युद्ध में न्यूज़ चैनल झूठ क्यों दिखाते हैं, क्या इंडिया को चाहिए अपनी Ministry of Propaganda?
जब पाकिस्तान ट्वीट से जंग लड़ता है और चीन वीडियो से जनमत बनाता है, तो क्या भारत अब भी 'सच' के भरोसे युद्ध जीत सकता है?

युद्ध में सच नहीं, नैरेटिव चलता है
और ये बात जितनी जल्दी समझो, उतना बेहतर
21वीं सदी का युद्ध सिर्फ़ बॉर्डर पर नहीं होता, वो आपके मोबाइल स्क्रीन पर होता है. बुलेट और मिसाइल से ज़्यादा ख़तरनाक होता है ब्रेकिंग न्यूज़, #Trending, और वीडियो वायरल.
आज भारत-पाकिस्तान जैसे देशों के बीच कोई भी सैन्य तनाव हो, तो सोशल मीडिया पर एक ग्रुप अचानक प्रकट हो जाता है-
ये तो न्यूज़ चैनल झूठ दिखा रहे हैं!
गलत इनफॉर्मेशन है, ये तो फेक है!
भाईसाब, पहले समझिए- ये युद्ध है, प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं.
सिर्फ़ तोप, मिसाइल और फाइटर जेट नहीं चलते,
'नैरेटिव' भी फायर होता है.
युद्ध का एक मोर्चा है मीडिया
जब हिटलर ने 1930 के दशक में जर्मनी में सत्ता संभाली, तो उसका पहला काम था- Ministry of Propaganda बनाना.
उसने Joseph Goebbels को इसका मुखिया बनाया. काम था:
जर्मन जनता को युद्ध के लिए तैयार करना
दुश्मन को राक्षस बताना
अपनी सेना को अपराजेय दिखाना
Goebbels का मशहूर कोट है:
A lie told once remains a lie. But a lie told a thousand times becomes the truth.
अब इसे केवल हिटलर तक सीमित मत समझिए. यही चीज़ ब्रिटेन ने भी की.
Churchill का झूठ- देश को टूटने से बचाने के लिए
1940 में जब जर्मनी की Luftwaffe बमबारी कर रही थी लंदन पर, तो प्रधानमंत्री Winston Churchill ने एक नई strategy अपनाई-
Keep Calm and Carry On
हर अख़बार में, हर दीवार पर, हर रेडियो पर यही आवाज़ जाती थी:
हम जीत रहे हैं. सब ठीक है.
जबकि हक़ीकत थी कि लोग बमों से मर रहे थे, शहर जल रहे थे.
पर क्यों?
क्योंकि पैनिक फैलता, तो लंदन खाली हो जाता. सेना का मनोबल गिरता. और जर्मनी जीत जाता- बिना ज़्यादा लड़ाई के.
जब सच बताना देश को हराने जैसा होता है
अब थोड़ा इधर आइए- एशिया में.
1975 - वियतनाम युद्ध
North Vietnam के guerilla fighters- Viet Cong- ने South Vietnam में प्रोपेगैंडा फैलाया:
हम जीत रहे हैं. साउथ की सरकार गिर चुकी है.
और हुआ क्या?
South Vietnam के लोग बोट लेकर भागने लगे.
अमेरिका ने हेलीकॉप्टरों से अपने ही लोग एंबेसी की छत से निकाले.
Viet Cong को ज़्यादा युद्ध लड़ने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी.
युद्ध वो नहीं जीता जो हथियारों से जीत जाए, युद्ध वो जीतता है जो नैरेटिव जीत ले.
प्रोपगेंडा से मिलती है दुनिया की सहानुभूति और फंडिंग
दुनिया उन्हीं का साथ देती है जो अपने को सही साबित कर पाते हैं.
उदहारण:
WWII में अमेरिका:
अमेरिका ने अपने देश में Liberty Bonds बेचे.
कैसे?
Posters, Radio ads, फिल्में- सब जगह यही बताया गया कि
हम फ्रीडम के लिए लड़ रहे हैं.
सच में? नहीं!
पर उस नैरेटिव ने उन्हें फंडिंग दिलाई, सपोर्ट दिलाया, सेना का मनोबल बढ़ाया.
Israel-Palestine Conflict:
आज के दौर में दोनों पक्ष युद्ध नहीं, इन्फॉर्मेशन वॉर लड़ रहे हैं.
कौन ज्यादा वीडियो फैलाता है, कौन ज्यादा इमोशनल ट्वीट करता है, कौन ज्यादा समर्थन जुटाता है- यही तय करता है कि दुनिया किसे ‘शोषित’ मानेगी और किसे ‘आक्रांता’.
