कौन है जम्मू-कश्मीर का इमाम इरफान अहमद जो ब्रेन वॉश कर डॉक्टरों को बना रहा था आतंकी?

दिल्ली ब्लास्ट के बाद सामने आया फरीदाबाद टेरर मॉड्यूल अब देश की जांच एजेंसियों के निशाने पर है. इस खतरनाक नेटवर्क का मास्टरमाइंड इमाम इरफान अहमद निकला, जो जम्मू-कश्मीर के शोपियां का रहने वाला है. इरफान ने मेडिकल कॉलेजों में पढ़ने वाले डॉक्टरों और छात्रों को जिहाद की राह पर ले जाने की साजिश रची. फरीदाबाद से बरामद 2900 किलो विस्फोटक ने पूरे देश को हिला दिया. जांच में सामने आया कि इस मॉड्यूल में डॉ. मुजम्मिल शकील, डॉ. मोहम्मद उमर और डॉ. शाहीन सईद की अहम भूमिका रही. समय रहते कार्रवाई से देश एक बड़े आतंकी हमले से बच गया.;

दिल्ली ब्लास्ट के बाद सामने आया ‘फरीदाबाद टेरर मॉड्यूल’ अब देशभर की जांच एजेंसियों के रडार पर है. इस मॉड्यूल का मास्टरमाइंड कोई आम आतंकी नहीं, बल्कि एक इमाम निकला इरफान अहमद, जिसने मस्जिद और मेडिकल कॉलेजों को आतंक की पाठशाला में बदल दिया. जम्मू-कश्मीर के शोपियां का रहने वाला यह शख्स लंबे समय से फरीदाबाद में बैठकर देश के भीतर जिहादी मॉड्यूल तैयार करने में लगा था.

सुरक्षा एजेंसियों की जांच में जो खुलासा हुआ, उसने हर किसी को चौंका दिया. डॉक्टरों और मेडिकल स्टूडेंट्स को धर्म के नाम पर बरगलाकर हथियार उठाने के लिए तैयार किया जा रहा था. इरफान का मिशन था, "कलम से बंदूक तक", और इस खतरनाक एजेंडे को उसने फरीदाबाद की जमीन पर जड़ें जमाने दीं.

कौन है इमाम इरफान अहमद?

जांच के मुताबिक, इरफान अहमद पहले श्रीनगर के सरकारी मेडिकल कॉलेज में पैरामेडिकल स्टाफ के रूप में काम कर चुका है. वहीं से उसने कई मेडिकल स्टूडेंट्स के संपर्क में आकर उन्हें अपनी विचारधारा से प्रभावित करना शुरू किया. धीरे-धीरे उसने नौगाम मस्जिद को अपने नेटवर्क का केंद्र बना लिया. यहीं से वह फरीदाबाद पहुंचा और मेडिकल कॉलेजों के छात्रों को निशाना बनाना शुरू किया.

फरीदाबाद में ‘डॉक्टर्स ऑफ टेरर’ का नेटवर्क

जांच एजेंसियों के अनुसार, इरफान ने फरीदाबाद के अल-फलाह यूनिवर्सिटी और मेडिकल कॉलेजों में पढ़ रहे छात्रों को अपने जाल में फंसाया. कुछ मेडिकल स्टूडेंट्स को उसने अफगानिस्तान और पाकिस्तान में बैठे हैंडलर्स से जोड़ दिया था. इनसे संपर्क के लिए VoIP कॉल्स और इनक्रिप्टेड ऐप्स का इस्तेमाल होता था. उसने युवाओं को “धर्म की रक्षा” के नाम पर भड़काया, और धीरे-धीरे उन्हें हथियारों और विस्फोटकों की ट्रेनिंग देने की योजना बनाई.

डॉक्टरों का आतंक में रोल

इस नेटवर्क में सबसे सक्रिय दो नाम सामने आए डॉ. मुजम्मिल शकील और डॉ. मोहम्मद उमर. इरफान जहां इस मॉड्यूल का मास्टरमाइंड था, वहीं ये दोनों डॉक्टर एक्शन टीम का हिस्सा थे. जांच में पता चला है कि फरीदाबाद में बरामद 2900 किलो विस्फोटक इन्हीं की प्लानिंग का नतीजा था. बताया जा रहा है कि दिल्ली में हुआ लाल किला ब्लास्ट, उमर ने घबराहट में अंजाम दिया, क्योंकि मॉड्यूल के खुलासे के बाद वह खुद को घिरा महसूस कर रहा था.

महिला फाइनेंसर का लिंक भी आया सामने

जांच में यह भी सामने आया कि इस मॉड्यूल को उत्तर प्रदेश की प्रोफेसर डॉ. शाहीन सईद आर्थिक मदद दे रही थी. वह अल-फलाह यूनिवर्सिटी में पढ़ाती थी और जमात-उल-मोमिनात, जो कि जैश-ए-मोहम्मद की महिला विंग मानी जाती है, की भारतीय कमांडर बताई जा रही है. शाहीन फंडिंग और भर्ती दोनों में अहम भूमिका निभा रही थी.

कैसे इमाम ने मेडिकल माइंड्स को हथियार बनाया?

इरफान ने छात्रों को यह समझाया कि वे "इलाज के जरिए नहीं, बल्कि जिहाद के जरिए समाज की सेवा करें". इस धार्मिक प्रचार के साथ उसने उन्हें “डॉक्टर ऑफ टेरर” में बदल दिया. सोशल मीडिया, टेलीग्राम चैनल और गुप्त मीटिंग्स के जरिये वह धीरे-धीरे ब्रेनवॉश करता गया.

अब तक की कार्रवाई और आगे की जांच

अब तक फरीदाबाद और जम्मू-कश्मीर से 7 लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है. इरफान अहमद को मास्टरमाइंड के तौर पर पहचाना गया है. एजेंसियां अब उसकी विदेशी फंडिंग, हैंडलर्स से कनेक्शन और डिजिटल नेटवर्क की जांच कर रही हैं. एनआईए को भी जांच सौंपी जा सकती है.

समय रहते उजागर हुई साजिश

अगर यह साजिश वक्त रहते नहीं पकड़ी जाती, तो दिल्ली और अन्य शहरों में श्रृंखलाबद्ध धमाकों का खतरा था. सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक, इरफान का लक्ष्य भारत में “मेडिकल प्रोफेशनल्स के जरिए” आतंकी नेटवर्क तैयार करना था. यानी वह ज्ञान को आतंक का औजार बना रहा था. जम्मू-कश्मीर पुलिस और फरीदाबाद टीम की सतर्कता से देश एक बड़े हमले से बच गया.

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