खरमास के महीने में सादा और सात्विक जीवनशैली अपनाना श्रेष्ठ माना गया है. खरमास के महीनों में नियमित पूजा-पाठ, जप, ध्यान और व्रत करने से मन और आत्मा शुद्ध होती है. शास्त्रों में खरमास में गुरुओं और बड़ों का सम्मान करना और जरूरतमंदों की सहायता शुभ माना गया है. वहीं खरमास में कुछ नहीं करना चाहिए. इस मास में विवाह, सगाई, गृह प्रवेश, नया व्यवसाय शुरू करना, भूमि या वाहन खरीदना तथा किसी बड़े निर्माण कार्य की शुरुआत नहीं करनी चाहिए. इसके साथ ही तामसिक भोजन, मांसाहार, मद्यपान और अत्यधिक भोग-विलास से दूर रहना उचित माना गया है.