जब न्यूज चैनल ‘सही खबर’ नहीं दिखाते तो ग़लत क्यों होते हैं?
मान लीजिए भारत-पाकिस्तान के बीच वॉर जैसी स्थिति है.
अगर उस वक़्त कोई टीवी चैनल यह दिखाए-
हमारे 3 टैंक तबाह हो गए,
हवाई हमले में नुकसान हुआ,
बॉर्डर पर हालात खराब हैं...
तो होगा क्या?
लोग डरेंगे. मेट्रो, स्टेशन, एयरपोर्ट भगदड़ से भर जाएंगे.
सेना का मनोबल गिरेगा.
दुनिया को लगेगा- इंडिया कमज़ोर है.
इसलिए उस वक्त TRUTH नहीं, MORALE दिखाया जाता है.
ताकि जनता एकजुट रहे, सेना को सपोर्ट करे.
सोशल मीडिया योद्धा बनो, डिबेटर नहीं
आज का युद्ध सिर्फ टीवी पर नहीं होता.
हर भारतीय जब Twitter पर दुश्मन देश के नैरेटिव को काउंटर करता है, तब वो भी युद्ध का सिपाही होता है.
ये समझो कि आज अगर Pakistan के ट्विटर अकाउंट panic फैला रहे हैं-
हमने इंडिया के इतने टैंक उड़ा दिए!
भारत हार रहा है!
तो जवाब देना ज़रूरी है:
हम जीत रहे हैं. हमारी मिसाइलें इस बार लाहौर तक जाएंगी!
ये कोई झूठ नहीं,
ये युद्ध का हिस्सा है.
आखिर में- युद्ध के बाद सच बाहर आता है, युद्ध के समय सिर्फ़ नैरेटिव चलता है
जब युद्ध खत्म होता है, तब इतिहास लिखा जाता है.
तब किताबों में आता है कि क्या सही था क्या गलत.
पर युद्ध के दौरान?
सिर्फ़ एक सवाल चलता है-
Whose lie will be believed more?
आप अभी न्यूज चैनल पर झूठी खबर देखकर भड़क रहे हैं?
भाईसाब, ये झूठ नहीं, Information Warfare है.
सेना बॉर्डर पर लड़ रही है,
TV चैनल मानसिक मोर्चे पर,
और आप?
आपका फ़र्ज़ है उस नैरेटिव को आगे बढ़ाना.
क्योंकि…
युद्ध में सबसे पहले मरता है - सच
और सबसे पहले ज़िंदा होता है - नैरेटिव
क्या भारत को चाहिए एक Ministry of Propaganda?
अब सवाल ये उठता है कि जब अमेरिका, जर्मनी, ब्रिटेन, रूस, चीन - हर बड़ी ताकत ने प्रोपेगैंडा को हथियार की तरह इस्तेमाल किया है,
तो भारत क्यों अब भी 'सच्ची न्यूज़’ के सिद्धांत पर युद्ध लड़ने की कोशिश कर रहा है?
हमारी सेना चौकस है, तकनीक उन्नत है, लेकिन नैरेटिव के मोर्चे पर हम बार-बार घिर जाते हैं - क्योंकि हमारे पास Joseph Goebbels है नहीं, और न ही उसे रिप्लेस करने वाली कोई Strategy.
भारत को चाहिए एक Ministry of Propaganda.
नाम चाहे ‘Ministry of Strategic Communication’ रख लो, या ‘National Narrative Board’,
पर काम एक ही होना चाहिए —
- दुनिया को समझाना कि भारत क्या है,
- देशवासियों को एकजुट रखना,
- और दुश्मन के झूठ को उसी के अंदाज़ में तोड़ना.
क्योंकि अगर पाकिस्तान 100 ट्विटर ट्रोल से जंग लड़ सकता है,
अगर चीन TikTok वीडियो से जनमत बना सकता है,
तो भारत क्यों पीछे रहे?
सच की लड़ाई तब लड़ी जाती है जब आप जीत चुके हों,
पर जीतने के लिए नैरेटिव लड़ना पड़ता है.
तो अगली बार जब कोई बोले कि न्यूज़ चैनल झूठ दिखा रहा है -
सोचिए,
वो झूठ है या राष्ट्र रक्षा का नैरेटिव?
चाहे लड़ाई बॉर्डर पर हो या ब्रॉडकास्ट में -
युद्ध सिर्फ़ गोली से नहीं जीता जाता, कहानियों से भी जीता जाता है