Vat Savitri Vrat 2025: कब है वट सावित्री व्रत 26 या 27 मई ? जानिए सही तिथि, मुहूर्त और धार्मिक महत्व

वट सावित्री व्रत को कई जगहों पर दूसरे अन्य नामों जैसे बड़मावस और बरगदाही आदि नामों से भी जाना जाता है. इस बार अमावस्या तिथि दो दिनों के होने के कारण इसकी तिथि को लेकर संशय की स्थिति बनी हुई कि आखिर वट सावित्री व्रत कब रखा जाए.;

By :  State Mirror Astro
Updated On : 13 May 2025 5:26 PM IST

हिंदू धर्म में वट सावित्री व्रत का विशेष महत्व होता है. यह व्रत मुख्य तौर पर सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु, सुख-समृद्धि, वैभव और जीवन में तरक्की की कामना के लिए रखती हैं. इसमें सुहागिन महिलाएं पूरे दिन व्रत रखते हुए वट वृक्ष की पूजा विधि-विधान के साथ करती हैं. हिंदू पंचांग के अनुसार एक वर्ष में वट सावित्री व्रत दो बार रखा जाता है. ज्येष्ठ माह की अमावस्या और पूर्णिमा दोनों ही तिथियों पर यह व्रत रखा जाता है.

वट सावित्री व्रत को कई जगहों पर दूसरे अन्य नामों जैसे बड़मावस और बरगदाही आदि नामों से भी जाना जाता है. इस बार अमावस्या तिथि दो दिनों के होने के कारण इसकी तिथि को लेकर संशय की स्थिति बनी हुई कि आखिर वट सावित्री व्रत कब रखा जाय. आइए जानते हैं वट सावित्री व्रत की सही तिथि, शुभ मुहूर्त और धार्मिक महत्व.

वट सावित्री व्रत तिथि 2025

हिंदू पंचांग के अनुसार इस वर्ष ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि की शुरुआत 26 मई को दोपहर 12 बजकर 12 मिनट से होगी और इसका समापन 27 मई को सुबह 08 बजकर 31 मिनट पर होगा. ऐसे में उदया तिथि के आधार पर वट सावित्री व्रत 26 मई को रखा जाएगा.

वट सावित्री व्रत पर दुर्लभ संयोग

इस बार वट सावित्री व्रत के दिन ग्रहों के संयोग से बहुत ही दुर्लभ और शुभ संयोग का निर्माण होने जा रहा है. पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि सोमवार के दिन होगी, जिस कारण से इसे सोमवती अमावस्या के नाम से जाना जाता है. इसके अलावा इस दिन चंद्रमा वृषभ राशि में मौजूद होंगे. सूर्य-बुध की युति होगी जिसेसे बुधादित्य नाम का योग भी बनेगा. वहीं मालव्य और त्रिग्रही योग के बनने से वट सावित्री व्रत इस बार बहुत ही महत्वपूर्ण हो जाती है.

वट सावित्री व्रत का महत्व

सुहागिन महिलाओं के लिए वट सावित्री व्रत का विशेष महत्व होता है. इसमें महिलाएं वट यानी बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं. शास्त्रों में बरगद के पेड़ का विशेष महत्व होता है. इस पेड़ के तने में भगवान विष्णु, शाखाओं में भगवान शिव और जड़ में ब्रह्राा जी का वास होता है. वहीं बरगद की जो शाखाएं पेड़ से लटकती हुए जमीन में आकर मिलती हैं उसे सावित्री का रूप माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि जो भी इस वृक्ष की पूजा करता है उनके जीवन में सुख-समृद्धि और संपन्नता का वास होता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अमावस्या तिथि पर वट वृक्ष के नीचे देवी सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राणों की रक्षा के लिए यमराज से वापस फिर से जिंदा कर लिया था. इसी वजह से वट वृक्ष के नीचे सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए पूजा-पाठ और व्रत रखती हैं और अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्ति करती हैं.

क्या होता है अक्षय वट?

हिन्दू पंचांग के अनुसार साल में दो बार वट सावित्री व्रत रखा जाता है, पहला ज्येष्ठ अमावस्या को और दूसरा ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन.दोनों ही तिथियों के व्रत में पूजा-पाठ करने का विधान, कथा, नियम और महत्व एक जैसे ही होते हैं.शास्त्रों में मनोकामनाओं की पूर्ती के लिए अनेक वृक्षों की पूजा का विधान बताया गया है.धार्मिक मान्यता के अनुसार,वट वृक्ष पांच तरह का होता है .इनमें सबसे चमत्कारी 'अक्षय वट' होता है,जो कभी नष्ट नहीं होता है .मान्यता है कि जो इस वृक्ष की पूजा करता है,उसकी मनोकामना जरूर पूरी होती है .शोधों से पता लगा है कि इस वृक्ष की आयु करीब 3,250 ईसा पूर्व की बताई गई है.धार्मिक मान्यता के अनुसार वट वृक्ष के तने में विष्णु,जड़ में ब्रह्मा और शाखाओं में भगवान शिव का वास होता है . इस वृक्ष में तीनों देवों का निवास होने के कारण इसे त्रिमूर्ति का प्रतीक माना गया है .

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