West Bengal SIR controversy : क्‍या SIR के बाद बंगाल में होंगे निष्‍पक्ष चुनाव या फिर से ‘डेड वोटर’ पलट देंगे खेल?

West Bengal SIR controversy : पश्चिम बंगाल में चल रही SIR (Special Intensive Revision) ऑफ इलेक्ट्रोरल रोल्स के दौरान मृत और फर्जी मतदाताओं के नामों की बड़ी गड़बड़ी उजागर हुई है. 7.6 करोड़ मतदाताओं की सूची की जांच में 2,208 बूथ ऐसे मिले जिनमें एक भी मृत या डुप्लिकेट वोटर दर्ज नहीं था - जो जांच के बाद तुरंत बदल गया. SIR कर्मचारियों की मौत पर विवाद और राजनीतिक आरोप भी बढ़े हैं. अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या SIR से वोटर लिस्ट शुद्ध होगी या 2026 चुनावों में ‘भूत मतदान’ फिर निर्णायक भूमिका निभाएगा.;

Edited By :  प्रवीण सिंह
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West Bengal SIR controversy : 'मुर्दे बोला नहीं करते', लेकिन पश्चिम बंगाल में कहानी उलटी है. यहां मृत लोग न केवल नाम दर्ज कराए बैठे हैं बल्कि वोट भी डाल सकते हैं. यही बड़ा खुलासा राज्य में चल रही स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) ऑफ इलेक्ट्रोरल रोल्स के दौरान सामने आया है. चुनाव आयोग (EC) अब इन गड़बड़ियों को सुधारने की कोशिश में लगा है, लेकिन उस पर नजरें टिकी हैं - मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी पार्टी टीएमसी की भी, और बदलाव की उम्मीद लिए विपक्ष की भी.

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SIR पश्चिम बंगाल में बेहद विशाल और चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया है. कुल 7.6 करोड़ मतदाताओं के डेटा की स्कैनिंग, सत्यापन और सफाई की जिम्मेदारी BLOs पर है. अंतिम समय सीमा फरवरी तय की गई है, यानी सिर्फ दो महीनों में करोड़ों रिकॉर्डों को शुद्ध करना है. लेकिन द न्‍यू इंडियन एक्‍सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार अब तक की प्रक्रियाओं से कई सवाल खड़े हो रहे हैं - क्या यह पूरी कवायद व्यवस्थित योजना से चल रही है या ‘ट्रायल और एरर’ के सहारे, जिसका असर अंतिम मतदाता सूची पर पड़ सकता है?

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“SIR स्टेस” से मौतें और विवाद पर राजनीति

प्रक्रिया पर सबसे ज्यादा विवाद तब बढ़ा जब SIR के दौरान काम कर रहे कर्मचारियों की कथित मौतें सामने आने लगीं. ममता बनर्जी का दावा है कि 39 BLOs की मौत SIR के काम के दबाव के कारण हुई, और राज्य सरकार ने परिजनों को 2 लाख रुपये मुआवजा देने का ऐलान किया. विपक्ष ने शुरुआत में इसे राजनीतिक नाटक बताया, लेकिन जब मध्य प्रदेश, यूपी, राजस्थान और केरल में भी SIR कर्मचारियों की मौतें सामने आईं, तब सवाल और गंभीर हो गए.

विवाद बढ़ते देख EC ने बंगाल में SIR की पहली चरण की डेडलाइन 4 से बढ़ाकर 11 दिसंबर कर दी. अब BLOs को फॉर्म वितरण और डेटा अपलोडिंग के लिए अतिरिक्त समय मिला है. साथ ही, पहली बार EC ने संकेत दिए कि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट आने के बाद मृत BLOs को मुआवजा देने पर विचार किया जाएगा.

बंगाल की विशेष परिस्थितियों का अंदाज़ा नहीं?

विशेषज्ञों के अनुसार EC शायद यह समझने में चूक गया कि पश्चिम बंगाल उन राज्यों जैसा नहीं है जहां SIR सामान्य रूप से चलाया जा सकता है. यहां अंतरराष्ट्रीय खुली सीमाएं हैं (विशेषकर बांग्लादेश के साथ), 15 साल से एक दल का राजनीतिक प्रभुत्व है और सामने हैं खुद ममता बनर्जी - चुनावी मुकाबलों और राजनीतिक नैरेटिव में माहिर. स्वाभाविक है कि बंगाल में मतदाता सूची सुधार आम राज्यों जितना सरल नहीं हो सकता था.

