Talaq: गुजरात हाईकोर्ट ने क्यों कहा मुसलमान ले सकते हैं मौखिक सहमति से भी तलाक?

अहमदाबाद हाईकोर्ट ने राजकोट फैमिली कोर्ट के फैसले को गलत करार दिया. हाईकोर्ट ने कहा कि यह फैसला गलत है. मु​सलमानों में तलाक के लिए लिखित समझौता अनिवार्य नहीं है. यह कुरान, हदीस या मुसलमानों में पर्सनल लॉ में लिखित समझौते का कहीं जिक्र नहीं है.;

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Edited By :  धीरेंद्र कुमार मिश्रा
Updated On : 12 Aug 2025 9:10 AM IST

गुजरात हाईकोर्ट ने तलाक के एक मामले का निपटारा करते हुए कहा कि मुस्लिम विवाह 'मुबारत' यानी आपसी सहमति से तलाक के माध्यम से समाप्त किया जा सकता है. इसके लिए किसी लिखित समझौते का होना जरूरी नहीं है. विवाह विच्छेद की प्रक्रिया पर कुरान और हदीस का हवाला देते हुए जस्टिस ए वाई कोगजे और जस्टिस एन एस संजय गौड़ा की पीठ ने राजकोट की एक पारिवारिक अदालत के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें एक मुस्लिम जोड़े द्वारा दायर मुबारत के माध्यम से विवाह विच्छेद की मांग करने वाले मुकदमे को खारिज कर दिया गया था.

हाईकोर्ट ने क्या कहा?

हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के फैसले को गलत करार दिया. हाईकोर्ट ने कहा कि तलाक के लिए लिखित समझौता होना जरूरी है, ऐसा कुरान, हदीस या मुस्लिम पर्सनल लॉ में कहीं नहीं लिखा है. हाईकोर्ट ने साफ किया कि आपसी सहमति से तलाक के लिए मुबारत कानूनी है, इसके लिए लिखित समझौते की जरूरत नहीं. हाईकोर्ट का यह फैसला उन मुस्लिम जोड़ों के लिए राहत की खबर है जो मुबारत (आपसी सहमति) से अलग होना चाहते हैं.'

इससे पहले राजकोट की पारिवारिक अदालत ने माना था कि पारिवारिक न्यायालय अधिनियम की धारा 7 के तहत यह मुकदमा विचारणीय नहीं है क्योंकि तलाक के लिए आपसी सहमति से कोई लिखित समझौता नहीं था. जबकि वैवाहिक कलह के कारण जोड़े ने अलग होने का फैसला लिया था.

हाईकोर्ट ने पारिवारिक अदालत के इस निष्कर्ष में त्रुटि पाई कि तलाक के लिए लिखित समझौता अनिवार्य है, क्योंकि यह कुरान, हदीस या मुसलमानों में पर्सनल लॉ के तहत प्रचलित किसी भी प्रथा से सहमत नहीं है.

क्या है मामला

तलाक लेने वाले मुस्लिम कपल का निकाह कुछ सालों पहले हुआ था. निकाह के कुछ समय बाद दोनों के बीच विवाद रहने लगा. पति-पत्नी के बीच अनबन होने के चलते उन्होंने अलग होने का फैसला किया. उन्होंने मुबारत से अपना निकाह खत्म किया और फैमिली कोर्ट में रजामंदी से तलाक की अर्जी दी.

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