Operation Kahuta: ...तो भारत तोड़ देता पाकिस्तान का एटमी सपना, लेकिन एक कॉल ने सबकुछ बदल दिया?
ऑपरेशन काहूटा भारत की खुफिया एजेंसी RAW द्वारा 1970-80 के दशक में चलाया गया एक गुप्त अभियान था, जिसका उद्देश्य पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम की जासूसी करना था. यह ऑपरेशन पाकिस्तान के काहूटा स्थित परमाणु संयंत्र पर केंद्रित था, जहां डॉ. अब्दुल कादिर खान के नेतृत्व में बम बनाने का कार्य चल रहा था. RAW के एजेंटों ने संयंत्र से महत्वपूर्ण जानकारी जुटाई, लेकिन बाद में ISI को भनक लगने पर नेटवर्क ध्वस्त हो गया.;
विदेश मंत्री एस. जयशंकर के एक बयान को लेकर कांग्रेस उन पर देशद्रोह का गंभीर आरोप लगा रही है. कांग्रेस का दावा है कि जयशंकर ने पाकिस्तान को भारत के ऑपरेशन सिंदूर की रणनीति की जानकारी देकर "सूचना देने वाले" की भूमिका निभाई, जो राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता है. जयशंकर ने कहा था कि ऑपरेशन की शुरुआत में ही भारत ने पाकिस्तान को संदेश दे दिया था कि उसकी कार्रवाई केवल आतंकवादी ठिकानों तक सीमित रहेगी, सेना को निशाना नहीं बनाया जाएगा.
कांग्रेस ने इसे सीधे-सीधे "देश के दुश्मन को पहले से आगाह करने" जैसा बताया है. पार्टी ने जयशंकर की तुलना पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई से की, जिन पर भी पाकिस्तान को खुफिया जानकारी देने का आरोप लगा था. इस बयान ने चुनावी माहौल में सुरक्षा और राष्ट्रभक्ति को लेकर बहस को एक नया तीखा मोड़ दे दिया है. इस सबके बीच मोरारजी देसाई के कार्यकाल के वक्त हुआ रॉ का ऑपरेशन काहूटा चर्चा में है.
एक जासूसी ऑपरेशन, एक नाम – मोरारजी देसाई, और पाक का बम...
साल था 1974. भारत ने पोखरण में पहला परमाणु परीक्षण किया था – ‘स्माइलिंग बुद्धा’. लेकिन इस मुस्कराहट ने पाकिस्तान के दिल में डर भर दिया. इस टेस्ट के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ज़ुल्फिकार अली भुट्टो ने ऐलान किया, “हम घास खाएंगे, लेकिन एटम बम बनाएंगे!” यहीं से शुरू हुई पाकिस्तान की परमाणु महत्वाकांक्षा और भारत की सबसे रहस्यमयी जासूसी योजना: "ऑपरेशन काहूटा."
क्या था ऑपरेशन काहूटा?
"काहूटा" इस्लामाबाद से करीब 30 किमी दूर एक बेहद सुरक्षित इलाका है. यहीं स्थित है Kahuta Research Laboratories (KRL) – पाकिस्तान का परमाणु केंद्र, जिसे अब्दुल क़दीर खान के नेतृत्व में बनाया गया. भारत को संदेह था कि पाकिस्तान चोरी-छिपे यूरेनियम एनरिचमेंट टेक्नोलॉजी विकसित कर रहा है और एक दिन वो परमाणु बम बना सकता है. इस आशंका को मजबूत किया RAW (रिसर्च एंड एनालिसिस विंग) की इंटेलिजेंस रिपोर्ट्स ने.
मिशन का उद्देश्य
- काहूटा में हो रही गतिविधियों की निगरानी
- वहां के वैज्ञानिकों, कर्मचारियों, आपूर्तिकर्ताओं की जानकारी जुटाना
- और अगर मौका मिले, तो पाकिस्तान के न्यूक्लियर मिशन को समय रहते नष्ट करना
RAW की सबसे साहसी जासूसी
RAW के एजेंटों ने काहूटा के पास रहने वाले कर्मचारियों के परिवारों से संपर्क बनाना शुरू किया. कुछ वैज्ञानिकों की पत्नियों को मेडिकल ट्रीटमेंट या छुट्टियों का लालच दिया गया. जूतों के तलवों में मिट्टी लाकर भारत में उसकी रेडिएशन जांच करवाई गई. एक सिगरेट के टुकड़े से भी पता लगाया गया कि वहां यूरेनियम पर काम हो रहा है! RAW की फील्ड यूनिट्स को साफ आदेश था कि “हमें सिर्फ सबूत नहीं चाहिए, हमें ये मिशन रोकना है.”
लेकिन तभी आया एक कॉल...
कहा जाता है कि RAW ने 1979 के आसपास काहूटा रिसर्च फैसिलिटी पर एक सीक्रेट स्ट्राइक की योजना बनाई थी. बमवर्षक विमानों और एजेंटों की मदद से इस जगह को तबाह किया जाना था. लेकिन तभी भारत में सत्ता परिवर्तन हो चुका था. प्रधानमंत्री थे मोरारजी देसाई.
मोरारजी देसाई पर लगा 'पाक को फोन करने' का आरोप
इस पूरे ऑपरेशन का सबसे विवादित हिस्सा यही है. कई रिपोर्ट्स और पूर्व RAW अधिकारियों के अनुसार, मोरारजी देसाई ने पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल जिया-उल-हक को फोन कर ऑपरेशन की जानकारी दे दी थी. जिसका असर यह हुआ कि पाकिस्तान ने काहूटा की सुरक्षा को 10 गुना बढ़ा दिया. जिसके बाद RAW एजेंट्स को वहां से हटा लिया गया और ऑपरेशन कैंसिल कर दिया गया और पाकिस्तान ने 1998 में न्यूक्लियर बम का टेस्ट कर दुनिया को चौंका दिया.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स?
B. Raman (पूर्व RAW अधिकारी) ने अपनी किताब The Kaoboys of R&AW में इस ऑपरेशन और देसाई के कॉल का ज़िक्र किया है. कई रिटायर्ड इंटेलिजेंस ऑफिसर्स ने भी इस बात को "भारत की सबसे बड़ी रणनीतिक भूल" कहा है. हालांकि, देसाई पर कभी आधिकारिक रूप से कोई जांच नहीं हुई.
अगर ऑपरेशन काहूटा सफल होता तो?
- पाकिस्तान कभी न्यूक्लियर पावर नहीं बन पाता
- 1999 का कारगिल युद्ध और बाद के परमाणु तनाव टल सकते थे
- भारत की रणनीतिक स्थिति और मज़बूत होती