Begin typing your search...

एक पोस्टर, 20 दिनों की डिकोडिंग, 800KM दूर से गिरफ़्तारी और विस्फोटक की बरामदगी; कैसे 'डी गैंग' का हुआ पर्दाफाश?

दिल्ली के लाल किला ब्लास्ट ने देश को हिला दिया, लेकिन इस हादसे के पीछे की कहानी किसी फिल्म से कम नहीं. जम्मू-कश्मीर पुलिस की एक छोटी सी जांच, श्रीनगर में लगे एक पोस्टर से शुरू हुई और 800 किमी दूर फरीदाबाद में छिपे “डॉक्टर्स ऑफ टेरर” मॉड्यूल तक पहुंची. 20 दिन की जांच में 2900 किलो विस्फोटक बरामद हुआ और देश एक बड़े धमाके से बच गया. जैश-ए-मोहम्मद से जुड़े इस मॉड्यूल में डॉक्टर, छात्र और मौलवी शामिल थे. जांच ने न केवल दिल्ली ब्लास्ट की गुत्थी खोली, बल्कि पूरे भारत को दहलने से रोक दिया.

एक पोस्टर, 20 दिनों की डिकोडिंग, 800KM दूर से गिरफ़्तारी और विस्फोटक की बरामदगी; कैसे डी गैंग का हुआ पर्दाफाश?
X
नवनीत कुमार
Edited By: नवनीत कुमार

Updated on: 12 Nov 2025 1:25 PM IST

दिल्ली के लाल किले के पास हुए धमाके ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया. एक झटके में 12 जिंदगियां खत्म हो गईं, और सवाल उठने लगे कि आखिर यह हुआ कैसे? लेकिन असली कहानी इस धमाके से 20 दिन पहले और 800 किलोमीटर दूर श्रीनगर की गलियों में शुरू हुई थी. वहां एक दीवार पर चिपके कुछ पोस्टर्स ने जो चिंगारी भड़काई, उसने एक ऐसी आतंकी साजिश का खुलासा कर दिया जो अगर सफल होती, तो देश में खून की होली खेली जाती.

जो जांच जम्मू-कश्मीर पुलिस के हाथ लगी, वह किसी फिल्मी थ्रिलर से कम नहीं थी. एक छोटा सा सुराग, एक रहस्यमयी पोस्टर और एन्क्रिप्टेड संदेशों की कड़ी ने आखिरकार फरीदाबाद में बैठे ‘डॉक्टरों के टेरर मॉड्यूल’ को बेनकाब कर दिया. इस कहानी में पुलिस की सूझबूझ, तकनीकी डिकोडिंग और अंतरराज्यीय तालमेल ने देश को एक बड़े हमले से बचा लिया.

एक पोस्टर से शुरू हुई कहानी

यह कहानी अक्टूबर के आखिरी हफ्ते की है, जब श्रीनगर के नौगाम इलाके में दीवारों पर जैश-ए-मोहम्मद के धमकी भरे पोस्टर्स दिखाई दिए. इन पोस्टर्स में सुरक्षा बलों को निशाना बनाने की बात लिखी थी. जम्मू-कश्मीर पुलिस ने तुरंत जांच शुरू की और मामले को गंभीरता से लिया. यही जांच आगे चलकर एक ऐसे आतंकी मॉड्यूल तक पहुंची जो खुद को “डी गैंग” कहता था यानी ‘डॉक्टर्स ऑफ टेरर’.

800 किलोमीटर लंबी जांच यात्रा

पोस्टर्स की जांच के दौरान पुलिस ने कई ओवरग्राउंड वर्कर्स को हिरासत में लिया. पूछताछ में यह खुलासा हुआ कि विदेशी हैंडलर्स भारत में पेशेवर लोगों जैसे डॉक्टरों, छात्रों और मौलवियों से संपर्क में थे. इन लोगों का इस्तेमाल भारत में आतंकी नेटवर्क फैलाने के लिए किया जा रहा था. इसी कड़ी ने पुलिस को श्रीनगर से सहारनपुर और फरीदाबाद तक पहुंचा दिया करीब 800 किलोमीटर लंबी जांच यात्रा.