'घोस्‍ट वोटर्स' - 2208 बूथों का चौंकाने वाला मामला

SIR डेटा अपलोड होने के बाद दिल्ली स्थित EC की टीम को एक असामान्य पैटर्न दिखा. राज्य में कुल 80,000 से ज्‍याद बूथ हैं लेकिन इनमें से 2,208 बूथों में एक भी Uncollectable Entry नहीं मिली. यानी कोई मृत मतदाता नहीं, कोई डुप्लिकेट नाम नहीं, कोई स्थायी रूप से स्थानांतरित मतदाता नहीं और ना हो कोई ऐसा मतदाता मिला जिसे ट्रेस न किया जा सके. इस पैमाने पर इतनी ‘परफेक्ट लिस्ट’ लगभग असंभव है. चुनाव आयोग ने तुरंत पुनरीक्षण का आदेश दिया, और 48 घंटे के भीतर 2,208 में से केवल 7 बूथों में ही शून्य अनकलेक्टेबल नाम बचे. इसके बाद अचानक BLOs को मृत मतदाता, शादी के बाद पता बदलने वाली महिलाएं, और ग़ायब हो चुके मतदाता - सब 'याद' आने लगे. यह बदलाव इतना ‘चमत्कारिक’ था कि विपक्ष ने इसे सीधे नियोजित वोट धोखाधड़ी का प्रयास कहा.

विपक्ष के आरोप - "डेड वोटर लिस्ट में रहने चाहिए ताकि बूथ कैप्चर आसान हो"

विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी ने दावा किया कि TMC नेता और चुनावी रणनीति ग्रुप IPAC BLOs पर दबाव डाल रहे थे कि मृत मतदाताओं के नाम न हटाए जाएं. अधिकारी ने यह भी मांग की कि 26–28 नवंबर के बीच अपलोड किए गए 1.25 करोड़ फॉर्म को विशेषज्ञ तकनीकी टीम द्वारा ऑडिट किया जाए, क्योंकि इतने कम समय में यह अपलोडिंग संदिग्ध है. कुछ ऑडियो क्लिप और चैट स्क्रीनशॉट उन्होंने साझा भी किए - पर उनकी प्रामाणिकता प्रमाणित नहीं है. फिर भी EC पहली बार इन शिकायतों को गंभीरता से लेता दिख रहा है.

बंगाल की पुरानी राजनीति - ‘साइंटिफिक रिगिंग’ की वापसी?

बंगाल में ‘Scientific Rigging’ कोई नया शब्द नहीं है. वाम मोर्चा के 34 साल के शासन में ममता बनर्जी ने इसी आरोप पर दशकों तक राजनीति की थी कि वोटर लिस्ट और बूथ प्रबंधन को वैज्ञानिक तरीके से विपक्ष के खिलाफ इस्तेमाल किया जाता है. आज वही आरोप भाजपा टीएमसी पर लगा रही है. भाजपा मानती थी कि SIR के बाद सीमा पार से आए मतदाताओं के नाम हटेंगे, मृत और फर्जी वोटर साफ़ होंगे और चुनाव समान धरातल पर होंगे. लेकिन मौजूदा हालात देखते हुए विरोधियों के मन में आशंका फिर गहरी हो रही है कि कहीं SIR गलत मतदाता सूची को वैधता का ‘टैग’ न दे दे.

आगे क्या? मई 2026 बड़े फैसले लाएगा

SIR पूरी होने के बाद पश्चिम बंगाल अप्रैल–मई 2026 में विधानसभा चुनाव की ओर बढ़ेगा. पर वर्तमान हालात में यह सवाल और बड़ा हो गया है कि क्या SIR मतदाता सूची को शुद्ध कर बंगाल में निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करेगा? या फिर ‘डेड वोटर’, ‘ग़ायब वोटर’ और ‘डुप्लिकेट वोटर’ फिर चुनावी गणित का खेल पलट देंगे?

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