अगला अध्यक्ष कौन? BJP में नेतृत्व परिवर्तन की सुगबुगाहट तेज, संगठन में फेरबदल की उल्टी गिनती शुरू
भाजपा नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के चयन की ओर बढ़ रही है. अमित शाह, राजनाथ सिंह और पीएम मोदी की लगातार बैठकों से संगठनात्मक बदलाव की तैयारी अंतिम चरण में है. 15 राज्यों में नए प्रदेश अध्यक्ष तय हो चुके हैं और बाकी की घोषणा जल्द संभावित है. सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले से पार्टी में संवैधानिक मुद्दों को लेकर भी हलचल तेज हुई है.;
भारतीय जनता पार्टी (BJP) के भीतर एक बार फिर नेतृत्व परिवर्तन और संगठनात्मक पुनर्संरचना की चर्चा तेज हो गई है. पार्टी के भीतर इस समय नए अध्यक्ष के चयन को लेकर गहन मंथन चल रहा है, जिससे संकेत मिल रहे हैं कि जल्द ही शीर्ष नेतृत्व में बड़ा बदलाव हो सकता है. पार्टी सूत्रों का कहना है कि यह केवल नियमित बैठकों का सिलसिला नहीं, बल्कि बड़ी रणनीतिक तैयारी का हिस्सा है.
मंगलवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा से लंबी बैठक की, जिसके बाद राजनीतिक हलकों में अटकलें तेज हो गईं. वहीं बुधवार को इन नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और संगठन महामंत्री बी.एल. संतोष के साथ विस्तृत चर्चा की. यह स्पष्ट संकेत है कि पार्टी की रणनीति अब 2024 के बाद की दिशा तय करने की ओर अग्रसर है.
राज्यों में नेतृत्व बदलाव की तैयारी अंतिम चरण में
भाजपा ने अब तक 15 राज्यों के नए प्रदेश अध्यक्ष तय कर लिए हैं, जबकि यूपी, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश जैसे प्रमुख राज्यों में भी सप्ताह के अंत तक नए चेहरों की घोषणा संभव है. पार्टी में संगठनात्मक फेरबदल केवल चेहरे बदलने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आगामी लोकसभा चुनावों के लिए पार्टी की ज़मीन को और मज़बूत करने की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने मचाई हलचल
तमिलनाडु के राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच विधेयकों की स्वीकृति को लेकर खिंची रस्साकशी पर सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले ने भाजपा नेतृत्व को असहज कर दिया है. कोर्ट ने राज्यपाल आर.एन. रवि की विधेयक आरक्षण प्रक्रिया को “अवैध” करार दिया, जिससे संवैधानिक संतुलन और राज्यपाल की भूमिका पर बड़ा प्रश्नचिह्न लग गया है. भाजपा इस फैसले को न्यायिक दखल मानती है, लेकिन पार्टी के भीतर रवि के कदमों को लेकर भी आलोचनात्मक स्वर उभरे हैं.
न्यायपालिका और कार्यपालिका का टकराव
इस पूरे घटनाक्रम की पृष्ठभूमि में न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच रिश्तों की जटिलता एक बार फिर सुर्खियों में है. यशवंत वर्मा प्रकरण, बुलडोजर कार्रवाई पर सुप्रीम कोर्ट की फटकार और एनजेएसी की बहस जैसे मुद्दे इस टकराव को और गहरा बना रहे हैं. ऐसे में भाजपा के लिए यह दोहरी चुनौती है, एक ओर संगठनात्मक ढांचे को मज़बूत करना, दूसरी ओर संवैधानिक संस्थाओं के साथ संतुलन साधना.