जब डॉक्टर बने आतंक का चेहरा

जांच में सामने आया कि जैश का यह मॉड्यूल पेशेवर डॉक्टरों के एक समूह द्वारा चलाया जा रहा था. डॉ. आदिल अहमद राठर, डॉ. मुजम्मिल अहमद और डॉ. शाहीन शाहिद इस गैंग के सक्रिय सदस्य थे. उनका मकसद था भारत के भीतर से आतंक की नई शाखा खड़ी करना. ये डॉक्टर अपनी प्रोफेशनल पहचान के पीछे छिपकर आतंकियों को मेडिकल, लॉजिस्टिक और कम्युनिकेशन सपोर्ट दे रहे थे.

20 दिन की डिकोडिंग से खुला राज

पुलिस ने करीब 20 दिनों तक एन्क्रिप्टेड चैट्स और कोडेड संदेशों को डिकोड किया. हर decoded मैसेज एक नई परत खोलता गया. फंडिंग से लेकर हथियारों की तस्करी तक की पूरी प्लानिंग का पता चला. इसी दौरान जम्मू-कश्मीर पुलिस ने हरियाणा और यूपी की एजेंसियों को अलर्ट किया. आखिरकार, फरीदाबाद में रेड मारी गई और वहां से मिली ऐसी बरामदगी जिसने सबको सन्न कर दिया.

2900 किलो विस्फोटक का खुलासा

फरीदाबाद में पुलिस ने 2900 किलोग्राम विस्फोटक सामग्री बरामद की. यह मात्रा इतनी थी कि अगर यह धमाका दिल्ली या किसी मेट्रो सिटी में होता, तो हजारों लोग इसकी चपेट में आ सकते थे. पूछताछ में यह भी पता चला कि यह साजिश सिर्फ एक धमाके तक सीमित नहीं थी बल्कि दिल्ली, नोएडा और जयपुर में एक साथ तीन धमाके करने की प्लानिंग थी.

एक असफल साजिश का पैनिक एक्ट

जांच एजेंसियों के अनुसार, डॉ. उमर महमूद, जो डी गैंग का अहम सदस्य था, पकड़े जाने के डर से घबरा गया. उसने जल्दबाजी में दिल्ली में लाल किले के पास कार ब्लास्ट कर दिया. एजेंसियों का मानना है कि यह कोई योजनाबद्ध हमला नहीं था, बल्कि पकड़े जाने की आशंका में किया गया ‘पैनिक ब्लास्ट’ था. यही वजह है कि धमाके का पैटर्न और लोकेशन अनियोजित थी.

विदेशी हैंडलर्स और डिजिटल ट्रेल

फॉरेंसिक जांच में पाया गया कि डी गैंग के सदस्य टेलीग्राम, सिग्नल और डार्क वेब चैनलों के ज़रिए अपने विदेशी हैंडलर्स से संपर्क में थे. हैंडलर्स का ठिकाना पाकिस्तान और सीरिया में बताया जा रहा है. वे भारत में फंडिंग और भर्ती के लिए सोशल और मेडिकल NGO के नाम का इस्तेमाल कर रहे थे. पुलिस ने कई डिजिटल वॉलेट्स को ट्रेस किया जिनमें करोड़ों की लेनदेन का रिकॉर्ड मिला.

जांच ने कैसे बचाई दिल्ली और देश?

अगर जम्मू-कश्मीर पुलिस उस एक पोस्टर को नजरअंदाज कर देती, तो शायद आज हालात और भयावह होते. इस एक जांच ने न सिर्फ दिल्ली को बल्कि पूरे उत्तर भारत को एक बड़े हमले से बचा लिया. अब डी गैंग के ज्यादातर सदस्य गिरफ्तार हैं, जबकि डॉ. उमर की पहचान डीएनए रिपोर्ट से की जा रही है. यह मामला साबित करता है कि कभी-कभी एक छोटा सुराग, अगर गंभीरता से लिया जाए, तो पूरे देश को दहलाने वाली साजिश को नाकाम किया जा सकता है.

India Newsब्लास्ट
अगला लेख